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    पांच पतियों के होते हुए भी मैं खाली सीप सी...मुझ पर हर लांछन आया, एकल अभिनय में अंजना चंदक ने द्रौपदी के चरित्र को जीवंत किया

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Mon, 29 Dec 2025 01:36 PM (IST)

    प्रयागराज में प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित सुर और साज़ कार्यक्रम में अंजना चंदक ने द्रौपदी के चरित्र को जीवंत किया। उन्होंने द्रौपदी के माध्यम स ...और पढ़ें

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    प्रयागराज में प्रभा खेतान फाउंडेशन के ‘सुर और साज’ कार्यक्रम में द्रोपदी की भूमिका में अंजना चंदक व मौजूद दर्शक। जागरण 

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। पूरा युग गवाह है, वह युद्ध कुरुक्षेत्र का किसने चाहा था। फिर भी सारा दोष मुझपर आया। स्वर्ग की राह में किसी ने किसी को मुड़कर नहीं देखा। पांच पतियों के होते हुए भी मैं खाली सीप सी। मुझपर हर लांछन आया। हस्तिनापुर की नायिका द्रौपदी हजारों बार बंटी। संदर्भ बदल चुके हैं पर चुनौतियां वही हैं। हर स्त्री को सतीत्व की परीक्षा देनी पड़ती है। त्रेता, द्वापर और वर्तमान को साथ लेकर द्रौपदी के बहाने व्यवस्था से प्रश्न पूछते हुए नारी के मन की गांठ खोलने का अद्भुत प्रयास अंजना चंदक ने किया।

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    प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से कान्हा श्याम होटल में ‘सुर और साज’ कार्यक्रम में सांस्कृतिक संवाद हुआ। सशक्त एवं भावप्रवण प्रस्तुति ने सभी को बांधे रखा। इसमें नारी सशक्तिकरण का प्रभावशाली संदेश सुनाई दिया। एकल अभिनय में द्रौपदी जीवंत हो उठी। अपने आसपास फैले ढेरों प्रश्नों के उत्तर दिए तो हर युग में धर्म की स्थापना के लिए स्त्री को पीड़ा से क्यें गुजरना पड़ता है जैसे प्रश्न भी छोड़े।

    द्रौपदी ने स्पष्ट किया मेरे स्वाभिमान की कहानी को मेरे अभिमान की कहानी कही गई। साफ किया जो भी कथाएं लिखी गईं वह स्त्रियों ने नहीं लिखीं। बताया परिवार में सत्ता, संपत्ति पान का युद्ध था वह। अभी भी उसी तरह द्वंद्व चल रहे हैं। धर्म, परंपरा के अनुसार सभी ने अपनी सुविधा से मिलावट की और स्वयं को सही साबित किया। महाभारत का युद्ध पिता धृतराष्ट्र की ईष्या कुंठा का भी प्रतिफल था।

    अपने जन्म को विश्लेषित कर द्रौपदी ने कहा, धरा पर आने से पूर्व ही जीवन के उद्देश्य की चौखट तैयार थी। सीता की तरह मुझपर भी धर्म रक्षा का भार था। अपना परिचयन श्रीकृष्ण की कृष्णा के रूप में दिया। दूसरी नारियों के स्वरूप को भी खुद से जोड़ते हुए कहा, कृष्ण एक हैं लेकिन प्रत्येक स्त्री का अपना कृष्ण होता है।

    विसंगतियों को उठाते हुए समाज से आग्रह किया अपने आंखों के प्रश्नों को विराम दीजिए। किन परिस्थितियों में द्रौपदी का स्वयंवर हुआ और वह पांच हिस्सों में बंट गई। फिर युधिष्ठिर चौपड़ में उन्हें हार गए। नीति, धर्म और सामाजिकता के साथ नारी मन के भाव को भली प्रकार से प्रस्तुत किया गया। बड़ा प्रश्न उठाया कि कोई स्त्री पुरुष के अधीन होकर पूर्ण मानी जाती है, यह कैसे संभव है। विवाह के बाद जिस तरह उसका गोत्र बदल जाता है, क्या उसी तरह मन भी बदल जाता है।

    एकल अभिनय ने द्रौपदी के चरित्र को जीते हुए अंजना चंदक ने कहा, यज्ञसेनी की देह धर्म युद्ध में आहुति बनी। उन्होंने मां कुंती के पांच और द्रौपदी के पांच के अंतर को बताने का प्रयास किया। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत एहसास वुमन दीपिका अग्रहरि ने की जबकि सभी का धन्यवाद ज्ञापन श्रुति अग्रवाल ने किया। कार्यक्रम के आयोजन में एहसास वुमन, दैनिक जागरण, होटल कान्हा श्याम ने सहयोग दिया। मंच पर आए कलाकार को स्मृति चिह्न जमनोत्री गुप्ता ने भेंट किया।

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