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    कांग्रेस में दिग्गजों को रास नहीं आ रही है एकजुटता, पढ़िए पूरी खबर

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    Updated: Sun, 14 Jul 2019 06:23 PM (IST)

    विधानसभा और लोकसभा चुनावी जंग में हाशिए पर पहुंच चुकी कांग्रेस के दिग्गजों को करारी हार के बाद भी एकजुटता रास नहीं आ रही है।

    कांग्रेस में दिग्गजों को रास नहीं आ रही है एकजुटता, पढ़िए पूरी खबर

    देहरादून, राज्य ब्यूरो। प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनावी जंग में हाशिए पर पहुंच चुकी कांग्रेस के दिग्गजों को करारी हार के बाद भी एकजुटता रास नहीं आ रही है। दो अपेक्षाकृत छोटे नगर निकायों के अध्यक्ष पदों के चुनाव में मिली कामयाबी से पार्टी में उत्साह तो है, लेकिन क्षत्रपों के सुर अलग-अलग ही हैं। पार्टी संगठन और बड़े नेताओं के अलग-अलग एजेंडे ने कार्यकर्ताओं को भी धड़ों में बंटने को मजबूर कर दिया है। 

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    प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ 15 जुलाई को फिर बिगुल फूंका है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एक बार फिर सियासी अलख जगाने को पैदल मार्च करेंगे। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय वनाधिकार आंदोलन के बूते गैर कांग्रेसी दलों व विभिन्न संगठनों को साथ लेकर अलग कदमताल करते दिख रहे हैं। प्रदेश में मजबूत सियासी आधार रखने वाली कांग्रेस की मुश्किलें वर्ष 2014 के बाद बढ़ती गई हैं। मोदी लहर के चलते वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव और फिर 2017 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह शिकस्त मिली। 
    इसके बाद प्रदेश कि दिग्गजों ने एकजुट होकर भाजपा को खदेड़ने का इरादा जाहिर तो किया, लेकिन इसे कभी शिद्दत से जमीन पर उतरने नहीं दिया गया। भाजपा को शिकस्त देने से ज्यादा पार्टी नेता प्रदेश की सियासत में एकदूसरे को मात देने के खेल में ज्यादा जुटे दिखाई दे रहे हैं। प्रदेश में पार्टी तीन धड़ों में बंटी दिखाई दे रही है। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की मजबूत सियासी जोड़ी को इस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत खेमे से कड़ी चुनौती मिल रही है। 
    वहीं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कांग्रेस के कार्यक्रमों से अधिक खुद के वनाधिकार आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने में जुटे हैं। खास बात ये है कि हाल में लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ हो चुका है। बावजूद इसके कांग्रेस नेताओं में एकजुट होकर भाजपा से मुकाबला करने की इच्छाशक्ति पनपती दिख नहीं रही है। पार्टी क्षत्रपों की निगाहें अब वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावी जंग पर टिकी हैं। इसे ध्यान में रखकर चल रही अंदरखाने वर्चस्व की लड़ाई बड़े नेताओं की राहें अलहदा करती दिख रही है। 
    गैरसैंण में भूमि खरीद-फरोख्त से पाबंदी खत्म करने के भाजपा सरकार के फैसले के खिलाफ और आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत बीते रोज गैरसैंण में सक्रिय रहे तो अगले ही दिन यानी शनिवार को उन्होंने 15 अगस्त से पैदल मार्च शुरू करने का एलान भी किया है। प्रदेश संगठन के कार्यक्रम को लेकर उनमें खिंचाव देखा जा रहा है। नेताओं के अलग-अलग तलवारें भांजने से फिलहाल प्रदेश की सियासत में दिलचस्प नजारा नुमायां जरूर हो रहा है।