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    कभी सिपाही रहे, अब सैन्य अफसर बनने की राह पर; ऐसी है इन कैडेटों की सफलता की कहानी

    Updated: Fri, 05 Dec 2025 10:42 PM (IST)

    भारतीय सैन्य अकादमी के एसीसी विंग के कैडेटों की सफलता की कहानी प्रेरणादायक है। कभी सिपाही रहे, अब अफसर बनने की राह पर हैं। नेपाल के हरिकेशर तिवारी ने ...और पढ़ें

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    आइएमए की ग्रेजुएशन सेरेमनी के दौरान में मेडल विजेता एसीसी कैडेट। जागरण

    जागरण संवाददाता, देहरादून : सपनों की कीमत वही समझता है, जिसने उन्हें पाने के लिए रोज खुद को तपाया हो। भारतीय सैन्य अकादमी की एसीसी विंग से दीक्षित कैडेट भी इसी तप के प्रतीक हैं। कभी वे यूनिफार्म में आदेश पाते थे, आज आदेश देने वाले नेतृत्व की राह पर बढ़ रहे हैं। लक्ष्य तक पहुंचने में वक्त लगा, चुनौतियां मिलीं, ठोकरें भी, पर उन्होंने उम्मीद का हाथ नहीं छोड़ा। उनके जज्बे ने साबित कर दिया कि कठिन रास्तों से ही मंजिलें चमकती हैं।

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    बचपन से देखा था यूनिफार्म का सपना

    नेपाल के हरिकेशर तिवारी ने बचपन से यूनिफार्म का सपना देखा था। पिता जीत कुमार किसान व मां तारा गृहिणी हैं। परिवार के लोग ब्रिटिश आर्मी में रहे, इसलिए वहां जाने की ख्वाहिश थी। कोशिश की, असफल हुए, पर हार नहीं मानी। 2018 में सेना में भर्ती हुए और 3/9 जीआर में वर्षों तक सिपाही की जिम्मेदारी निभाई। मन में अफसर बनने का सपना धधकता रहा। आज वही हरिकेशर चीफ आफ आर्मी स्टाफ स्वर्ण पदक और कला वर्ग में कमांडेंट सिल्वर मेडल जीतकर साबित कर रहे हैं कि कठिन मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता।

    लक्ष्य स्पष्ट था कि अफसर है बनना

    हरियाणा के फतेहाबाद निवासी कुलविंदर किसान परिवार से आते हैं। उनके पिता अभयराम खेती करते और मां कौशल्या गृहिणी हैं। सरकारी स्कूल से पढ़ाई की, फिर 2018 में सेना में भर्ती हुए। लक्ष्य हमेशा स्पष्ट था कि अफसर बनना है। आत्मअनुशासन और संघर्ष से उनके इस सपने को उड़ान मिली। इसी जज्बे ने अब चीफ आफ आर्मी स्टाफ कांस्य पदक दिलाया। वे कहते हैं कि सपना बड़ा हो, तो मेहनत भी बड़ी करनी पड़ती है।

    2018 में हुए वायुसेना में भर्ती

    उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ निवासी भव्य चौहान ने 2015 में एनडीए की परीक्षा दी, पर सफलता नहीं मिली। हिम्मत नहीं टूटी। 2018 में वायुसेना में भर्ती हुए। मन में सपना अब भी जिंदा रहा। अब एसीसी के माध्यम से अफसर बनने की राह पर हैं। सर्विस सब्जेक्ट में कमांडेंट सिल्वर मेडल ने उनकी लगन को नया दर्जा दिया है। उनके पिता प्रमोद एक मेटल फैक्ट्री में नौकरी करते हैं और मां पूनम गृहिणी हैं।

    जिंदगी नहीं रही आसान

    अमृतसर के सागर उप्पल के लिए जिंदगी आसान नहीं रही। दो बार एनडीए में असफलता, बीटेक बीच में छोड़ना, घर की आर्थिक परेशानियां, सबने मिलकर जीवन को झकझोर दिया। उन्होंने हार नहीं मानी, जिम्मेदारी उठाई, परिवार को सहारा देने के लिए 2019 में वायुसेना में भर्ती हुए। आज चीफ आफ आर्मी स्टाफ सिल्वर मेडल और विज्ञान वर्ग में कमांडेंट सिल्वर मेडल उनके सीने पर चमक रहा है।

    यह कहानी केवल मेडल जीतने वालों की नहीं है। यह कहानी दृढ़ विश्वास, संघर्ष और उस भरोसे की है कि मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती। एसीसी विंग के यह कैडेट अब आइएमए की मुख्यधारा में शामिल होकर अफसर बनने की ओर कदम बढ़ाएंगे।

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