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यहां मां नंदा को शिव की पत्नी के रूप में पूजा जाता, पढ़िए पूरी खबर

चमोली जिले के विकासनगर घाट में स्थित है। यहां मां नंदा देवी अपने चतुर्भुज शिलामूर्ति के रूप में विराजमान है। कुरुड़ धाम में मां नंदा देवी की डोली दो रूपों में निवास करती है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 10:40 AM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 10:43 AM (IST)
यहां मां नंदा को शिव की पत्नी के रूप में पूजा जाता, पढ़िए पूरी खबर
यहां मां नंदा को शिव की पत्नी के रूप में पूजा जाता, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, जेएनएन। मां नंदा भगवती सिद्धपीठ कुरुड़ चमोली जिले के विकासनगर घाट में स्थित है। यहां मां नंदा देवी अपने चतुर्भुज शिलामूर्ति के रूप में विराजमान है। कुरुड़ धाम में मां नंदा देवी की डोली दो रूपों में निवास करती है। मां नंदा कुरुड़-मां नंदा कुरुड़-दशोली की डोली व राजराजेश्वरी की डोली। मां नंदा को प्रतिवर्ष लोकजात का आयोजन कर कैलाश विदा करने भक्त जाते हैं। नंदा देवी की वार्षिक जात में हजारों भक्त शामिल होते हैं। कुरुड़-दशोली की जात सप्तकुंड बालपाटा व राजरोजश्वरी की डोली जात बेदनी में समाप्त होती है। उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है। सिद्धपीठ कुरुड़ में नवरात्रों पर सुबह-शाम मां नंदा देवी की पूजा अर्चना होती है। श्रद्धालुओं के लिए दिनभर मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। यह मंदिर सालभर पूजा अर्चना के लिए खुला रहता है।

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इतिहास 

दक्ष पुत्री सती का विवाह कैलाशपति शिव से होने का प्रमाण पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। दूसरे जन्म में सती हिमालय पुत्री होकर पार्वती नाम से विख्यात हुई और तपस्यारत रहकर त्रिलोकपति शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया। मां पार्वती को ही गौरा, नंदा नामों से जाना गया। मां नंदा देवी मंदिर की स्थापना को लेकर माना जाता है कि जब कन्नौज के राजा यशधवल हिमालय की यात्रा पर आए थे तो उन्होंने यहां पर अपनी ईष्ट देवी नंदा की स्थापना की थी।

इस तरह पहुंचे मां नंदा भगवती सिद्धपीठ 

ऋषिकेश से सिद्धपीठ कुरुड़ पहुंचने के लिए 190 किमी नंदप्रयाग तक हाईवे से पहुंचने के बाद यहां से नंदप्रयाग घाट मोटर मार्ग पर नंदप्रयाग से 25 किमी दूरी पर कुरुड़ में नंदा देवी का सिद्धपीठ मौजूद है। नंदप्रयाग से कुरुड़ मंदिर तक टैक्सी, बस के अलावा छोटे बड़े वाहनों की सुविधा उपलब्ध है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है। मंदिर तक सड़क सुविधा न होने के कारण इस सिद्धपीठ में पैदल आवाजाही होती है। 

निर्माण शैली 

पुराने समय में मां नंदा का मंदिर सामान्य स्थानीय भवन शैली में बनाया गया था। इसमें पत्थर के पठाल के साथ लकड़ी से छत बनाई गई थी। बाद में इसे पक्का निर्माण कर मंदिर को भब्य रूप दिया गया है।

धार्मिक मान्‍यता

उत्तराखंड में मां नंदा को बहन, मां, बेटी के रूप में पूजा जाता है। सिद्धपीठ कुरुड़ में नवरात्रों पर सुबह-शाम मां नंदा देवी की पूजा अर्चना होती है। श्रद्धालुओं के लिए दिनभर मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। यह मंदिर सालभर पूजा-अर्चना के लिए खुला रहता है। मां नंदा को शिव की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।  

नंदा देवी कुरुड़ मंदिर के पुजारी किशोर चंद्र गौड़ बताते हैं कि नंदा देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की प्रत्येक मनोकामना पूरी होती है। नवरात्रों में मां की पूजा फलदायी मानी जाती है। इस दौरान नौ दिनों तक श्रद्धालु लगातार यहां पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं। कुरुड़ में मां को नंदा देवी के रूप में पूजा जाता है। 

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इसे देवी का अवतार माना जाता है। प्रतिवर्ष खेतों में होने वाली फसल को अपने उपयोग में लाने से पूर्व ग्रामीण मां नंदा के लिए अलग से रखते हैं। इसे नाली का नाम देकर पुजारियों के माध्यम से मां नंदा के प्रसाद के लिए सर्मिपत किया जाता है। मां नंदा को यहां कुलदेवी के साथ - साथ ध्याणी के रूप में माना जाता है। प्रतिवर्ष लोकजात के माध्यम से नंदा की डोली गांव-गांव भ्रमण कर अपने भक्तों को आर्शीवाद देती हैं। 

 

पंडित राजेश गौड़ (पुजारी नंदा देवी कुरूड़ मंदिर) का कहना है कि मां नंदा देवी का मंदिर कुरूड़ में पौराणिक है। इसे सिद्धपीठ भी माना जाता है। मान्यता है कि मां नंदा देवी की पूजा अर्चना कर श्रद्धालु शिव से भी कृपा का अधिकारी हो जाता है।

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सुरेंद्र सिंह (सचिव मंदिर समिति कुरूड़) का कहना है कि सिद्धपीठ मां नंदा धाम कुरूड़ में मां नंदा की पूजा से मन इच्छित फल मिलता है। मां नंदा का इस क्षेत्र में मायका बताया गया है। इसलिए लोग मां नंदा को ध्याणी के रूप में पूज कर उसे उपहार देते हैं। मंदिर समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में पूजा के अलावा ठहरने की भी व्यवस्था की गई है। यह मंदिर वर्ष भर खुला रहता है। 

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