Magh Purnima 2025: माघ पूर्णिमा पर गंगा स्नान से मिलते हैं ये आध्यात्मिक लाभ, यहां पढ़ें इस पर्व की कथा
पुण्यभूमि भारतवर्ष में धर्मपरायण मानवों के लिए प्रतिदिन कुछ न कुछ धार्मिक आध्यात्मिक सांस्कृतिक लौकिक तथा पारलौकिक उन्नति के लिए धर्मशास्त्रों में विधान किए गए हैं तथापि विशिष्ट पर्वों पर विशेष कर्तव्य नियत किए गए हैं। शास्त्रों में माघ मास स्नान की बड़ी महिमा कही गई है। इसमें भी माघी पूर्णिमा (Magh Purnima 2025) को विशेष महत्व दिया गया है।
प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री (पूर्व अध्यक्ष, ज्योतिष विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी)। माघ मास की पूर्णिमा का शास्त्रों में अत्यधिक महत्व बताया गया है। विशेषकर इस दिन किए गए स्नान दान का। माघी पूर्णिमा (12 फरवरी) पर विशेष...
पुण्यभूमि भारतवर्ष में धर्मपरायण मानवों के लिए प्रतिदिन कुछ न कुछ धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, लौकिक तथा पारलौकिक उन्नति के लिए धर्मशास्त्रों में विधान किए गए हैं, तथापि विशिष्ट पर्वों पर विशेष कर्तव्य नियत किए गए हैं। शास्त्रों में माघ मास स्नान की बड़ी महिमा कही गई है। इसमें भी माघी पूर्णिमा को विशेष महत्व दिया गया है। सिद्धांत एवं संहिता ज्योतिष में महीनों का नौ प्रकार का कालमान बताया गया है, जिनमें चार प्रकार के महीने सौरमास, चांद्रमास, सावनमास तथा नाक्षत्रमास ही नित्य मनुष्यों के व्यावहारिक जीवन में उपयोग होते हैं।
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ये हैं प्राचीन समय के माघ माह के प्रचलित नाम
गर्गाचार्य ने इन मासों में वैवाहिक कृत्यों में सौरमास को यज्ञ-अनुष्ठान, दान, जप-तप, व्रत में सावन पूर्णिमांत मास को तथा पितृ कार्यों हेतु चांद्रमासों की महत्ता स्वीकार की है। नारद संहिता का कहना है पूर्णिमांत मास जिस नक्षत्र से युक्त होता है अर्थात पूर्णिमा तिथि पर जो नक्षत्र रहता है, उसी आधार पर उस महीने का नाम ऋषियों द्वारा रखा गया है। यही बात संस्कृत व्याकरण के महान आचार्य महर्षि पाणिनि ने भी कही है। जैसे चित्रा नक्षत्र से चैत्र, विशाखा से वैशाख, ज्येष्ठा से ज्येष्ठ, आषाढा से आषाढ, श्रवण से श्रावण, भाद्रपदा से भाद्रपद, अश्विनी से आश्विन, कृत्तिका से कार्तिक, मृगशिरा से मार्गशीर्ष, पुष्य से पौष, मघा से माघ तथा फाल्गुनी से फाल्गुन मास हैं। अतिप्राचीन वैदिक काल में इस महीनों का नाम मधु, माधव, शुक्र, शुचि, नभ, नभस्य, इष, ऊर्ज, सह, सहस्य, तप तथा तपस्य नाम प्रचलित थे।
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वैदिक साहित्य में सभी कालमान प्राकृतिक थे, किंतु कालांतर में ऋषियों ने निरंतर आकाशावलोकन एवं अपनी योगज दृष्टि से यह अनुभव किया कि प्रायः एक महीने तक जैसे चैत्र के महीने में सूर्यास्त के पश्चात पूर्वी क्षितिज पर चित्रा नक्षत्र उदित रहता है तथा पूरी रात्रि दिखाई भी देता है। इसकी पूर्णिमा भी चित्रा नक्षत्र में होती है अतः मधुमास के स्थान पर वैदिक ऋषियों ने चित्रा पूर्णमासी कहा, उसी तरह जब माघ मास आता है तब पूर्वी क्षितिज पर सूर्यास्त के पश्चात महीने भर मघा नक्षत्र संपूर्ण रात्रि पर्यंत उदित रहता है अतः जहां माघ को वैदिक ऋषियों ने तपमास कहा था उसी को माघी पूर्णिमा भी कहा जाने लगा।
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क्यों कहते हैं महापूर्णिमा?
