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    Jeevan Darshan: दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी महाकुंभ जैसी एकता, जानें इससे जुड़ी प्रमुख बातें

    Updated: Mon, 10 Feb 2025 12:51 PM (IST)

    कुंभ जैसी एकता कहीं नहीं मिलेगी। यहां कोई नहीं पूछता कि कौन किस जाति भाषा प्रांत से है। सब जुटे हैं। सााधु-संत सवारी निकाल रहे हैं। कोटि-कोटि जन स्नान कर रहे हैं। यह (Mahakumbh 2025) सबसे बड़ी एकता है। धन्य है भारत की भूमि जहां तीन पावन नदियों की धारा (संगम) आपस में मिलकर हम सबको मिलना सिखा रही हैं।

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    Jeevan Darshan: महाकुंभ से जुड़ी प्रमुख बातें।

    मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। कुंभ के कई अर्थ हैं, लेकिन प्रचलित कथा तो यही है कि समुद्र मंथन से अमृत कुंभ निकला। कुंभ से जहां-जहां वह छलका, वहां हम 12 साल में पूर्ण कुंभ मनाते हैं। कुंभ महामिलन है, महासम्मेलन है।कुंभ (घड़े) को देखें, तो उसका उदर बड़ा है और मुख संकीर्ण है। इसका अर्थ है कि जो कहना है, वह लघु रूप से सूत्र रूप में कह देता है, यद्यपि उसके उदर में तो सब शास्त्र होते हैं। इतना उदार उसका पेट है। कबीर कहते हैं कि जल में कुंभ है, कुंभ में जल है। बाहर भीतर पानी। कुंभ हमारी संस्कृति से जुड़ा हुआ है।

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    हर मांगलिक कार्य में, पूजा में कलश की स्थापना होती है। मंत्र भी ऐसे हैं कि कलश के मूल में यह देवता, मध्य में यह देवता, मुख्य में यह देवता वास करते हैं। हमारी प्रवाही परंपरा में कुंभ की बड़ी महिमा है। हम पूरी गंगा को घर तक नहीं ले जा सकते, लेकिन कुंभ में भरकर गंगा को घर में ला सकते हैं।

    महामना मदन मोहन मालवीय से एक अंग्रेज अफसर ने पूछा था कि आपके यहां महाकुंभ कैसे होता है। मालवीय जी ने बताया था कि महाकुंभ बसाने में सिर्फ चार आने लगते हैं। महामना ने बताया कि हम छोटे से पंचांग में छाप देते हैं कि कुंभ इस तारीख से लगने वाला है और पूरी दुनिया जुट जाती है। देशकाल के अनुसार आयोजन करना होता है, यह जरूरी है, लेकिन कुंभ का मेला मूल में तो स्वयंभू है। कुंभ नैसर्गिक है, कुदरती है। कुंभ अस्तित्व की व्यवस्था है, मानव सर्जित नहीं है।

    कुंभ में सब आए हैं, लेकिन स्पर्धा करने के लिए नहीं, त्रिवेणी में स्थान करने के लिए। कुंभ जैसी एकता कहीं नहीं मिलेगी। यहां कोई नहीं पूछता कि कौन ब्राह्मण है, कौन क्षत्रिय है, कौन किस जाति का है। किस भाषा, प्रांत, वर्ण से है। सब जुटे हैं, बिना कोई नेटवर्क बनाए। सााधु-संत सब अपने हिसाब से सवारी निकाल रहे हैं। कोटि-कोटि जन स्नान कर रहे हैं। यह सबसे बड़ी एकता है। धन्य है भारत की भूमि, जहां तीन पावन नदियों की धारा आपस में मिलकर हम सबको मिलना सिखा रही हैं।

    कुंभ में लोग कुछ लेने नहीं, बल्कि देने आते हैं। हां, पुण्य कमाने की इच्छा होती है, लेकिन मीलों नंगे पांव चलकर अपनी पवित्र परंपरा का दर्शन करने वे आते हैं। कुंभ विशेष भूमि पर होता है। यह विशेष महिमा वाली भूमि है। हम कहीं भी कथा करते हैं तो पहले तीन-चार दिन वायुमंडल बनाना होता है, मेहनत करनी पड़ती है। कुंभ में

    बना-बनाया वातावरण मिलता है। हजारों वर्षों का पुण्य यहां जमा है। कुंभ में किसी महात्मा से मिलना, कल्पवास कर रहे लोगों के दर्शन करना, बहुत महिमा का काम है। कौन क्या है, कुछ नहीं कहा जा सकता। इनमें कुछ प्रत्यक्ष चेतना हैं तो कुछ अप्रत्यक्ष चेतना हैं। हम किसी चेतना को न देख पाएं, न पहचान पाएं, लेकिन वह हमें देख ले तो यह भी हमारा गंगा स्नान है। दर्शन, स्नान, स्पर्श, पान की महिमा है। साथ ही स्मरण की भी महिमा है।

