राजाजी से सटे गांवों में बदला फसल पैटर्न, लेमग्रास खेती ने बदली तस्वीर
राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन की पहल पर टीरा गांव के किसानों ने फसल पैटर्न बदला और जंगल से लगे 50 बीघा खेतों में लैमनग्रास की खेती की। जिससे उनको काफी फायदा हुआ।
देहरादून, केदार दत्त। राजाजी टाइगर रिजर्व से सटे टीरा गांव में न सिर्फ हाथी समेत दूसरे वन्यजीवों का खौफ बेहद कम हो गया है, बल्कि वहां के दस किसानों को अच्छी-खासी आमदनी भी हो रही है। बदलाव की यह बयार यूं नहीं आई। रिजर्व प्रशासन की पहल पर इस गांव के किसानों ने फसल पैटर्न बदला और जंगल से लगे 50 बीघा खेतों में गन्ना, गेहूं, मक्का और चने की जगह शुरू की लैमनग्रास की खेती।
पहली कटाई में ही उत्साहजनक नतीजे आए। लैमनग्रास से तेल मिला 70 किलोग्राम और आमदनी हुई 36960 रुपये, जो गन्ना समेत अन्य फसलों के मुकाबले कहीं अधिक है। इसे देखते हुए न सिर्फ टीरा गांव के दूसरे किसान, बल्कि तीन अन्य गांवों के लोगों ने भी यह खेती करने का प्रस्ताव दिया है। इससे उत्साहित रिजर्व प्रशासन ने फसल पैटर्न में बदलाव की इस मुहिम को तेजी से आगे बढ़ाने की ठानी है।
देहरादून, हरिद्वार और पौड़ी जिले के 1075 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले राजाजी टाइगर रिजर्व की सीमा से 150 से अधिक गांव लगे हैं। इन गांवों में हाथी, सूअर, सेही, बाघ, गुलदार जैसे जानवरों ने ग्रामीणों की दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाई हुई है। जंगल से सटे खेतों का तो आलम ये है कि वहां किसान फसल जरूर बोते हैं, मगर वन्यजीवों द्वारा इसे चौपट कर दिए जाने के कारण हासिल कुछ नहीं होता। इस सबको देखते हुए ऐसे उपायों को लेकर पर मंथन हुआ, जिससे वन्यजीव जंगल की देहरी न लांघें और किसानों को फायदा भी हो।
रिजर्व के निदेशक सनातन समेत अन्य कर्मियों ने गांवों में गठित ईको डेवलपमेंट समितियों (ईडीसी) के जरिये ग्रामीणों के साथ कई दौर की बैठकें की। तय हुआ कि यदि सगंध खेती की जाए तो वन्यजीवों की दिक्कत से छुटकारा मिल सकता है। इस कड़ी में जंगली जानवरों की समस्या से सर्वाधिक त्रस्त टीरा गांव में सगंध फसल लैमनग्रास की खेती का निश्चय किया गया। 10 किसान इसके लिए तैयार हुए और फिर उनके जंगल से लगे 50 बीघा खेतों में पिछले साल अगस्त में लैमनग्रास के पौधे रोपे गए।
रिजर्व प्रशासन ने यह पौध मुहैया कराई और इसके रोपण का खर्च भी उठाया। ईडीसी टीरा के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह राठौर के मुताबिक लैमनग्रास लगाने के बाद जंगली जानवरों का गांव की ओर रुख करना थम गया। कोई भी जानवर लैमनग्रास को खाता नहीं है। फिर यह घास इतनी ऊंची होती है कि हाथी समेत दूसरे जंगली जानवर इसकी दीवार को देख वापस जंगल की ओर मुड़ जा रहे हैं। राठौर बताते हैं कि लैमनग्रास की पहली कटाई कर इससे 70 किलोग्राम तेल प्राप्त हुआ, जिसे 1320 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा गया। यह तेल कॉस्मैटिक सामग्री तैयार करने में इस्तेमाल होता है।
वह बताते हैं कि लैमनग्रास से सालभर में चार फसलें ली जाती हैं। इससे होने वाली आय गन्ना समेत अन्य फसलों से होने वाली आय से तीन गुना अधिक है। अब गांव के अन्य किसानों ने भी लैमनग्रास की खेती के लिए प्रस्ताव दिया है।
अन्य गांवों में भी फैलेगी मुहिम
राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक सनातन के अनुसार टीरा गांव में हुई इस पहल को अब रिजर्व से सटे अन्य गांवों में भी तेजी से फैलाया जाएगा। हजारा, बंदरजूड, हजारा टोंगिया समेत कुछ गांवों ने बाकायदा प्रस्ताव भी दे दिए हैं। वह कहते हैं कि लैमनग्रास के साथ ही क्षेत्र के गांवों में अन्य सगंध फसलों की खेती पर भी जोर दिया जाएगा। इससे रिजर्व से सटे गांवों में मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने में भी मदद मिलेगी।
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