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    Allahabad HC का सख्त आदेश, कहा- मुआवजे के लिए आवेदक को ‘शटल काक’ नहीं बना सकते अधिकारी

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Sat, 27 Dec 2025 04:24 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सख्त आदेश देते हुए कहा कि मुआवजे के लिए अधिकारी आवेदक को शटल काक नहीं बना सकते। कोर्ट ने पाया कि नये कानून के अनुसार मुआवजा नहीं ...और पढ़ें

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    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याची की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए। 

    विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि मुआवजे के लिए अधिकारी किसी को ‘शटल काक’ नहीं बना सकते। अगर प्रशासनिक मशीनरी में भ्रम के कारण अदालत के आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता तो मुख्य सचिव सहित विभागीय उच्चाधिकारियों व डीएम प्रयागराज को अवमानना आरोप निर्मित कर दंडित किया जाएगा।

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    न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की एकलपीठ ने कहा, ‘भूमि अधिग्रहण कानून और उचित मुआवजे का अधिकार कानून का पालन नहीं होने पर मुख्य सचिव सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी कोर्ट की अवमानना के लिए जिम्मेदार होंगे।’

    विनय कुमार सिंह की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, ‘राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों के बीच काम का बंटवारा आदेश लागू नहीं करने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।’ कोर्ट ने कहा, भूमि अधिग्रहण मामलों में सर्वोच्च अधिकारी मुख्य सचिव हैं, हालांकि उन पर अभी कोई आक्षेप नहीं लगाया जा रहा है।

    मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि राजस्व गांव भैरोपुर केवई तहसील हंडिया निवासी याची की चार खातों में दर्ज जमीन का अधिग्रहण हुआ था। इसका मुआवजा (अवार्ड) 1982 व पूरक अवार्ड 1983 में घोषित किया गया। याची के अनुसार उसे अभी तक मुआवज़ा नहीं मिला है। राज्य या उसकी एजेंसियों का अधिग्रहित प्लॉटों पर कब्जा भी नहीं है। उसका ही कब्जा है।

    प्लॉट शुरू में सिंचाई विभाग के उपयोग को अधिग्रहीत किए गए थे जो बाद में कांशीराम आवास योजना के लिए शहरी विकास विभाग को हस्तांतरित कर दिए गए। दस्तावेजों के अनुसार पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजे और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 लागू नहीं हुआ था। कोर्ट ने पाया कि नये कानून के अनुरूप मुआवजा नहीं मिलने के कारण याची ने इसे लेने से इन्कार कर दिया। इस पर आवेदक का देय मुआवजा सरकारी खजाने में जमा करा दिया गया।

    वर्ष 2013 के एक्ट में कहा गया कि ऐसे मामलों को समाप्त मान लिया जाएगा जिनमें 1894 के एक्ट की धारा -11 के तहत मुआवजा वितरण नहीं हुआ। हाई कोर्ट ने जुलाई 2016 में याचिका स्वीकार करते हुए भूमि अधिग्रहण कार्यवाही रद कर दी थी। जब याची को प्लॉट वापस नहीं किए गए तो उसने अवमानना याचिका दायर की। कोर्ट ने तीन फरवरी 2017 को सरकार को आदेश पालन का समय दिया। ऐसा नहीं होने पर 27 मई 2017 को वर्तमान अवमानना याचिका दायर की गई।

    राज्य सरकार ने जुलाई 2016 के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जो 12 सितंबर 2017 को खारिज हो गई। इसके बाद भी सरकार ने जुलाई 2016 के हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। दूसरी अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 2022 में कहा था, विभागों ने किस तरह मनमानी की यह इससे साफ है कि प्रमुख सचिव ने हलफनामे में कहा है कि मुआवजा शहरी विकास विभाग को देना है।

    कोर्ट ने कहा, आवेदक को कानून के अनुसार मुआवजे से मतलब है। यह दो विभागों के बीच का मामला है। कोर्ट ने कहा है कि मुख्य सचिव तथा अतिरिक्त मुख्य सचिव (सिंचाई विभाग) अतिरिक्त मुख्य सचिव (शहरी विकास) और जिलाधिकारी प्रयागराज या तो इस अदालत के जुलाई 2016 के आदेश का पूर्ण अनुपालन दर्शाने वाला अनुपालन हलफनामा दाखिल करेंगे अथवा अवमानना आरोपों के निर्धारण के लिए व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होंगे। कोर्ट ने 28 नवंबर को आदेश पालन के लिए महीने भर का समय देते हुए कहा था कि ऐसा नहीं होने पर अगली सुनवाई तिथि पांच जनवरी 2026 को मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारी उपस्थित होंगे।

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