जब चंद्रमा पूर्णकला से उदित होता है, तब उस तिथि को पूर्णमासी या पूर्णिमा कहा जाता है। जब पूर्णिमा के दिन चंद्रमा एवं गुरु एक नक्षत्र में होते हैं, तब उस पूर्णिमा को महापूर्णिमा कहा जाता है। ऐसी स्थिति में उपवास, स्नान, दान आदि अक्षय फलदायक हो जाते हैं। माघपूर्णिमा को तिल दान अवश्य करने का विधान किया गया है। पद्मपुराण के अध्याय 219 से 250 तक कुल 28 सौ श्लोकों में माघमास के स्नानादिक कृत्यों का माहात्म्य बताया गया है। प्रात: स्नान की प्रशंसा की गई है। कहा गया है कि प्रातःकाल जब तारे दिख रहे हों उस काल का स्नान सर्वोत्तम होता है।
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कब करें गंगा स्नान?
सूर्योदय के समय का स्नान मध्यम तथा बाद का स्नान सामान्य फलदाता रहता है। मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा जिस मास में होती है, उस मास को माघ मास कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, जिस व्यक्ति की इच्छा बहुत काल तक स्वर्गलोक में रहने की हो वह माघमास पर्यंत सूर्योदय से पूर्व किसी भी जल में स्नान करे। माघ मास के आरंभ से प्रातः स्नान, हवन, तिल का भोजन, तिलस्नान तथा मूली का निषेध आदि कार्यों का समापन माघ पूर्णिमा को होता है। इस दिन से माघ स्नान व्रत नियम तथा कल्पवास की समाप्ति हो जाती है। माघ मास की पूर्णिमा को स्नानोपरांत तिलपूर्णपात्र, कंबल वस्त्र, मिष्ठान्न, गो दान अथवा यथाशक्ति दान करने की परंपरा है।
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माघ पूर्णिमा कथा (Magh Purnima Katha)
पद्मपुराण के उत्तरखंड में वशिष्ठ जी ने महाराज दिलीप को माघ मास के स्नानमात्र से सुव्रत नामक ब्राह्मण को कैसे दिव्यलोक की प्राप्ति हुई थी, यह कथा सुनाई है। वशिष्ठ जी कहते हैं कि नर्मदा नदी के तट पर एक सुव्रत नामक ब्राह्मण वेदज्ञ होते हुए भी अर्थ लोलुप हो गए और धन के लोभ में गाय, कन्या, अन्न आदि का विक्रय करने लगे। संध्यावंदन, पूजा, पाठ का भी समय नहीं रह गया। धन कैसे जोड़ें, इसी चिंतन में जीवन का बहुत समय व्यतीत कर दिया। जब वृद्ध हो गए, चलने-फिरने का सामर्थ्य नहीं रह गया, तब चिंताग्रस्त रहने लगे। इनके दुर्भाग्य से उसी समय चोरों द्वारा इनका धन भी हरण कर लिया गया। तब ये अतिशय दुखी होकर प्राण त्याग करने का विचार करने लगे। अत्यंत व्याकुल होने पर इन्हें स्मरण हो आया।
ये धनार्जन हेतु कभी जा रहे थे, तभी मार्ग में गंगा जी के तट पर कुछ विद्वानों के द्वारा माघ मास का माहात्म्य सुना था। उस माहात्म्य के श्लोक में कहा गया था-माघमास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त होकर स्वार्गलोक चले जाते हैं। उन्होंने सोचा, मुझे भी अब माघमास का स्नान करना चाहिए। मन ही मन ऐसा निश्चय कर सुव्रत ने अपना मन स्थिर कर नौ दिनों तक माघ स्नान किया। दसवें दिन शीत से पीड़ित होकर प्राण त्याग दिया। उसी समय एक सुंदर विमान आया, जिस पर चढ़कर वे स्वर्गलोक चले गए। बहुत दिनों तक स्वर्ग सुखभोग कर पृथ्वीलोक में जन्म लिया। पुनः प्रयाग क्षेत्र में एक मास माघ मास में विधिपूर्वक स्नान करने पर पुनः ब्रह्मलोक प्राप्त किया।
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