    युवा बहुत अधिक संख्या में कुंभ से जुड़ रहे हैं। कुंभ की चेतना सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है। मुझे

    विश्वास है कि आने वाले समय में ऐसा और भी अच्छा दर्शन हो सकता है। कुंभ और तीर्थ दिव्य ही हैं। कुंभ भव्यता से भरा है, लेकिन मूल में दिव्यता है। आज का विज्ञान भव्यता बना रहा है, लेकिन कुंभ दिव्य तो है ही। इस बार एक विशेषता यह भी है कि इतने सालों के बाद ग्रह-नक्षत्र एक साथ अनुकूल हुए हैं।

    इस महाकुंभ का संदेश है कि व्यक्ति-व्यक्ति, परिवार-परिवार, समाज-समाज, भाषा-भाषा, वर्ण-वर्ण, जाति-जाति, देश- दुनिया सबके बीच में वैचारिक संगम हो। बौद्धिक और हार्दिक संगम हो। हमारे चिंतन का केंद्र बिंदु संगम है। यह महाकुंभ, इतने सालों के बाद हुआ है। इसलिए इस बार की कथा का नामकरण भी मानस महाकुंभ किया गया।

    मेरे अनुभव में रामचरित मानस भी एक महाकुंभ है, जो निरंतर अंतरस्नान और अवगाहन कराता है। इसका दर्शन, इसका स्पर्श, इसका आचमन, इसका निमज्जन चारों रूपों का रामचरित मानस की पंक्ति में वर्णन आता है। मेरी दृष्टि में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी स्थावर संगम और राम चरित मानस जंगम संगम है। दुनियाभर में प्रयागराज घूम रहा है।

    परमात्मा ने भी जगत का कुंभ बनाया है। जगत रूपी चाक बनाकर कुंभ की रचना करते हैं। समुद्र मंथन से निकले अमृत कुंभ की बूंदें चार स्थानों पर जहां भी गिरी हैं, वहां अमृत होने का बोध होता है। महाकुंभ में अमृत पान के लिए लोग आ रहे हैं। इस कुंभ का चिंतन अनेक रूपों में किया गया है। कुंभ से ही कुंभज (अगस्त्य ऋषि) रामकथा लेकर उत्पन्न हुए थे।

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    मेरी राय में महाकुंभ दिव्य-भव्य से आगे सेव्य है। कुंभ का अर्थ समस्त वेद- शास्त्रों का सत्व-तत्व भी होता है। सत्व-तत्व का कुंभ में दान करके लोग धन्य हो जाते हैं। कुंभ के कई अभिप्राय हैं। कुंभ के पीछे धर्म का आश्रय करें तो पता चलता है कि समुद्र मंथन से जो अमृत कलश निकला था, उसको देव, असुर सब पीना चाहते थे। महाकुंभ भव्य और दिव्य भी है। मेरी राय में दिव्य और भव्य के साथ इस सेव्य कुंभ का सेवन किया जाना चाहिए।

    संगम में डुबकी लगाने का महत्व है। हाथ पैर धोने और आचमन करने की भी महिमा है। डुबकी में पूरा अंग अंदर जाता है। जैसे किसी से सिर्फ हाथ मिलाएं, तो इतना ही संगम नहीं है। हमारे नेत्र, वाणी, कर्म, यात्रा और प्रत्येक इंद्रियों का संगम होना चाहिए। डुबकी लगाने से संगमी दीक्षा प्राप्त होती है। डुबकी लगाने से संगम से अभिषेक होता है। मनुष्य से परस्पर प्रेम का संगम होता है।

    महाकुंभ में बड़े-बड़े महापुरुष एकत्र हुए हैं। जो भी हो साधु-संतों का चिंतन-मनन हितकारी है। कुंभ के साधु भी कितने व्यावहारिक हैं। देशकाल के अनुसार निर्णय लेना पड़े तो ले रहे हैं। एक घटना के बाद परंपरा निभाई गई। यह जरूरी है क्योंकि एक बार परंपरा खंडित हो तो कल कौन क्या व्यवस्था हो, कोई नहीं जानता। फिर खंडित हुई मूर्ति अपूज्य हो जाती है। उसकी पूजा नहीं की जाती। इसलिए देशकाल के अनुसार परंपरा निभाना महात्माओं की महानता है।

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