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    पिता के 'झोले' में घुटती रही बिटिया की जान, असल वजह जानकार आप भी चौंक जाएंगे

    Updated: Thu, 07 Aug 2025 12:59 PM (IST)

    Varanasi news पिता के झोले में घुटती बिटिया की जान की कहानी आपको भी चौंका देगी। रामनगर के झोलाछाप डाक्टर ने गलत इलाज की वजह से बेटी की जान मुश्किल में डाल दी। लंबे समय तक एंटीबायोटिक के प्रयोग से सेहत बिगड़ गई तो बीएचयू अस्पताल में टीबी की पुष्टि हुई।

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    शहर में पांच हजार फर्जी चिकित्सक बांट रहे हैं मौत।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। रामनगर में एक झोलाछाप डाक्टर की करतूत से उसकी अपनी ही बेटी की जान 'झोले' में घुटने लगी। वह अपने घर पर 10 साल से दवाखाना चलाता रहा, लेकिन उसकी कोई डिग्री नहीं है।

    दो माह पहले उसकी 15 साल की बेटी रोशनी (परिवर्तित नाम) की तबीयत खराब हो गई। तेज बुखार हुआ तो उसने एंटीबायोटिक दवा दी लेकिन वह ठीक नहीं हुई। उसकी हालत कई बार खराब होती लेकिन उसने चंद दूरी पर स्थित सरकारी अस्पताल ले जाना मुनासिब नहीं समझा। उसने खुद से ही नीली-पीली 'गोलियों' से बेटी को स्वस्थ करने की जिद पकड़ ली।

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    धीरे-धीरे 50 दिन गुजर गए। इस बीच बेटी का वजन करीब 10 किग्रा घट गया। उसे लगातार खांसी आ रही थी। कई बार तो खांसी में खून भी आता। रात में बहुत पसीना भी होने लगता। थकान व कमजोरी से उसे उठने-बैठने में तकलीफ होने लगी। उसकी इस तरह सांस घुटती, मानो वह अब नहीं जी पाएगी। एक दिन हालत काफी बिगड़ गई। झोलाछाप डाक्टर बेटी को लेकर बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल की इमरजेंसी पहुंचा।

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    हालत स्थिर हाेने पर उसे जनरल मेडिसिन विभाग रेफर किया गया। एक्सरे कराया तो संक्रामक बीमारी टीबी (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) की पुष्टि हो गई, लेकिन उसके फेफड़े काफी कमजोर हो गए थे। संक्रमण शरीर के दूसरे अंगों में भी फैलने लगा। रामनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से मरीज को जोड़ा गया। निश्शुल्क एंटी-टीबी दवाएं शुरू की गईं। डाट्स थेरेपी से उसे दो महीने में काफी आराम हो चुका है। सीएचसी में ही निश्शुल्क नियमित जांच हुई और डाक्टरों से परामर्श मिला।

    बीएचयू अस्पताल का यह केस तो सिर्फ बानगीभर है। दरअसल, शहर हो या गांव, हर जगह करीब साढ़े पांच हजार गैर पंजीकृत झोलाछाप डाक्टर बीमार लोगों को 'स्वस्थ जिंदगी' का सब्जबाग दिखाकर मौत बांट रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की फाइलों में साढ़े सात सौ डाक्टर ही पंजीकृत हैं। बेबस जिंदगियां बेपरवाह सिस्टम के आगे रहम की भीख मांग रही हैं।

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    समय से उपचार शुरू होने पर टीबी रोगी को तकलीफ नहीं होती : डा. संतोष

    बीएचयू में जनरल मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि टीबी पूरी तरह से ठीक होने वाली बीमारी है, बशर्ते समय पर सही इलाज मिल जाए। इस केस में देर बहुत हो गई थी लेकिन बेटी अब ठीक है। कथिक डाक्टर पिता को टीबी के लक्षणों की पहचान करने में चूक हुई। बीएचयू अस्पताल में सिर्फ सौ रुपये में एक्सरे हाे गया और बीमारी पकड़ में आ गई। खुद इलाज करने के बजाय पिता को सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में जाना चाहिए था, इससे समस्या बढ़ने से रोका जा सकता था।

    कानूनी प्रविधान और सजा

    भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम केवल पंजीकृत डाक्टरों को ही चिकित्सा सेवा की अनुमति देता है। जो व्यक्ति एमबीबीएस या समकक्ष मान्यता प्राप्त डिग्री के बिना इलाज करता है, वह फर्जी माना जाता है। सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के अंतर्गत अस्पतालों, क्लीनिकों और लैब्स का पंजीकरण आवश्यक है।

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    जागरण विचार

    आम लोगों को जागरूक करना चाहिए कि वे केवल पंजीकृत डाक्टर से ही इलाज करवाएं। अगर किसी को संदेह है कि कोई बिना डिग्री इलाज कर रहा है तो शिकायत स्थानीय स्वास्थ्य विभाग या पुलिस में करनी हाेगी। सरकार को गांव-गांव में योग्य डाक्टर और क्लिनिक की सुविधा देनी होगी। ऐसे फर्जी डाक्टरों के लिए कड़ी सजा और निगरानी प्रणाली लागू करनी होगी।

    केस 1 : सेवापुरी के माधवपुर सिकंदरपुर के 74 वर्षीय मरीज रामनाथ को रक्तचाप की समस्या थी। 11 जून को हालत अधिक बिगड़ने पर गांव के ही झोलाछाप बंगाली चिकित्सक ने 1250 रुपये में 16 तरह की दवाएं दीं लेकिन राहत मिलने के बजाय शरीर में गंभीर एलर्जिक रिएक्शन हो गया। त्वचा पर छाले और गंभीर जलन होने लगी, बीएचयू अस्पताल रेफर करना पड़ा।

    केस 2 : काशी विद्यापीठ के छितौनी गांव में 17 साल के मोहम्मद साहिल को डेंगू हुआ था। आठ अक्टूबर 2023 को कज्जाकपुरा के एक झोलाछाप डाक्टर के गड़बड़ इलाज के कारण उसकी मौत हो गई। ग्रामीण का आरोप है कि इस गांव मेें सेहत सुविधाएं बेहतर नहीं होेने के कारण ही उन्हें ऐसे कथित डाक्टरों के पास जाना पड़ता है।

    बोले च‍िक‍ित्‍सक

    फर्जी अस्पताल और क्लीनिक को रोकने के लिए पहले भी मंडल के सभी सीएमओ को कहा गया है, जिससे किसी मरीज और उनके तीमारदार को परेशान न होना पड़े। -- डा. मंगला सिंह, अपर निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, वाराणसी मंडल

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