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    जीवन दर्शन: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है नवरात्र, इन चीजों से बनता है यह पर्व और भी खास

    नवरात्र पर व्रत-उपवास साधना-अर्चना का एक ही उद्देश्य है अपने मूल स्रोत की ओर लौटना और जीवन में नव-स्फूर्ति लाना। वैसे तो नवरात्र को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है लेकिन असल लड़ाई अच्छाई और बुराई के बीच नहीं है तो चलिए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं जो इस प्रकार हैं।

    By Jagran News Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 31 Mar 2025 10:10 AM (IST)
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    जीवन दर्शन: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है नवरात्र।

    श्री श्री रविशंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु)। परिवर्तन के इस समय में प्रकृति पुराने को त्यागकर फिर से नवीव व युवा हो जाती है। वैदिक विज्ञान के अनुसार, पदार्थ अपने मूल स्वरूप में वापस लौटता है और बार-बार स्वयं को पुन: बनाता है। सृष्टि चक्रीय है, रैखिक नहीं। प्रकृति द्वारा सब कुछ पुनःचक्रित किया जाता है, जो कायाकल्प की एक सतत प्रक्रिया है। हालांकि, मानव मन सृष्टि के इस नियमित चक्र में पिछड़ जाता है। देवी मां को न केवल बुद्धि की चमक के रूप में पहचाना जाता है, बल्कि भ्रम (भ्रांति) के रूप में भी जाना जाता है। वह केवल प्रचुरता (लक्ष्मी) नहीं है, वह भूख (क्षुधा) और प्यास (तृष्णा) भी है। संपूर्ण सृष्टि में देवी मां के इस आयाम की प्रतीति करने से व्यक्ति समाधि की गहरी अवस्था में पहुंच जाता है। ज्ञान, भक्ति और निष्काम कर्म के माध्यम से व्यक्ति अद्वैत सिद्धि या अद्वैत चेतना में पूर्णता प्राप्त कर सकता है।

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    बुराई पर अच्छाई की जीत

    वैसे तो नवरात्र को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन असल लड़ाई अच्छाई और बुराई के बीच नहीं है। वेदांत के दृष्टिकोण से देखा जाए तो जीत प्रत्यक्ष द्वैत पर परम सत्य की होती है। अष्टावक्र के शब्दों में, यह ऐसी असहाय लहर है, जो अपनी पहचान सागर से अलग रखने की कोशिश करती है, लेकिन सफल नहीं होती। आंतरिक यात्रा हमारे नकारात्मक कर्मों को नष्ट कर देती है।

    नवरात्र आत्मा या प्राण का उत्सव है, जो अकेले ही महिषासुर (जड़ता), शुंभ-निशुंभ (गर्व और शर्म) और मधु-कैटभ (लालसा और घृणा के चरम रूप) को नष्ट कर सकता है। ये पूरी तरह से विपरीत हैं, फिर भी एक-दूसरे के पूरक हैं।

    जीवन-शक्ति ऊर्जा

    जड़ता, गहरी जड़ें जमाए नकारात्मकता और जुनून (रक्तबीजासुर), अनुचित तर्क (चंड-मुंड) और धुंधली दृष्टि (धूम्रलोचन) को केवल प्राण और शक्ति, जीवन-शक्ति ऊर्जा के स्तर को बढ़ाकर ही दूर किया जा सकता है। साधक उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से सच्चे स्रोत तक वापस पहुंचता है। नवरात्र कायाकल्प करता है। यह हमारे अस्तित्व के तीन स्तरों (भौतिक, सूक्ष्म और कारण) पर राहत देता है।

    उपवास शरीर को शुद्ध करता है, मौन वाणी को शुद्ध करता है और मन को आराम देता है। वहीं ध्यान व्यक्ति को अपने अस्तित्व की गहराई में ले जाता है।

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    जीवन तीन गुणों द्वारा संचालित

    हालांकि हमारा जीवन तीन गुणों द्वारा संचालित होता है, लेकिन हम शायद ही कभी उन्हें पहचान पाते हैं। नवरात्र के पहले तीन दिन तमोगुण (अंतर) के लिए, अगले तीन दिन रजोगुण (गतिविधि) के लिए और अंतिम तीन दिन सत्व गुण (शांति) के लिए माने जाते हैं। हमारी चेतना तमो और रजोगुणों के बीच से होकर निकलती है और अंतिम तीन दिनों में सत्वगुण में खिलती है।

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