ऐसा मर्ज, बंद दरवाजे के पीछे भी दर्द... मतांतरण गिरोह से छुड़ाई आगरा की बेटियों के परिवार के साथ खड़ा हुआ मोहल्ला
मतांतरण गिरोह के चंगुल से छुड़ाई गई बहनों के परिवार को मोहल्ले का पूरा समर्थन मिल रहा है। बेटियों के लापता होने से परिवार गहरे सदमे में था। मोहल्ले वालों ने परिवार की पीड़ा को समझा और उन्हें हर संभव मदद की पेशकश की। बेटियों की वापसी पर मोहल्ले वालों ने राहत की सांस ली और परिवार को सांत्वना दी। पूरा मोहल्ला परिवार के साथ ढाल बनकर खड़ा है।

अली अब्बास, जागरण, आगरा। मर्ज ऐसा था कि बंद दरवाजे के पीछे छिपा दर्द भी महसूस किया जा सकता था। परिवार की महिलाओं की खामोशी बिना कुछ कहे ही उनकी पीड़ा बयां कर रही थी। दरवाजा खटखटाने पर परिवार की महिला बाहर निकलीं।बात करने में असमर्थता जताई, उनकी वाणी बता रही थी कि चार महीने से पूरा परिवार किस त्रासदी से जूझ रहा था।
जो बेटियां बिना बताए घर से एक कदम भी बाहर नहीं रखती थीं। जिनके लौटने में एक घंटे की देरी पर माता-पिता बेचैन हो उठते थे,चार महीने से उन बेटियों के बिना पूरा परिवार किस तरह खुद को संभाल रहा होगा। बेटियों के घर लौटने पर उन्हें और परिवार को सवालों से बचाने के लिए पूरा मोहल्ला ढाल बनकर खड़ा था।
बेटियों को प्रश्नों से बचाने को परिवार के साथ ढाल बनकर खड़ा हो गया मोहल्ला
मतांतरण कराने वाले गिरोह के चंगुल से बरामद बहनों का परिवार सदर क्षेत्र में रहता है। संयुक्त परिवार में रहने वाली बहनें माता-पिता के साथ दाे मंजिला मकान के प्रथम तल पर रहती हैं। जिसमें पिता के अलाचा ताऊ और चाचा हैं। सबका अपना-अपना कारोबार है। सभी संपन्न है। सुविधा के लिए मकान का हिस्सा कर रखा है, लेकिन सब मिलजुल कर रहते हैं।
कई परिवार बंटवारे के बाद पाकिस्तान से यहां आए थे
मिश्रित आबादी वाले मोहल्ले में ढाई हजार मकान हैं। अधिकांश परिवारों को यहां रहते हुए 60 से 70 वर्ष हो चुके हैं। कई परिवार बंटवारे के बाद पाकिस्तान से यहां आए थे। दशकों से साथ रहते आए मोहल्ले वाले एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल रहते हैं। बहनों के परिवार के साथ भी सुख-दुख के संबंध हैं। परिवार के लोगों ने सुबह से घर का दरवाजा बंद कर रखा था। शाम पांच बजे ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों के लिए ही उन्होंने दरवाजा खोला। जो परिवार की शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को जता रहा था।
परिवार वालों ने दिन भर नहीं खोले दरवाजे
मोहल्ले का कहना कि पढ़ने वाली बेटियां बेवजह घर से बाहर नहीं निकलती थीं। पता नहीं कैसे मतांतरण कराने वाले गिरोह के चंगुल में फंस गईं। मोहल्ले वाले इस बात के लिए ईश्वर का धन्यवाद दे रहे थे कि बेटियां सकुशल मिल गई हैं। गिरोह से जुड़े लोग बेटियों को विदेश भेज देते तो उनका मिलना असंभव हो जाता।
मोहल्ले वालों के लिए उदाहरण रहीं थी बहनें
मतांतरण कराने वाले गिरोह के चंगुल में फंसी दोनों बहनों ने कान्वेंट से इंटरमीडिए के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही थीं। अपनी मेधा और सादगी के लिए मोहल्ले वाले अपने बच्चों को दोनों बहनों की मिसाल देते हैं। मोहल्ले वालों का कहना था कि वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इतनी मेधावी बेटियां किस तरह ऐसे गिरोह के जाल में फंस गईं।
मोहल्ले वालों को एक महीने तक नहीं दी थी जानकारी
मतांतरण गिरोह के चंगुल में फंस कर बेटियों के घर से जाने की घटना का परिवार के लोगों ने सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते एक महीने तक मोहल्ले वालों को पता नहीं लगने दिया। वह अपने स्तर से दोनों बेटियों को तलाशते रहे। छोटी बेटी को कॉलेज ले जाने वाली गाड़ी के लगातार खाली लौटने से मोहल्ले वालों ने परिवार को विश्वास में लिया। परिवार के साथ मोहल्ले वाले भी कई बार पुलिस अधिकारियों के यहां उनकी बरामदगी की मांग को लेकर गए थे।
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