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    Navratri 2025: देवी भगवती की आरती से पहले करें ये स्तुति, प्रसन्न होकर कृपा बरसाएंगी देवी मां

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 10:30 AM (IST)

    इस साल शारदीय नवरात्र की शुरुआत 22 सितंबर से हो चुकी है जिसका समापन 1 अक्टूबर को होगा। इस बार नवरात्र 10 दिनों तक चलने वाला है। यह अवधि मां दुर्गा की कृपा प्राप्ति के लिए बहुत ही उत्तम मानी गई है। ऐसे में आप इस दौरान देवी मां की आरती से पहले इस दिव्य स्तोत्र का पाठ कर मां भगवती की असीम कृपा के पात्र बन सकते हैं।

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    Navratri 2025: मिलेगा देवी भगवती का आशीर्वाद।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्र (Navratri 2025) की पावन अवधि में विधि-विधान से माता रानी की पूजा करने और व्रत करने से साधक को मां दुर्गा की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है और सुख-समृद्धि का माहौल बना रहता है। ऐसे में आप रोजाना देवी भगवती की आरती से पहले देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् का पाठ कर सकते हैं। इससे देवी की कृपा आपके व आपके परिवार के ऊपर बना रहता है।

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    देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्

    न मत्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो, न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।

    न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं, परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ।।१।।

    विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया, विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।

    तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे, कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।।२।।

    पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः, परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।

    मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे, कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।।३।।

    जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता, न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।

    तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे, कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।।४।।

    परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया, मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।

    इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता, निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ।।५।।

    श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा, निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः ।

    तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं, जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ।।६।।

    चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो, जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः ।

    कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं, भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ।।७।।

    न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे, न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।

    अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै, मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ।।८।।

    नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः, किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः ।

    श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे, धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ।।९।।

    आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं, करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।

    नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः, क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ।।१०।।

    जगदम्ब विचित्रमत्र किं, परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।

    अपराधपरम्परापरं, न हि माता समुपेक्षते सुतम् ।।११।।

    मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि, एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ।।१२।।

    इस तरह करें पाठ

    सबसे पहले स्नान आदि करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनें। इसके बाद मंदिर को साफ कर देवी का गंगाजल से अभिषेक करें। पूजा में माता को लाल रंग के वस्त्र, फूल और शृंगार आदि अर्पित करें। दीपक और धूप जलाएं और इसके बाद भक्तिभाव से देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् का पाठ करें। अंत में माता रानी की आरती करें और सभी लोगों में प्रसाद बांटें।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।