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    देहरादून की हवा हुई जहरीली, AQI हुआ 300 के पार; दिल्ली और बागपत जैसे हुए हालात

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 12:22 AM (IST)

    देहरादून की वायु गुणवत्ता गंभीर रूप से बिगड़ गई है, लगातार दो दिनों से एक्यूआइ 300 के पार 'बेहद खराब' श्रेणी में है। सोमवार को यह 312 दर्ज किया गया। श ...और पढ़ें

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    देहरादून के पटेलनगर स्थित देहराखास क्षेत्र में छाया घना कोहरा। जागरण

    जागरण संवाददाता, देहरादून: राजधानी देहरादून की आबोहवा गंभीर रूप से बिगड़ गई है। लगातार दो दिनों से शहर की हवा ‘बेहद खराब’ श्रेणी में बनी हुई है। सोमवार को देहरादून का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 312 दर्ज किया गया, जबकि रविवार को यह 301 रहा। हालात ऐसे हैं कि देहरादून अब दिल्ली और बागपत जैसे अत्यधिक प्रदूषित शहरों की कतार में खड़ा दिख रहा है।

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    इन दिनों मैदानी क्षेत्रों में छाई घनी धुंध और कोहरे की चादर के कारण प्रदूषण शहर के ऊपर ही अटका हुआ है। इससे खासकर सांस के मरीजों, बुजुर्गों और बच्चों के लिए खतरा बढ़ गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले दिनों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और गंभीर हो सकती हैं।

    चिंताजनक पहलू यह है कि यह उच्च एक्यूआइ दून विश्वविद्यालय की आब्ज़र्वेटरी में दर्ज किया गया है, जो शहर के भीड़भाड़ वाले इलाकों से अपेक्षाकृत दूर स्थित है। ऐसे में घंटाघर, प्रिंस चौक, गांधी रोड और अन्य व्यस्त क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर इससे भी अधिक होने की आशंका जताई जा रही है।

    विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों में बनने वाली धुंध और कोहरे की परत प्रदूषक कणों को वातावरण में फंसा देती है। वाहनों से निकलने वाला धुआं, कूड़ा जलाने की घटनाएं और खुले में अलाव जलाना स्थिति को और गंभीर बना रहे हैं। दून घाटी में स्थित होने के कारण यहां हवा की गति धीमी रहती है, जिससे प्रदूषण का फैलाव नहीं हो पाता। ठंडी और सघन हवा के कारण पीएम-2.5 जैसे महीन कण लंबे समय तक हवा में तैरते रहते हैं, जो सीधे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं।

    उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पोखरियाल के अनुसार सर्दियों में प्रदूषण छंट नहीं पाता और हवा में ही जमा रहता है, जिससे एक्यूआइ लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि तापमान बढ़ने और ठंड कम होने के बाद ही स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। चिकित्सकों का कहना है कि एक्यूआइ 200 के पार पहुंचते ही स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ने लगता है।

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