Dushra 2025: कानपुर के रावण के पुतले के अंग्रेज भी थे कायल, जानें अंग्रेज लेखक ऐसा क्या लिखा अपनी डायरी में
Dushra 2025 कानपुर में दशहरा की तैयारियां जोरों पर हैं। रावण कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतले बनाए जा रहे हैं। इनकी ऊंचाई और भव्यता देखते ही बनती है। कारीगर दिन-रात मेहनत करके इन पुतलों को तैयार कर रहे हैं जिनकी मांग आसपास के जिलों में भी है। इस बार रावण दहन और भी खास होने वाला है।

आशुतोष मिश्रा, जागरण, कानपुर। ..बाढ़ही असुर अधम अभिमानी, रामलीला की यह चौपाई रावण के पुतलों पर सटीक बैठ रही है। कद-काठी के साथ रावण के भाव बढ़े हैं। रावण का कद ऊंचा हो रहा है..शरीर को और बलिष्ठ बनाया जा रहा है। क्रोध में आंख लाल हो रही हैं। मरने से पहले रावण मुंह से आग उगलेगा। अभिमानी रावण को प्रभु श्रीराम के हाथों मरते देखने के लिए लोग कारीगरों को मुंहमांगा पैसे देने को तैयार हैं। किसी ने 40 फुट तो किसी ने 80 फुट ऊंची कद-काठी का रावण बनाने का आर्डर दिया है।
शहर की सबसे पुरानी परेड की रामलीला का 90 फुट का रावण तैयार हो चुका है। दशानन के साथ ही उसका कुनबा भी तैयार हो रहा है। कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों को भी आकार दिया जा रहा है। घर-मोहल्लों में रावण दहन के लिए दो से पांच फुट के पुतले भी तैयार हो रहे हैं। कानपुर के रावण के पुतले के अंग्रेज भी कायल थे। इसका उल्लेख एक अंग्रेज लेखक ने अपनी डायरी में किया है।
दशहरा पर दहन के लिए रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद के पुतले तैयार हो रहे हैं। रामलीला मैदानों के साथ जीटी रोड और साकेत नगर में कारीगर पुतलों को तैयार करने में जुटे हैं। शहर ही नहीं, यहां से आसपास के जिलों में भी रावण के पुतले जाते हैं। सुतली, कागज, बांस की कीमतें बढ़ने के बावजूद रामलीला समितियों ने बढ़ी कद-काठी और ऊंचाई के रावण के पुतलों के आर्डर दिए हैं।
राजस्थान से आकर परेड रामलीला का पुतला तैयार करने वाले सलीम बताते हैं कि इस बार रावण के पुतले की मोटाई पांच फुट बढ़ाई गई है। इसकी ऊंचाई 90 फुट है। दहन से पहले रावण की आंखों से रोशनी निकलेगी। लगेगा कि रावण के आंखों से अंगारे बसर रहे हैं। हंसेगा तो मुंह से फूल झड़ेंगे। रिमोट से दशानन के बारी-बारी से एक-एक शीश उड़ेंगे। कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले 70-70 फुट के पुतले बनाए गए हैं। जीटी रोड पर 20-22 दुकानों में रावण के पुतले तैयार हो रहे हैं। हर कारीगर को 30 से लेकर 90 फुट तक के रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाने का काम मिल गया है। यह लोग घरों के बाहर, फ्लैटों और मोहल्लों में रावण दहन के लिए भी पुतले तैयार कर रहे हैं।
20 साल से पुतले तैयार करने वाले आकाश का कहना है कि उन्हें घाटमपुर, उन्नाव के बांगरमऊ और कानपुर देहात से रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाने का आर्डर मिला है। कुछ कारीगरों को उरई, कानपुर देहात के झींझक, रसूलाबाद, माती की रामलीला सोसाइटियों के भी आर्डर मिले हैं।
कारीगर अमित का कहना है कि सुतली, बांस, रद्दी, रंगी कागज के भाव बढ़ गए हैं। लेई बनाने के लिए मैदा की जरूरत होती है। मैदा के दाम भी बढ़ गए हैं। इस कारण पुतलों के दाम भी बढ़े हैं। 50 फुट के पुतले 50 हजार रुपये में तैयार हो रहे हैं। 80-90 फुट के पुतले बताई गई कद काठी के मुताबिक 70 से एक लाख रुपये तक के हैं। दाम बढ़ने के बाद भी कुछ रामलीला समितियों ने पुतलों की ऊंचाई और मोटाई बढ़ाते हुए पुतले बनाने के आर्डर दिए हैं।
12 साल से पुतले बनाने वाले अमित बताते हैं कि वह एक हजार से 1200 रुपये प्रति फुट के हिसाब से पुतले तैयार कर रहे हैं। 10 बाई 10 की लंका बनाने के आर्डर भी खूब मिले हैं। इसकी कीमत 12 से 15 हजार रुपये हैं। पुतलों और लंका में आतिशबाजी अलग से लगाई जाती है। दो फुट से आठ फुट तक पुतले भी तैयार किए हैं। ऊंचाई के हिसाब से इनकी कीमतें हैं।
अंग्रेज की डायरी में रावण का पुतला
अंग्रेज लेखक विलियम हावर्ड रसेल ने वर्ष 1858-59 का समय भारत में बिताया था। इस दौरान उन्होंने कानपुर की भी यात्रा की। भारत में अपनी यात्रा के वृतांत पर उन्होंने डायरी तैयार की। वर्ष 1860 में इसको माई डायरी इन इंडिया के नाम से लंदन में रूटलेज, वार्ने एंड रूटलेज ने प्रकाशित किया। इस पुस्तक में लिखा है कि वह 17 अक्टूबर वर्ष 1858 में कानपुर पहुंचकर चर्च गए। वहां से उन्होंने देखा कि मैदान में 70 से 80 फीट का विशाल पुतला खड़ा हुआ है। उसका बहुत बड़ा सिर है और कई भुजाएं भी हैं। जानकारी मिली कि यह राक्षस है, जिसका नाम रावण है। यह श्रीराम की पत्नी को सीलोन (लंका) ले गया था। भगवान राम ने वानरों की सहायता से उसे मार दिया। रावण की मृत्यु पर उत्सव मनाया जाता है।
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