Mahakumbh 2025: क्या होता है महामंडलेश्वर होने का मतलब, कैसे मिलती है पदवी; एक गलती और अखाड़े से निष्कासित
महामंडलेश्वर बनने का सफर किसी तपस्या से कम नहीं होता। अखाड़े की कठिन परीक्षाओं और त्याग से भरे जीवन के बाद ही कोई संन्यासी इस पदवी को प्राप्त कर पाता है। महामंडलेश्वर का जीवन समाज सेवा और धर्म प्रचार के लिए समर्पित होता है। इस लेख में हम आपको महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया उनके कर्तव्यों और जीवनशैली के बारे में विस्तार से बताएंगे।

जागरण संवाददाता, महाकुंभ। वैभव व प्रभावशाली होता है अखाड़ों में महामंडलेश्वर की पदवी। छत्र-चंवर लगाकर चांदी के सिंहासन पर आसीन होकर महामंडलेश्वर की सवारी निकलती है तो हर कोई उनकी ओर आकर्षित हो जाता है। देखने में लगता है कि उनसे ज्यादा सुखी व्यक्ति दूसरा कोई नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है।
महामंडलेश्वर का जीवन त्याग से परिपूर्ण होता है। महामंडलेश्वर की पदवी पाने के लिए संत को अखाड़े की पांच स्तरीय जांच, ज्ञान-वैराग्य की परीक्षा में खरा उतरने पर पदवी मिलती है। पदवी मिलने के बाद भी तमाम प्रतिबंध से जीवनभर बंधकर रहना पड़ता है। उसकी अनदेखी करने पर अखाड़े से निष्कासित हो जाते हैं।
13 अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर के बाद महामंडलेश्वर का नंबर आता है। हर अखाड़े में न्यूनतम 30 से 40 महामंडलेश्वर हैं। कुंभ-महाकुंभ में नए महामंडलेश्वरों का पट्टाभिषेक किया जाता है। जो अखाड़े की सामाजिक गतिविधियों को संचालित करते हैं। इसमें संस्कृत विद्यालय, गोशाला का संचालन, मतांतरण रोकने की मुहिम चलाना, निश्शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगवाना, गरीबों की बेटियों का विवाह कराना, अन्न क्षेत्र (भंडारा) का संचालन करना शामिल है।
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जांच के यह हैं मानक
अखाड़ों से कोई व्यक्ति संन्यास अथवा महामंडलेश्वर की उपाधि के लिए संपर्क करता है तो उसे अपना नाम, पता, शैक्षिक योग्यता, सगे-संबंधियों का ब्योरा और नौकरी-व्यवसाय की जानकारी देनी होती है। अखाड़े के थानापति के जरिए उसकी पड़ताल कराई जाती है। थानापति की रिपोर्ट मिलने पर अखाड़े के सचिव व पंच अलग-अलग जांच करते हैं।
कुछ लोग संबंधित व्यक्ति के घर जाकर परिवारीजनों व रिश्तेदारों से संपर्क करके सच्चाई का पता करते हैं। जहां से शिक्षा ग्रहण किए होते हैं उस स्कूल-कालेज भी संतों की टीम जाती है। स्थानीय थाना से जानकारी मांगी जाती है कि कोई आपराधिक संलिप्तता तो नहीं है। इसकी जांच पुलिस से कराई जाती है। समस्त रिपोर्ट अखाड़े के सभापति को दी जाती है। वह अपने स्तर से जांच करवाते हैं। फिर अखाड़े के पंच उनके ज्ञान की परीक्षा लेते हैं। उसमें खरा उतरने पर महामंडलेश्वर की उपाधि देने का निर्णय होता है।
महामंडलेश्वर बनने वाले संत का अभिषेक करते श्रीनिरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि। जागरण आर्काइव
होनी चाहिए यह योग्यता
महामंडलेश्वर का पद जिम्मेदारी वाला है। इसके लिए शास्त्री, आचार्य होना जरूरी है, जिसने वेदांग की शिक्षा हासिल कर रखी हो, अगर ऐसी डिग्री न हो तो व्यक्ति कथावाचक हो, उसके वहां मठ होना आवश्यक है। मठ में जनकल्याण के लिए सुविधाओं का अवलोकन किया जाता है। देखा जाता है कि वहां पर सनातन धर्मावलंबियों के लिए विद्यालय, मंदिर, गोशाला आदि का संचालन कर रहे हैं अथवा नहीं? अगर अपेक्षा के अनुरूप काम होता है तो पदवी मिल जाती है।
वहीं, तमाम डाक्टर, पुलिस-प्रशासन के अधिकारी, इंजीनियर, वैज्ञानिक, अधिवक्ता व राजनेता भी सामाजिक जीवन से मोहभंग होने पर संन्यास लेते हैं। ऐसे लोगों को अखाड़े महामंडलेश्वर बनाते हैं। इनके लिए संन्यास में उम्र की छूट रहती है। ऐसे लोग दो-तीन वर्ष तक संन्यास लिए रहते हैं तब भी महामंडलेश्वर बना दिया जाता है। फिर उनके जरिए धार्मिक कार्य आगे बढ़ाए जाते हैं।
