Karkotak Kaal sarp Dosh: कब और कैसे बनता है कर्कोटक कालसर्प दोष? इन उपायों से पाएं छुटकारा
सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही महादेव के निमित्त सोमवार का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही मायावी ग्रह राहु और केतु (Karkotak Kaal sarp Dosh) का प्रभाव कम हो जाता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को मायावी ग्रह कहा जाता है। वर्तमान समय में राहु मीन राशि में विराजमान हैं और केतु कन्या राशि में उपस्थित हैं। राहु और केतु 18 मई को राशि परिवर्तन करेंगे। 18 मई को राहु मीन राशि से निकलकर कुंभ राशि में गोचर करेंगे। वहीं, केतु कन्या राशि से निकलकर सिंह राशि में प्रवेश करेंगे। राहु और केतु के राशि परिवर्तन से मीन और कन्या राशि के जातकों को मायावी ग्रह से मुक्ति मिल जाएगी।
ज्योतिषियों की मानें तो राहु और केतु के चलते कुंडली में कई प्रकार के दोष बनते हैं। इनमें एक कालसर्प दोष है। कालसर्प दोष राहु और केतु के चलते बनता है। इस स्थिति में राहु और केतु एक सीध (12 भावों के मध्य) में रहते हैं। वहीं, सभी शुभ और अशुभ ग्रह राहु-केतु के मध्य रहते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि कुंडली में कर्कोटक कालसर्प दोष कब लगता है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
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कर्कोटक कालसर्प दोष के प्रभाव
कर्कोटक कालसर्प दोष से पीड़ित जातक को धन की हानि होती है। कई अवसर पर कारोबार में नुकसान होता है। आय की स्थिति कमजोर हो जाती है। शादी में देर होती है। सेहत संबंधी परेशानी भी होती है। बुरी संगतियों से भी धन की हानि होती है। परिवार में किसी के बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है।
कब बनता है कर्कोटक कालसर्प दोष?
ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में राहु के आठवें भाव में रहने और केतु के दूसरे भाव में रहने से कर्कोटक कालसर्प दोष बनता है। इस दौरान सभी शुभ और अशुभ ग्रह राहु और केतु के मध्य रहते हैं। इस स्थिति में कर्कोटक कालसर्प दोष लगता है। आसान शब्दों में कहें तो कुंडली में राहु के आठवें और केतु के दूसरे भाव में रहने के साथ सभी शुभ और अशुभ ग्रह मायावी ग्रह के मध्य में रहने पर जातक कर्कोटक कालसर्प दोष से पीड़ित होता है।
उपाय
ज्योतिषियों का मत है कि कर्कोटक कालसर्प दोष से पीड़ित जातकों को रोजाना महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। साथ ही भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। सोमवार और शनिवार के दिन गंगाजल से देवों के देव महादेव का अभिषेक करें। साथ ही पूजा के समय रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें। इन उपाय को करने से कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है। हालांकि, कर्कोटक कालसर्प दोष का निवारण अनिवार्य है।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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