पर्यावरणीय सेवाओं के लिए उत्तराखंड मांग रहा ग्रीन बोनस, पढ़िए पूरी खबर
71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनों से सालाना मिलने वाली 95 हजार करोड़ की पर्यावरणीय सेवाओं का राज्य और इससे बाहर कितना उपयोग हो रहा है इसे लेकर जल्द तस्वीर साफ होगी।
देहरादून, केदार दत्त। 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनों से सालाना मिलने वाली 95 हजार करोड़ की पर्यावरणीय सेवाओं का राज्य और इससे बाहर कितना उपयोग हो रहा है, इसे लेकर जल्द तस्वीर साफ होगी। इस सिलसिले में नियोजन विभाग अध्ययन की तैयारी कर रहा है। यह रिपोर्ट आने के बाद आने वाले दिनों में सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) का सूचकांक बनाने में मदद मिलेगी। यही नहीं, निकट भविष्य में उत्तराखंड के लिए ग्रीन बोनस तय करने में भी यह मददगार साबित होगा।
नियोजन विभाग की ओर से हाल में राज्य के वनों से मिलने वाली पर्यावरणीय सेवाओं का आकलन कराया गया। इसमें जलौनी लकड़ी, चारा, गैर प्रकाष्ठ वनोत्पाद, रोजगार सृजन, आनुवांशिक विविधता संरक्षण समेत 18 बिंदुओं को शामिल किया गया।
आकलन में बात सामने आई कि यहां के जंगलों से सालाना 95102 करोड़ रुपये की पर्यावरणीय सेवाएं मिल रही हैं। बता दें कि वनों के संरक्षण और पर्यावरणीय सेवाओं के मद्देनजर ही उत्तराखंड ग्रीन बोनस की मांग भी कर रहा है।
अब भले ही वनों से सालाना मिलने वाली पर्यावरणीय सेवाओं को लेकर तस्वीर साफ हो गई हो, मगर उत्तराखंड इनका कितना उपयोग कर रहा है, इसे लेकर रहस्य अभी भी बरकरार है। नियोजन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अब इस विषय पर अध्ययन कराने की तैयारी है।
इसमें यह फोकस किया जाएगा कि राज्य में पर्यावरणीय सेवाओं का कितना उपयोग हो रहा है। यही नहीं, इससे यह भी साफ हो सकेगा कि इन पर्यावरणीय सेवाओं का देश के अन्य हिस्सों के लोग कितना लाभ उठा रहे हैं। यह पहल आने वाले दिनों में राज्य का सकल पर्यावरणीय उत्पाद (उत्पाद) का सूचकांक तैयार करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।
पूरी हो सकेगी ग्रीन बोनस की साध
यह किसी से छिपा नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण में उत्तराखंड अहम भूमिका निभा रहा है। वन कानूनों की बंदिशों के साथ ही वन्यजीवों के लगातार हमलों के बाद भी राज्य अपने वन क्षेत्र को महफूज रखे हुए है। इन वनों के बूते ही राज्य समेत देश को तमाम तरह की पर्यावरणीय सेवाएं मिल रही हैं।
इस सबको देखते हुए राज्य क्षतिपूर्ति के रूप में केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग कर रहा है। माना जा रहा है कि अब नियोजन विभाग की नई अध्ययन रिपोर्ट सामने आने पर इस मुहिम को संबल मिलेगा।
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