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.. तो कन्या भ्रूण हत्या पर कैसे लगे रोक

जागरण संवाददाता वनगावां (चंदौली) गर्भावस्था और प्रसव के 42 दिन के अंदर होने वाली मातृ मृत्यु

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 08:27 PM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 08:27 PM (IST)
.. तो कन्या भ्रूण हत्या पर कैसे लगे रोक

जागरण संवाददाता, वनगावां (चंदौली) : गर्भावस्था और प्रसव के 42 दिन के अंदर होने वाली मातृ मृत्यु दर को कम करने को शासन मौत के कारणों की समीक्षा कर रहा। वहीं, मौतों की सूचना देने में स्वास्थ्य कर्मी कतराते हैं। ऐसे में शासन ने मौत की असली वजह पता लगाने के लिए दो वर्ष पूर्व मातृ मृत्यु की सूचना देने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए एक हजार रुपये इनाम देने की घोषणा की थी। इसके बावजूद आमजन से कोई सूचना नहीं मिली।

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इसी तरह कन्या भ्रूण हत्या रोकने को अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर शिकंजा कसने के लिए शासन ने मुखबिर योजना चलाई। करीब डेढ़ वर्ष पूर्व लागू यह योजना कागजों में सिमट कर रह गई। जासूस नहीं मिलने से ये योजनाएं कागजों में सिमट कर रह गई है। ऐसे में कन्या भ्रूण हत्या पर रोक को लेकर सवाल खड़ा हो गया है। दरअसल, शासन कन्या भ्रूण हत्या रोकने व मातृ मृत्यु दर में कमी लाने को गंभीर हुआ तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय ने महत्वाकांक्षी योजना लागू की। अल्ट्रासाउंड केंद्र पर लिग परीक्षण, गर्भपात कराने वालों की सूचना देने पर अलग-अलग श्रेणियों में इनाम देने के लिए मुखबिर योजना व मातृ मृत्यु की सूचना देने को वाले को एक हजार रुपया पुरस्कार देने का प्रविधान किया गया। मकसद रहा कि महत्वाकांक्षी योजना से दोनों पर सफलता हासिल की जा सकेगी। योजना की शुरुआत हुए दो वर्ष होने को हैं। लेकिन, स्वास्थ्य विभाग को एक भी मुखबिर ऐसा नहीं मिला जो इसकी सूचना दे सके। हकीकत यह कि लिग परीक्षण, गर्भपात कराने का खेल अल्ट्रासाउंड केंद्रों व नर्सिंग होम में बेरोकटोक चल रहा। ऐसा नहीं है कि विभाग तक शिकायतें न पहुंचती हों, लेकिन जिम्मेदार अफसर जानबूझकर मौन हैं।

वर्जन.

मातृ मृत्यु दर में कमी व पीसीपीएनडीटी एक को प्रभावी बनाकर कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए विभाग संजीदा है। मुखबिर योजना के लिए शुरुआत में व्यापक प्रचार-प्रसार कराया गया। आशा, एएनएम व प्रभारी चिकित्साधिकारियों को इसकी जानकारी दी गई है। अल्ट्रासाउंड सेंटर, नर्सिंग होम को भी ऐसा न करने के निर्देश दिए गए हैं।

-डा. डीके सिंह, एसीएमओ।


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