कौशांबी जेल में सजा काट रहे बंदी सीख रहे हुनर, बनाएंगे 13 हजार काऊ कोट, गोशाला के मवेशियों को ठंड से बचाएगी
कौशांबी जिला कारागार में बंद कैदियों को 13 हजार काऊ कोट बनाने का ठेका मिला है। ये कैदी पुराने कंबल और जूट के बोरों का उपयोग करके काऊ कोट बना रहे हैं, ...और पढ़ें

कौशांबी जिला कारागार में काऊ कोट तैयार करते बंदी। सौजन्य : जेल प्रशासन
जागरण संवाददाता, कौशांबी। सलाखों के पीछे जाने का ख्याल चाहे इंसान को आए या परिंदें को... एक खौफनाक तस्वीर सामने कौंधनी लाजिमी है। लेकिन अब कारागार सिर्फ सजा भुगतने की जेल नहीं, बल्कि सुधार गृह में तब्दील हो चुकी है। गुनाहों का प्रायश्चित करने के साथ ही यहां आने वाले बंदियों को हुनर सिखाया जा रहा है। मकसद है कि जेल से आजाद होने के बाद बंदी नेक इंसान बनकर खुद आत्म निर्भर बन सकें व घर-परिवार की आर्थिक स्थिति को सहारा दे सकें।
13 हजार काऊ कोट बनाएंगे बंदी
ऐसा ही एक अनूठा प्रयोग जिला कारागार में किया जा रहा है। यहां निरुद्ध बंदियों को एक-दो नहीं, बल्कि 13 हजार काऊ कोट तैयार करने का अनुबंध विकास विभाग की तरफ से दिया गया है। बंदी पूरी लगन के साथ काऊ कोट बनाने में लगे हैं।
पशुपालन विभाग का जेल प्रशासन को मिला टेंडर
जिले में 73 गोशाला हैं। यहां पर करीब 15 हजार मवेशियों को संरक्षित किया गया है। पशु पालन विभाग की देखरेख में संचालित गोशाला में संरक्षित गोवंश को सर्दी से बचाने के लिए विकास विभाग की तरफ से काऊ कोट उपलब्ध कराए जाने हैं। इसे लेकर जिला कारागार प्रशासन को 13 हजार काऊ कोट बनाने का टेंडर विकास विभाग की तरफ से दिया गया है।
पुराने कंबल, जूट के बोरे आदि से बना रहे काऊ कोट
जेल के फटे पुराने कंबल, जूट के बोरे व अन्य सामाग्री के प्रयोग से बंदी काऊ कोट तैयार कर रहे हैं। निर्माण में लगने वाला सारा सामान जेल प्रशासन उपलब्ध करा रहा है। मौजूदा समय जेल में 573 बंदी है। जिसमें से 35 को काऊ कोट निर्माण के लिए लगाया गया है। बंदी रोजाना 250-300 सौ काऊ कोट तैयार कर लेते हैं। जिन्हें विभिन्न गोशाला में रोज के रोज भेज दिया जाता है।
बंदियों को मिले पारिश्रमिक : जेल अधीक्षक
जेल अधीक्षक अजितेश कुमार का कहना है कि 108 रुपये प्रति काऊ कोट की दर से विकास विभाग से अनुबंध हुआ है। इसे बनाने में जो भी लागत आएगी, उसे जेल प्रशासन सरकारी मद में काट लेगा। इसके अलावा जो भी पैसा बचेगा, उसे काऊ कोट का निर्माण में लगे बंदियों को पारिश्रमिक के तौर पर दिया जाएगा। बताया कि बंदी इससे अच्छी आय कर रहे हैं। जेल में जो भी सब्जी प्रयोग में लाई जाती है उसे भी बंदी खुद उगाते हैं। पूरी तरह जैविक तरीके से उपजाई गई सब्जियों से बंदियों की सेहत ठीक रहती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने की थी तारीफ
जेल अधीक्षक का कहना है कि काऊ कोट बनाने का शुरूआत कौशांबी जिला जेल से हुई थी। इसकी जानकारी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हुई तो उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में इसकी सराहना की थी। आज प्रदेश की कई जेलों में काऊ कोट बनाया जा रहा है।
कुल्हड़, सजावट का सामान व माला की भी मांग
जेल अधीक्षक का कहना है कि जिला कारागार के कुछ बंदी चाक पर मिट्टी के कुल्हड़, दिए, सजावट के सामान आदि भी बना रहे हैं। हालांकि इन उत्पात को अभी बाजार नहीं मिल सका है। अब लोकल फार वोकल की तर्ज पर इन उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। पिछले दिनों राष्ट्रीय लोक अदालत के दौरान जेल में बनाए गए उत्पादों की बिक्री का स्टाल भी लगाया जा चुका है। इसके अलावा जेल में श्यामा तुलसी के पेड़ हैं। हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा बंदी राहुल तुलसी के डंठल को तराश कर माला बना रहा है। इस माला को जेल के बंदी ही हाथों हाथ खरीदकर धारण कर रहे हैं। इसके अलावा होली के दौरान फूलों से बनाया गया हर्बल गुलाल भी मुलाकातियों को दिया गया था।
मेहनत के पैसे से मुकदमे की करते हैं पैरवी
जेल अधीक्षक अजितेश कुमार का कहना है कि बंदी अपनी मेहनत व हुनर के दम पर सजा के दौरान जो भी पैसा कमाता है, उसे उसके खाते (जेल के अभिलेख) में रखा जाता है। बंदी अगर मुलाकात के दौरान अपने स्वजन को पैसा देना चाहता है तो दिया जाता है। इसके अलावा कुछ बंदी अपनी कमाई के पैसे से ही मुकदमें की पैरवी भी अदालतों में कर रहे हैं। कुल मिलाकर मकसद है कि सलाखों के पीछे से रिहाई मिलने के बाद बंदी नेक इंसान बन सके। दोबारा वह जुर्म की दुनिया में कदम नहीं रखे। जेल में सीखे गए हुनर को अपना व्यापार बनाकर खुद व स्वजन का अच्छा जीवन यापन करा सके।

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