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    Shankaracharya Jayanti 2025: जीवन जीने की नई राह दिखाती हैं आदि गुरु शंकराचार्य की ये बातें

    सनातन धर्म के आदि गुरु शंकराचार्य ने प्रश्नोत्तररत्नमालिका की रचना की थी जिसमें 67 श्लोक है। हमारे जीवन एवं वैदिक धर्म के सनातन मूल्यों को प्रस्तुत करती इस प्रश्नोत्तरमालिका के उत्तर रूपी सिद्धांत हमें सही पथ दिखाते हैं और हमारा जीवन उन्नत करते हैं। आद्य शंकराचार्य की जयंती (2 मई) पर प्रस्तुत हैं उनकी इस जीवनोपयोगी आध्यात्मिक कृति के संपादित अंश।

    By Jagran News Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 28 Apr 2025 12:58 PM (IST)
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    Shankaracharya Jayanti 2025: आदि गुरु शंकराचार्य के विचार।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म के आदि गुरु शंकराचार्य ने प्रश्नोत्तररत्नमालिका की रचना की थी, जिसमें 67 श्लोक है। हमारे जीवन एवं वैदिक धर्म के सनातन मूल्यों को प्रस्तुत करती इस प्रश्नोत्तरमालिका के उत्तर रूपी सिद्धांत हमें सही पथ दिखाते हैं और हमारा जीवन उन्नत करते हैं। आद्य शंकराचार्य की जयंती (2 मई) पर प्रस्तुत हैं उनकी इस जीवनोपयोगी आध्यात्मिक कृति के संपादित अंश।

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    भगवन् किमुपादेयं? गुरुवचनं,

    हेयमपि किम्? अकार्यम्।

    को गुरु:? अधिगततत्व:,

    शिष्यहितायोद्यत: सततम्।।

    हे भगवन। उपादेय (स्वीकार करने योग्य) क्या है? गुरु का वचन ही उपादेय है। हेय (त्याज्य) क्या है? अकार्य अर्थात अनुचित कार्य। गुरु कौन है? जिसको तत्वज्ञान (सत्य का ज्ञान) हो चुका है तथा जो सदा शिष्य के लिए उद्यत रहता है, वह गुरु है। शिष्य को तत्वज्ञान कराना ही शिष्य का हित कहा गया है।

    त्वरितं किं कर्तव्यं विदुषां?

    संसारसंततिच्छेद:।

    किं मोक्षतरोर्बीजं?

    सम्यग्ज्ञानं क्रियासिद्धम।।

    विद्वान को तुरंत क्या करना चाहिए? जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाना ही विद्वान का परम कर्तव्य है। मोक्षरूपी वृक्ष का बीज क्या है? अपने आचारण में उतारा गया सम्यक (वास्तविक) ज्ञान ही मोक्षरूपी वृक्ष का बीज है।

    क: पथ्यतरो? धर्म:

    क: शुचिरिह? यस्य मानसं शुद्धम।

    क: पंडितो? विवेकी

    किं विषम्? अवधीरणा गुरुषु।।

    सर्वश्रेष्ठ पथ्य क्या है? धर्म ही सर्वश्रेष्ठ पथ्य है। यहां धर्म का अभिप्राय सत्य के आचरण से है। यहां कौन पवित्र है? जिसका मानस शुद्ध है, वही पवित्र है। कौन पंडित (ज्ञानी) है? जो विवेकवान है, वही पंडित है। विष क्या है? गुरुजनों (श्रेष्ठजनों) का तिरस्कार ही विष है।

    किं संसारे सारं?

    बहुशो पि विचिंत्यमानमिदमेव।

    किं मनुजेष्विष्टतम्?

    स्वपरहितायोद्यतं जन्म।।

    संसार में सार (वास्तविक तत्व) क्या है? यही वह तत्व है, जिसका हम बार-बार चिंतन करते हैं (परंतु निष्कर्ष नहीं मिल पाता)। मनुष्यों के लिए इष्टतम क्या है? अपने और दूसरे के हित के लिए समर्पित जन्म प्राप्त करना ही मनुष्यों के लिए इष्टतम है।

    मदिरेव मोहजनक: क:? स्नेह:,

    के च दस्यवो? विषया:।

    का भववल्ली? तष्णा

    को वैरी? यस्त्वनुद्योग:।।

    मदिरा के समान मोहजनक क्या है? स्नेह (लगाव)। दस्यु (डाकू) कौन है? सांसारिक विषय (इंद्रियों की तृप्ति के साधन)। पुन:-पुन: जन्म की लता कौन है? सांसारिक विषयों की तृष्णा। शत्रु कौन है? जो अनुद्योग (निष्कर्म) हैं, वही शत्रु हैं।

    कस्माद् भयमिह? मरणाात्

    अंधादिह को विशिष्यते? रागी।

    क: शूरो? या ललना-लोचन-बाणैर्न

    च व्यथित:।।

    इस संसार में भय किससे है? मृत्यु से। इस संसार में सबसे बड़ा अंधा कौन है? जो रागी (विषयों में आसक्त) है। शूरवीर कौन है? जो ललनाओं (सुंदरियों) के चंचल नेत्रों के बाणों से घायल नहीं होता।

    किं जीवितम्? अनवद्यम्

    किं जाड्यं? पठतो प्यनभ्यास:।

    को जागर्ति? विवेकी

    का निद्रा? मूढ़ता जंतो:।

    जीवन क्या है? निर्मलता, निष्कलंकता ही जीवन है। जड़ता क्या है? अध्ययन किए गए पाठ का अभ्यास न करना। कौन जागता है? विवेकवान ( जो यथार्थ और अयथार्थ की पहचान रखता है)। निद्रा क्या है? लोगों की मूढ़ता

    नलिनी-दल-गत-जलवत्तरलं किं?

