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    सपा में घमासानः उत्तर प्रदेश में सत्ता के साथ जनाधार भी अखिलेश यादव को ट्रांसफर !

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Tue, 20 Sep 2016 02:39 PM (IST)

    छात्रसभा के राष्ट्रीय महासचिव हरेश्याम सिंह श्रीनेत कहते हैं कि 'नेताजी' के बाद अखिलेश भैया के लिए यह जवानी कुर्बान है। वही सर्वमान्य नेता हैं।

    लखनऊ (परवेज अहमद)। '...ये जवानी है कुर्बान, अखिलेश भैया तेरे नाम! सोमवार को यह नारा हकीकत में बदलता दिखा। युवा ब्रिगेड की बर्खास्तगी, अखिलेश यादव के समर्थन में उतरीनौजवानों की टोली में किसी ने हाथ काट लिया तो कई सड़क पर लेट गए।

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    कुछ पानी की टंकी पर चढ़ गए और कुछ ने प्रदेश कार्यालय पर दिन भर धरना दिया।समाजवादी संग्राम थमने के बाद कुछ लोगों पर अंदेशे के मुताबिक कार्रवाई हुई।

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    प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने कार्रवाई का चाबुक चलाया तो तूफान थामे रखने का सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का प्रयास बेकार होता दिखा।दरअसल, अनुशासनात्मक कार्रवाई के नाम पर ऐसी नब्ज छेड़ी गई, जिसकी टीस मुख्यमंत्री को महसूस हुई तो उनकी युवा ब्रिगेड बेचैन हो उठी।

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    अपेक्षित प्रतिक्रिया स्वरूप इस्तीफों का दौर चल पड़ा। पार्टी कार्यालय पहुंचे युवक व युवतियों में से कई ने वहीं अपने हाथ काटकर सपा सुप्रीमो के नाम खून से खत लिख डाले। सामान्यत: राजनीति में ऐसे दृश्य कम दिखायी देते हैं। पुलिस दौड़ी तो युवक उससे भिड़ गए।

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    एक युवक ने इस्तीफे में लिखा-'मुलायम-अखिलेश यादव जिंदाबाद कहना गुनाह है तो वह सौ बार यह गुनाह करेगा।' कई ने लिखा कि आखिर किस अपराध में एक तरफा कार्रवाई हो रही है। इस प्रदर्शन से एक बात तो साफ हो गई है कि अखिलेश के समर्थन में मुखर युवा ब्रिगेड कार्रवाई से डरने वाली नहीं।

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    छात्रसभा के राष्ट्रीय महासचिव हरेश्याम सिंह श्रीनेत कहते हैं कि 'नेताजी (मुलायम सिंह) के बाद अखिलेश भैया के लिए यह जवानी कुर्बान है। वही सर्वमान्य नेता हैं। उनका सम्मान नहीं रहेगा तो पद लेकर क्या करेंगे।'

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    युवजन सभा के प्रदेश सचिव रतन तिवारी, युवजन सभा के फैजाबाद के जिलाध्यक्ष अनूप सिंह उनकी बात को बढ़ाते हुए कहा कि वर्ष 2012 में अखिलेश यादव के नाम नौजवानों ने दिन-रात एक किया था। अब चुनाव के समय उनको ही कमजोर किया जा रहा है तो किसके लिए संघर्ष करेंगे।

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    इससे बात आईने की तरह साफ है कि समाजवादी पार्टी में सत्ता के साथ जनाधार का ट्रांसफर भी अखिलेश के पक्ष में हो गया है। अनुशासन के नाम पर अगर उनके समर्थकों पर तगड़ा चाबुक चल गया तो नौजवानों का मोह साइकिल से भंग भी हो सकता है और नए प्रदेश अध्यक्ष को संगठन की ओवरहालिंग करने में खासी दुश्वारी भी होगी।

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