अनंत चतुर्दशी पर सनातनियों ने रखा व्रत, सुनी कथा, जैन मतावलंबियों ने मनाया पर्युषण का उत्तम ब्रह्मचर्य
वाराणसी में शनिवार के दिन सनातन धर्मियों ने अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की पूजा की जबकि जैन मतावलंबियों ने पर्युषण पर्व के अंतिम दिन भगवान वासुपूज्य के मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया। इस अवसर पर उत्तम ब्रह्मचर्य पर विमर्श किया गया और इसके पालन का संकल्प लिया गया।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी पर शनिवार को सनातन धर्मालंबियों ने जहां अनंत चतुर्दशी का व्रत रखकर क्षीरशायी भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की, वहीं जैन मतावलंबियों ने पर्युषण पर्व के अंतिम दसवें दिन अपने 12वें तीर्थंकर 1008 भगवान वासुपूज्य के मोक्ष कल्याणक दिवस को हर्षोल्लास के साथ मनाया।
वहीं, उत्तम ब्रह्मचर्य पर विमर्श कर उसके पालन का संकल्प लिया। इसी के साथ ही दस दिनों से चल रहे गणेशोत्सव को विराम दिया गया और भगवान गणपति की प्रतिमाओं का विधिपूर्वक विसर्जन किया गया। इस दौरान आस्थावानों की भीड़ भी मंदिरों में उमड़ी।
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अनंत चतुर्दशी पर्व पर सनातन धर्मावलंबियों ने व्रत रखा और भगवान अनंत की कथा का पाठ व श्रवण किया। लक्सा क्षेत्र में महालक्ष्मी कुंड पर चल रहे सोरहिया मेले में व्रतियों की भीड़ उमड़ी। व्रती महिलाओं ने मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया।भक्तों ने मां लक्ष्मी को चढ़ाया हुआ प्रसाद स्वरूप 16 गांठों से युक्त अनंतसूत्र अपने हाथों में बांधा। व्रतियों ने भोजन में नमक, चावल, दही आदि सफेद पदार्थों को वर्जित रखा।
भगवान वासु पूज्य के मोक्ष कल्याण दिवस पर भगवान सु पार्श्वनाथ की जन्मस्थली स्थित श्रीभदैनीजी दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र में प्रातः काल अभिषेक के बाद संपूर्ण विश्व में शांति हेतु आत्म कल्याण हेतु बृहदशांति धारा की गई। इसके बाद भगवान वासुपूज्य पूजन निर्वाणकांड भाषा के बाद निर्वाण लाडू चढ़ाया गया।
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भगवान वासुपूज्य के पांचों कल्याणक गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष चंपापुर क्षेत्र में हुए। उसके बाद सोलह कारण पूजा, दशलक्षण पूजा, रत्नत्रय पूजा, सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान की पूजा हुई। सायंकाल भव्य आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए।
आचार्य सुरेंद्र कुमार जैन ने पंचायती मंदिर में प्रवचन में कहा कि आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य है। ब्रह्म मतलब निजात्मा और चर्य का अर्थ है आचरण करना। रागोत्पादक साधनों के होने पर भी उनसे विरक्त होकर आत्मोन्मुखी बने रहना ब्रह्मचर्य है। यह 10 धर्म हमें सभी से क्षमा कर कर आत्मा में रमने की शिक्षा देते हैं। ये दशधर्म परमात्मा तक पहुंचाने के लिए सीढ़ी के समान हैं।
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