    यौवनं धनं चायु:।

    कथय पुन: के शशिन:

    किरणसमा:? सज्जना एव।।

    कमलिनी के पत्ते में पड़े जल की तरह तरल (अस्थायी) क्या है? यौवन, धन और आयु। चंद्रमा की किरणों के समान शीतल कौन होते हैं? सज्जन पुरुष।

    को नरक:? परवशता

    किं सौख्यं? सर्वसंगविरतिर्या।

    किं सत्यं? भूतहितं

    प्रियं च किं? प्राणिनामसव:।।

    नरक क्या है? दूसरे के अधिकार में रहना। सौख्य क्या है? सभी संगतियों से वैराग्य, किसी की आवश्यकता न होना। साध्य (हमारे द्वारा किए जाने योग्य) क्या है? समस्त प्राणियों का कल्याण। प्राणियों को सबसे प्रिय क्या होता है? प्राण ही प्राणियों को सर्वाधिक प्रित होते हैं।

    को अनर्थफलो? मान:

    को सुखदा? साधुजनमैत्री

    सर्वव्यसनविनाशे को दक्ष:?

    सर्वथा त्यागी।।

    अशुभ फल देने वाला कौन है? मान (अहंकार)। कौन सदा सुखद होती है? सज्जनों की मैत्री। समस्त व्यसनों को नष्ट करने में कौन समर्थ होता है? जो सर्वदा त्यागी होता है।

    किं मरणं? मूर्खत्वं

    किं चानर्घं? यदवसरे दत्तम्।

    आमरणात् किं शल्यं?

    प्रच्छन्नं यत्कृतं पापम्।।

    मरण क्या है? मूर्खता ही मरण है। सबसे बहुमूल्य क्या है? जो अवसर में प्राप्त हो जाए। मृत्युपर्यंत कौन पीड़ित करता है? छिपाकर किया गया पाप।

    कुत्र विधेयो यत्नो?

    विद्याभ्यासे सदौषधे दाने।

    अवधीरणा क्व कार्या?

    खल परयोषित परधनेषु।।

    हमें कहां प्रयास करना चाहिए? विद्या के अभ्यास में, सदौषधि के सेववन में तथा दान में सदा प्रयास करना चाहिए। किसकी इच्छा नहीं करनी चाहिए? दूसरे की स्त्री तथा दूसरे के धन की।

    क: साधु:? सद्वृत्त:

    कमधममाचक्षते? त्वसद्वृत्तम्।

    केन जितं जगदेतत्?

    सत्यतितिक्षावता पुंसा।।

    साधु कौन है? वह सज्जन पुरुष जो समाज के उत्थान के लिए अच्छा कार्य करे। अधम किसे कहते हैं? जो विरुद्ध आचरण करके समाज को गिराता है। इस संसार को किसने जीता? सत्यनिष्ठ और त्यागी पुरुष ने।

    कस्य वशे प्राणिगण:?

    सत्यप्रियभाषिणो विनीतस्य।

    क्व स्थातव्यं? न्याय्ये

    पाथि दृष्टालाभाढ्ये।।

    यह प्राणियों का समूह किसके वश में है? सत्य और प्रिय बोलने वाले विनयशील पुरुष के। कहां पर स्थित होना चाहिए? जहां हम अनेक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ पा सकें।

    को अंधो? योअकार्यरत:

    को बधिरो? यो हितानि न शृणोति।

    को मूको? य: काले

    प्रियाणि वक्तुं न जानाति।।

    कौन अंधा है? जो अनाचारी है। कौन बहरा है? जो अपने हित को नहीं सुनता। कौन गूंगा है? जो समय पर प्रिय बोलना नहीं जानता।

    किं दानम्? अनाकांक्षम

    किं मित्रं? यो निवारयति पापात्।

    कोअलंकार:? शीलं

    किं वाचां मंडनं? सत्यम्।।

    दान क्या है? जो बिना आकांक्षा के प्राप्त हो। मित्र कौन है? जो पाप से दूर रखे। आभूषण क्या है? शील ही आभूषण है। वाणी का आभूषण क्या है? सत्य ही वाणी का आभूषण है।

    किं संपाद्यं मनुजै:?

    विद्या वित्तं बलं यश: पुण्यम्।

    क: सर्वगुणविनाशी?

    लोभ:, शत्रुश्च क:? काम:।।

    यह भी पढ़ें: Jeevan Darshan: काम और क्रोध पर कंट्रोल करना है जरूरी, रखें इन बातों का ध्यान

    मनुष्यों को क्या प्राप्त करना चाहिए? विद्या, धन, बल, यश और पुण्य। कौन समस्त गुणों को नष्ट कर देता है? लोभ सभी गुणों को नष्ट कर देता है। कौन सबसे बड़ा शत्रु है? काम सबसे बड़ा शत्रु है।

    सर्वसुखानां बीजं किं?

    पुण्यं, दुखमपि कुत:? पापात्।

    कस्यैश्वर्यं? य: किल

    शंकरमाराधयेद् भक्त्या।।

    समस्त सुखों का बीज क्या है? पुण्य ही समस्त सुखों का बीज है। दुख किससे प्राप्त होता है? पाप से। ऐश्वर्य किसे प्राप्त होता है? जो भक्ति से भगवान शंकर की आराधना करता है।

    को वर्धते? विनीत:

    को वा हीयेत? यो दृप्त:।

    को न प्रत्येतव्यो?

    ब्रूते यश्चानृतं शश्वत।।

    हमेशा कौन उन्नति करता है? विनयशाली। कौन हमेशा अवनति को प्राप्त करता है? जो अहंकारी होता है। किस पर विश्वास नहीं करना चाहिए? जो हमेशा झूठ बोलता है।

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