शक्ति की देवी दुर्गा की आराधना, पूरी होती है सारी मनोकामना
चैत्र मास शुक्लपक्ष प्रतिप्रदा से रामनवमी तक मां के नौ स्वरूपों की आराधना होती है। भगवती की अराधना व उपासना से धन, वैभव, सुख, शांति की प्राप्ति होती है। दुर्गा आराधना का महत्व- शक्ति की देवी दुर्गा की आराधना का अपना महत्व है। महाभारत काल में भी मां दुर्गा को पूज्य माना गया है। कृष्ण ने अर्जुन से दुर्गा स्त्रोत का पाठ कराया था। राम ने रा
चैत्र मास शुक्लपक्ष प्रतिप्रदा से रामनवमी तक मां के नौ स्वरूपों की आराधना होती है। भगवती की अराधना व उपासना से धन, वैभव, सुख, शांति की प्राप्ति होती है।
दुर्गा आराधना का महत्व-
शक्ति की देवी दुर्गा की आराधना का अपना महत्व है। महाभारत काल में भी मां दुर्गा को पूज्य माना गया है। कृष्ण ने अर्जुन से दुर्गा स्त्रोत का पाठ कराया था। राम ने रावण पर विजय पाने के लिये शक्ति की पूजा की थी। शक्तिमान बनने के लिये शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की उपासना करना आवश्यक है। नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का विधि पूर्वक पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
आज मां दुर्गा के कात्यायिनी रूप की पूजा होती है। दुर्गा का छठां स्वरूप है कात्यायिनी। इस देवी की भी बड़े विधि-विधान से पूजा की जाती है। मां कात्यायिनी की पूजा से श्रद्धालुओं को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर तरह के कष्टों का निवारण हो जाता है और समस्त पाप खत्म हो जाते हैं। कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना और कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। आज के युग में भी कात्यायनी का महत्व अपार है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी।
मां की उपासना-
उपासना का अर्थ है पास बैठना। ईश्वर की उपासना का अर्थ ही यह होता है कि हम उसके दिव्य गुणों को खुद में धारण करें। इसी कारण ऋषियों ने पूजन कार्य में ऐसे प्रतीकों का प्रावधान किया, जो साधक को जीवन-संदेश भी देते हों।
आचमन- इसमें तीन बार जल धारण किया जाता है, जो मन, वचन और कर्म की पवित्रता का प्रतीक है।
चंदन- चंदन शांति व शीतलता का प्रतीक है। भले ही विषधर इसे घेरे हों, पर इसका वृक्ष सुगंध और शीतलता का त्याग नहीं करता। यह सिखाता है, हम विपरीत स्थितियों में विवेक न खोएं।
अक्षत- अत्यंत श्रम से प्राप्त संपन्नता का प्रतीक है। अक्षत अर्पित करने का अर्थ यह है कि अपने वैभव का उपयोग अपने लिए नहीं, बल्कि मानव की सेवा के लिए करेंगे।
पुष्प- हमारा हृदय फूल जैसा कोमल रहे और हम भीतर और बाहर से सर्रवागं सुंदर बनें।
नैवेद्य- नैवद्य में मिठास या मधुरता होती है। इसका अर्थ है कि देवत्व की झांकी मधुर अर्थात सौम्य, सरल, सेवाभावी व्यवहार में मिलती है।
रोली- यह आरोग्य को धारण करना है। रक्त वर्ण साहस का भी प्रतीक है। रोली को माथे पर नीचे से ऊपर की ओर लगाना अपने गुणों को बढ़ाने की प्रेरणा देता है।
धूप- धूप सुगंध का विस्तार करती है। यह इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति ऐसा आदर्श जीवन जिए, जो लोगों को अनुकरण के लिए प्रेरित करे।
उपवास की महत्ता-
उपवास का मतलब होता है, अपने पास रहना। इसका अन्य कोई मतलब ही नहीं होता। आत्मा के पास निवास करना उपवास है। जैसे उपनिषद का अर्थ है गुरु के पास बैठना। लेकिन अब उपवास का अर्थ फास्टिंग या अनशन हो रहा है - भूखे रहना।
यह उपवास नहीं चल सकता, न खाने वाला। अगर न खाने पर जोर दिया, तो वह दमन और काया को कष्ट देने वाली बात है। क्या महावीर की तरह चार महीने तक कोई आदमी बिना खाए रह सकता है? हां, उपवास में रहकर रह सकता है। क्योंकि उपवास का मतलब न खाना नहीं है। उपवास का मतलब है कि एक व्यक्ति अपनी आत्मा (अंतस) में इतना लीन हो गया कि शरीर का उसे पता ही नहीं है। जब शरीर का पता नहीं है, तो भोजन भी नहीं करेगा। अपने भीतर ऐसा लीन हो गया है कि दिन बीत जाते हैं, रातें बीत जाती हैं, उसे शरीर का पता नहीं।
राग से विराग की ओर, विकार से विकास की ओर, असत्य से सत्य की ओर, तम से ज्योति की ओर.और तामसी प्रवृत्ति से सद्गुणों की ओर-यही उद्देश्य है उपासना और उपवास का। उपवास यानी अपने ईष्ट के करीब पहुंचना.यानी उस जैसा बनना। यह तभी मुमकिन है जबकि अपना आचरण ईष्ट जैसा बनाएंगे। इसके लिए जरूरी है तन और मन में समाए विकार को विदाई देना। तन-मन में जगह बना चुकीं व्याधि, राग-द्वेष को खुद से दूर करना।
नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ दिन शक्ति उपासना के बीच आत्म संयम से इच्छाशक्ति को मजबूत करने का असल मकसद निहित है। आइए इसे आत्मसात करें और नवसंवत्सर व नवरात्रि पर सदबदलाव का संकल्प लें।
[ प्रीति झा ]