उत्तराखंड भाजपाः दशरथ को मिला ताज, अब किसे होगा वनवास
भाजपा संगठन के मुखिया की दौड़ में जिस तरह बंशीधर भगत ने बाजी मारी उससे हर कोई हैरान है। सियासी हलकों में एक दिलचस्प सवाल गूंज रहा है कि अब वनवास किसे भुगतना पड़ेगा।
देहरादून, विकास धूलिया। भाजपा संगठन के मुखिया की दौड़ में जिस तरह बंशीधर भगत ने बाजी मारी, उससे हर कोई हैरान है। इन दिनों भाजपा का परचम फहरा रहा है तो प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में दावेदारों की कतार लाजिमी तौर पर लंबी होनी ही थी।
सियासी तजुर्बे के लिहाज से अत्यंत वरिष्ठ भगत के सादगीभरे व्यक्तित्व का एक पहलू और भी है। वह रामलीला में राजा दशरथ का किरदार निभाते हैं। अब संगठन मुखिया पद पर राजा दशरथ की ताजपोशी हो गई तो सियासी हलकों में एक दिलचस्प सवाल गूंज रहा है। वह यह कि अब वनवास किसे भुगतना पड़ेगा। न चाहते हुए भी अपने वचन से बंधे राजा दशरथ को भगवान राम को वनवास पर भेजना पड़ा था। कहीं ऐसा न हो कि भगत जी ने भी किसी से कमिटमेंट किया हो और वह अब ताजपोशी के बाद किसी पर भारी पड़ जाए।
तीन अनार और 40 की कतार
इन दिनों सूबे की सियासत का सबसे हॉट टापिक है मंत्रिमंडल का विस्तार। सब की नजरें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर टिकी हैं कि उनकी नजर ए इनायत आखिर किस पर होती है। मंत्रिमंडल में तीन स्थान खाली हैं। मुखिया जी भी गहरी पसोपेश में हैं कि किसे अपनी टीम में मौका दें।
पांच पूर्व मंत्री, अब इनमें से एक संगठन में चले गए यानी चार रह गए, तो हैं ही, इनके अलावा 40 से ज्यादा विधायक भी अपना नंबर लगने की उम्मीद पाले बैठे हैं। मुख्यमंत्री खुद कह चुके हैं कि अब पद भरने की जरूरत महसूस होने लगी है।
उस पर संगठन के नए मुखिया भी चाहते हैं कि जल्द से जल्द खाली पड़ी कैबिनेट बर्थ विधायकों को आवंटित कर दी जाएं। अब देखना यह है कि वे तीन किस्मत वाले कौन होंगे, जिन्हें तीन साल बाद ही सही, सत्ता सुख तो मिलेगा।
प्रीतम मेरे, अब मान भी जाओ
इधर भाजपा ने संगठन के नीचे से ऊपर तक के सांगठनिक चुनाव निबटा डाले, उधर सूबाई कांग्रेस के मुखिया प्रीतम सिंह ढाई साल से अपनी टीम फाइनल ही नहीं कर पा रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब पिछले छह सालों में पार्टी के तमाम क्षत्रप दामन झटक भाजपा में जा चुके हैं। गिने-चुने नेता पार्टी का झंडा बुलंद कर रहे हैं मगर आपसी तकरार इतनी कि जाने वालों की कमी कतई नहीं खल रही।
प्रीतम भी क्या करें, छोटे से सूबे में अब तक जंबो टीम की रवायत चली आ रही है। इसमें काटछांट करें तो पता नहीं कौन नाराज होकर मोर्चा खोल बैठे। वैसे भी सूबे में पार्टी के सबसे बड़े दिग्गज हरदा हरदम सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं। उन्हें कहीं कोई बात खल गई तो अगली पोस्ट के निशाने पर आना तय है। इसलिए अब तो प्रीतम का धर्मसंकट देख उनसे हमदर्दी सी होने लगी है।
वाह दादा, छोटा पैकेट, बड़ा धमाका
बात हो रही है यहां छोटे मंत्री जी, यानी धनसिंह रावत की। कदकाठी में छोटे हैं, लेकिन जिम्मा संभाल रहे हैं उच्च शिक्षा का। पिछले तीन साल से बखूबी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि छात्र उन्हें मंत्री नहीं, हेडमास्टर ज्यादा कहते हैं। मंत्री हैं कि शरारती छात्रों के इस कमेंट को भी कॉंप्लीमेंट के तौर पर लेते हैं।
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शुरुआत में ही फरमान जारी कर डाला कि कॉलेजों में अब छात्र-छात्राओं को यूनिफॉर्म पहननी होगी। इसका क्या असर हुआ, किसी को बताने की जरूरत नहीं। हाल ही में कॉलेजों में मोबाइल बैन करने की मंशा जता उन्होंने नया पंगा ले लिया। रिएक्शन वही हुआ, जिसका अंदेशा था। हालांकि, उन्होंने अब यह कह सफाई दे दी है कि उनका मकसद कैंपस नहीं, क्लास रूम्स में मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक की है।
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