अखाड़े को समर्पित करना पड़ता है जीवन
महामंडलेश्वर बनने वाले व्यक्ति का न्यूनतम पांच वर्ष संन्यासी जीवन होना चाहिए। अखाड़े की ओर से उन्हें विधि-विधान से संन्यास दिलाया जाता है। संन्यास लेने पर उन्हें स्वयं का पिंडदान करना पड़ता है। मुंडन करके उनकी शिखा (चोटी) रखी जाती है। जब वह अखाड़े में जाते हैं वह शिखा काट दी जाती है। इसके जरिए संदेश दिया जाता है कि अखाड़े में वह कुछ लेकर नहीं आए।
अब उनका तन-मन व जीवन अखाड़ा को समर्पित रहेगा। संबंधित व्यक्ति स्वयं के साथ अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। इसके जरिए पहले के सारे रिश्ते-नातों से अपना संबंध खत्म करते हैं। माता-पिता, भाई-बहन सहित समस्त सगे संबंधियों से उनका नाता हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। दीक्षा देने वाले गुरु, अखाड़े के आराध्य व आचार्य महामंडलेश्वर उनके सबकुछ होते हैं। फिर उन्हें दीक्षा दी जाती है।
दीक्षा मिलने के बाद अखाड़े में रहकर धार्मिक गतिविधियों में स्वयं को रमाते हैं। उत्कृष्ट योगदान देने पर कुंभ अथवा महाकुंभ में महामंडलेश्वर पद का पट्टाभिषेक किया जाता है। पट्टाभिषेक पूजा विधि से संपन्न होती है। दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से पट्टाभिषेक किया जाता है।
अखाड़े आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर व दूसरे पदाधिकारी चादर भेंट करके नए महामंडलेश्वर का अभिनंदन करते हैं। अगर कोई व्यक्ति पहले से संन्यासी जीवन व्यतीत कर रहा होता है और वह अखाड़े के नीति-नियम में खरे उतरते हैं तो उन्हें भी महामंडलेश्वर बनाया जाता है।
कुंभ-महाकुंभ में दिखता है वैभव
कुंभ व महाकुंभ में महामंडलेश्वर का स्वरूप अत्यंत वैभवशाली होता है। छावनी प्रवेश (पेशवाई) व राजसी (शाही) स्नान में महामंडलेवर की भव्य यात्रा निकलती है। वह चांदी के सिंहासन में बैठकर निकलते हैं। उनके ऊपर रत्नजड़ित छात्र-चवर होता है। जो उनका वैभव बढ़ाता है। उनके भक्त नागा संत व अन्य संत जयकारा लगाते हुए चलते हैं। महामंडलेश्वर को कोई दिक्कत न होने पाए उसके लिए पुलिस-प्रशासन के साथ नागा संत उनकी सुरक्षा में लगे रहते हैं।
महामंडलेश्वरों के जीवनभर रहती है यह पाबंदी
- घर-परिवार के लोगों से दूरी रखनी पड़ती है। अगर संपर्क सामने आता है तो अखाड़े से निष्कासित हो जाते हैं।
- चारित्रिक दोष नहीं लगना चाहिए।
- आपराधिक छवि के व्यक्ति से संबंधि नहीं होना चाहिए।
- भोग-विलासिता युक्त जीवन नहीं होना चाहिए।
- किसी व्यक्ति की जमीन अथवा दूसरी संपत्ति पर कब्जा करने का आरोप नहीं लगना चाहिए।
- मांस-मदिरा के सेवन से दूर रहना होगा।
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440 मानक पर नहीं उतरे खरे
महाकुंभ-2025 में महामंडलेश्वर की पदवी लेने के लिए तमाम संन्यासी 13 अखाड़ों का चक्कर लगाए। इसमें लगभग 440 ऐसे थे जो मानक परर खरे नहीं उतरे। उपयुक्त शैक्षिक योग्यता न होने, संगठनात्मक गुण का अभाव और मंदिर व विद्यालय न होने पर महामंडलेश्वर बनाने से इन्कार कर दिया।
इसमें श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने 210 संन्यासियों को इन्कार किया है। इसी प्रकार जूना ने 129, निर्मोही अनी ने 23, निर्वाणी अनी ने 23 संन्यासियों को पदवी देने से इन्कार कर दिया। इसी प्रकार अन्य अखाड़ों ने तमाम संन्यािसयों को पदवी नहीं दी।
महामंडलेश्वर सनातन धर्म के ध्वजावाहक हैं। जो ज्ञानी के साथ पराक्रमी होते हैं। जब धर्म पर संकट आया है तब महामंडलेवरों ने अपनी विद्वता व प्रभाव के बल पर उसे दूर किया है। इनका जीवन त्याग, तपस्या व परोपकार से परिपूर्ण होता है। धर्म व अखाड़े की रीति-नीति का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। इसी कारण हर किसी के लिए श्रद्धा व समर्पण का केंद्र रहते हैं। -स्वामी कैलाशानंद गिरि, आचार्य महामंडलेश्वर श्रीनिरंजनी अखाड़ा
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