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    चमोली के द्रोणागिरी में भारी बर्फबारी से याकों का अस्तित्व खतरे में

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sat, 29 Feb 2020 08:13 PM (IST)

    चमोली जिले के जोशीमठ तहसील क्षेत्र में शीतकाल के दौरान हुई भारी बर्फबारी के कारण याकों (चंवर गाय) का जीवन संकट में है।

    चमोली के द्रोणागिरी में भारी बर्फबारी से याकों का अस्तित्व खतरे में

    चमोली, रणजीत सिंह रावत। चीन सीमा से लगे चमोली जिले के जोशीमठ तहसील क्षेत्र में शीतकाल के दौरान हुई भारी बर्फबारी के कारण याकों (चंवर गाय) का जीवन संकट में है। स्थिति यह है कि चारे की तलाश में याकों का झुंड जंगल से निकलकर सूकी गांव के पास पहुंच गया है। हालांकि, पशुपालन विभाग की ओर से इन याकों की निगरानी करने के साथ ही उन्हें नमक दिया जा रहा है।

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    सीमांत क्षेत्र में द्रोणागिरी व आसपास के जंगलों में याकों का झुंड आसानी से देखा जा सकता है, लेकिन शीतकाल के दौरान हुई भारी बर्फबारी के कारण यह झुंड निचले स्थानों में पहुंच गया है। पूर्व में भी याकों के सामने यह स्थिति आती रही है। इसके चलते बीते छह वर्षों के दौरान 14 याक हिमस्खलन व आपदा में जान गवां चुके हैं। वर्ष 2019 में 11 मार्च को भारी हिमस्खलन के चलते द्रोणागिरी के जंगलों में आठ याकों की मौत हो गई थी। जबकि, वर्ष 2015 में छह याकों को तब जान गंवानी पड़ी, जब बर्फ से बचने के लिए वो द्रोणागिरी गांव की एक गोशाला में जा घुसे और भारी बर्फबारी से गोशाला जमींदोज हो गई।

    सूकी गांव के ग्राम प्रधान लक्ष्मण सिंह बुटोला बताते हैं कि बर्फ से बचने के लिए इन दिनों दस याकों का झुंड उनके गांव के ऊपर पहुंचा हुआ है।

    जिस स्थान पर यह झुंड रह रहा है, वहां भी हिमस्खलन की आशंका है। हालांकि, पशुधन प्रसार अधिकारी जोशीमठ शिवानंद जोशी ने बताया कि द्रोणागिरी में अभी दस याक मौजूद हैं। इनकी देख-रेख के लिए एक स्थायी व एक संविदा कर्मचारी तैनात किया गया है। जो समय-समय पर याकों को नमक देकर उनकी भी देखभाल कर रहे हैं।

    व्यापार में रही है महत्वपूर्ण भूमिका 

    वर्ष 1962 में नीती और माणा पास से भारत-तिब्बत के बीच नमक, सीप, मूंगा समेत अन्य खाद्य पदार्थों का व्यापार हुआ करता था। इन मार्गों से तिब्बती व भोटिया जनजाति के व्यापारी याकों से सामान के साथ आवागमन करते थे। दरअसल, सीमांत क्षेत्र में अत्याधिक ठंड व प्रतिकूल मौसम होने के कारण घोड़ा-खच्चर या अन्य मालवाहक जानवरों का उपयोग नहीं हो पाता था। जबकि, याक यहां की जलवायु में आसानी से रह सकते थे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद इन रास्तों से व्यापार बंद होने के बाद कुछ याक भारत-सीमा पर ही छूट गए। जो आज भी झुंड के रूप में यहां विचरण करते देखे जाते हैं।

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    ग्रामीण के पास भी हैं दो याक 

    पशुपालन विभाग की ओर से याकों के संवद्र्धन को लेकर भी प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में जोशीमठ तहसील में भोटिया जनजाति के एक ग्रामीण को पशुपालन विभाग ने दो याक दिए हैं। ग्रामीण इन याकों को शीतकाल के दौरान औली और यात्रा सीजन में बदरीनाथ ले जाकर इनसे यात्री व पर्यटकों को रू-ब-रू कराता है। वह इन याकों के साथ फोटो खिंचवाकर ग्रामीण को धनराशि भी देते हैं।

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