फिल्म ‘यारसा गंबू’ रिलीज होने से पहले ही आई सुर्खियों में, NFDC ने दिया स्पेशल मेंशन अवार्ड
उत्तराखंडी फिल्म 'यारसा गंबू', जो उच्च हिमालय की कीड़ाजड़ी पर आधारित है, रिलीज से पहले ही सुर्खियों में है। एनएफडीसी ने फिल्म को स्पेशल मेंशन अवार्ड द ...और पढ़ें

उत्तराखंडी फिल्म 'यारसा गंबू', जो उच्च हिमालय की कीड़ाजड़ी पर आधारित है, रिलीज से पहले ही सुर्खियों में है।
संस, जागरण, रानीखेत :उच्च औषधीय गुणों से भरपूर उच्च हिमालय की अनूठी कीड़ाजड़ी पर बनी उत्तराखंडी फिल्म ‘यारसा गंबू’ रिलीज होने से पहले ही सुर्खियों में आ गई है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) ने सीमांत दारमा घाटी व पंचाचुली के बुग्यालों में फिल्माई गई इस फिल्म को सांस्कृतिक पहलुओं व प्रासंगिकता को दर्शाने के लिए पोस्ट प्रोडक्शन श्रेणी में स्पेशल मेंशन अवार्ड दिया है।
वहीं इसका चयन साउथ एशिया की टाप-फाइव फिल्मों में किया है, जो पहली पर्वतीय फिल्म है। इसमें निर्माता ने उच्च हिमालय की दुश्वारियों, कीड़ाजड़ी संग्रहण को रंग्पा समाज के मेहनतकश ग्रामीणों के संघर्ष को बखूबी दर्शाया है। साथ ही उत्तराखंड की इस दुर्लभ हिमालयी संपदा को देश की प्रयोगशालाओं तक पहुंचाने और इसे सीमांत के स्वरोजगार से जोड़ने का संदेश दिया है।
हिमालयी बाशिंदों की जीवटता, रीति रिवाज, संस्कृति व संघर्ष को दर्शाने और हिमालयी संपदा यारसा गंबू (गुंबा) के संरक्षण के मकसद से पांच माह पूर्व फिल्म बनाने का जोखिम लिया गया। सूर्यमंदिर समिति कटारमल (अल्मोड़ा) के सदस्य व निर्माता कुंदन सिंह बिष्ट व युवा फिल्मकार समर बेलवाल ने बतौर निर्देशक पटकथा तैयार की।
चूंकि कीड़ाजड़ी हिमालयी लोगों की आजीविका के साधनों में से जुड़ी है लिहाजा केंद्र में यारसा गंबू को रखा गया। पूरी टीम दारमा घाटी पहुंची। उन्होंने बताया कि सभी सदस्य शूटिंग के लिए रोजाना बुग्यालों तक पहुंचने के बाद घाटी में उतर आते थे। फिल्म में उत्तराखंड की संस्कृति और प्रकृति की झलक को दर्शाने के साथ ही हिमालयी समाज के संघर्ष, सच्चाई, मौसम की दुश्वारियां व जीवन की जटिलताओं को भी उभारा गया। इसमें स्थानीय महिला पुरुषों व बच्चों ने बखूबी किरदार निभाया।
अंतरराष्ट्रीय कलाकार रुपेश लामा व संगीता थापा फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। करीब ढाई वर्षीय लव्यांशी दुग्ताल पूरे कथानक में छाई हैं। अन्य कलाकार अभिराज दत्ताल भी अहम रोल में हैं। निर्माता कुंदन सिंह व निर्देशक समर बेलवाल ने बताया कि यारसा गंबू महज फिल्म नहीं, बल्कि हिमालयी बाशिंदों के संघर्ष और अनसुनी कहानी बयां करती है। फिल्म निर्माण में एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर योगेश सती, प्रायोजक राजेंद्र सिंह कैड़ा, रमेश पांडेय आदि का योगदान रहा।
80 मिनट की है फिल्म
फिल्म 80 मिनट की है। इसे बनाने में पांच माह लगे। फिर निर्माता निर्देशक ने एनएफडीसी में चयन के लिए आवेदन किया। उन्होंने बताया कि इसके लिए नियुक्त ज्यूरी ने फिल्म यारसा गंबू की सांस्कृतिक प्रासंगिकता, कलात्मक गुणवत्ता आदि का मूल्यांकन किया। गुरुवार को कटारमल पहुंची टीम ने बताया कि गोवा में इफ्फी के समारोह उनकी यारसा गंबू फिल्म साउथ एशिया की टाप-फाइव में चयनित कर ली गई है। अब यह इंटरनेट पर अपलोड की जाएगी।

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