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    Shani Amavasya 2025: शनि अमावस्या पर गंगा स्नान के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी निजात

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 23 Mar 2025 11:00 PM (IST)

    ज्योतिषियों की मानें तो चैत्र अमावस्या (Shani Amavasya 2025 Date) के दिन साल का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा। यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। इसके लिए सूतक भी मान नहीं होगा। शनि अमावस्या के अगले दिन से चैत्र नवरात्र की शुरुआत होगी। चैत्र नवरात्र के दौरान मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की भक्ति भाव से पूजा की जाती है।

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    Shani Amavasya 2025: शनि अमावस्या का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, शनिवार 29 मार्च को चैत्र अमावस्या है। शनिवार के दिन पड़ने के चलते यह शनि अमावस्या (Shani Amavasya 2025 Kab Hai) कहलाएगी। इस शुभ अवसर पर न्याय के देवता शनिदेव राशि परिवर्तन करेंगे। शनिदेव 29 मार्च के दिन कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में गोचर करेंगे।

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    धार्मिक मत है कि अमावस्या तिथि पर गंगा स्नान कर देवों के देव महादेव की पूजा करने से साधक को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक पर देवों के देव महादेव की कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक की हर एक कामना पूरी होती है। अगर आप भी पितृ दोष से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो शनि अमावस्या के दिन गंगा स्नान के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    शनि अमावस्या शुभ मुहूर्त (Shani Amavasya Shubh Muhurat)

    चैत्र अमावस्या तिथि की शुरुआत 28 मार्च को रात 07 बजकर 55 मिनट पर होगी। वहीं, अमावस्या तिथि का समापन 29 मार्च को शाम 04 बजकर 27 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। इसके लिए 29 मार्च को शनि अमावस्या मनाई जाएगी।

    पितृ निवारण स्तोत्र

    अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।

    नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

    इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।

    सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।

    मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।

    तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।

    नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।

    द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

    देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।

    अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।

    प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

    योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।

    नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।

    स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।

    सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।

    नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।

    अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।

    अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।

    ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

    जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।

    तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

    नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।

    ॥ मां गंगा की स्तुति॥

    गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।

    त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥

    ॥देवी गंगा स्तोत्र॥

    देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे

    त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।

    शङ्करमौलिविहारिणि विमले

    मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥॥

    भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव

    जलमहिमा निगमे ख्यातः ।

    नाहं जाने तव महिमानं

    पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥॥

    हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे

    हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।

    दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं

    कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥॥

    तव जलममलं येन निपीतं,

    परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।

    मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः

    किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥॥

    पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे

    खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।

    भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,

    पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥॥

    कल्पलतामिव फलदां लोके,

    प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।

    पारावारविहारिणि गङ्गे

    विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥॥

    तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः

    पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।

    नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे

    कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥॥

    पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे

    जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।

    इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे

    सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥॥

    रोगं शोकं तापं पापं

    हर मे भगवति कुमतिकलापम्।

    त्रिभुवनसारे वसुधाहारे

    त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥॥

    अलकानन्दे परमानन्दे

    कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।

    तव तटनिकटे यस्य निवासः

    खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥॥

    वरमिह नीरे कमठो मीनः

    किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।

    अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव

    न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥॥

    भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये

    देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।

    गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं

    पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥॥

    येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां

    भवति सदा सुखमुक्तिः ।

    मधुराकान्तापज्झटिकाभिः

    परमानन्दकलितललिताभिः ॥॥

    गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं

    वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।

    शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति

    सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥॥

    देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे

    त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।

    शङ्करमौलिविहारिणि विमले

    मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥

    गंगा स्तोत्र

    ॐ नमः शिवायै गंगायै, शिवदायै नमो नमः।

    नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै, ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते।।

    नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, शांकर्यै ते नमो नमः।

    सर्व-देव-स्वरुपिण्यै, नमो भेषज-मूर्त्तये।।

    सर्वस्य सर्व-व्याधीनां, भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।

    स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते।।

    संसार-विष-नाशिन्यै, जीवानायै नमोऽस्तु ते।

    ताप-त्रितय-संहन्त्र्यै, प्राणश्यै ते नमो नमः।।

    शन्ति-सन्तान-कारिण्यै, नमस्ते शुद्ध-मूर्त्तये।

    सर्व-संशुद्धि-कारिण्यै, नमः पापारि-मूर्त्तये।।

    भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिन्यै, भद्रदायै नमो नमः।

    भोगोपभोग-दायिन्यै, भोग-वत्यै नमोऽस्तु ते।।

    मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु, स्वर्गदायै नमो नमः।

    नमस्त्रैलोक्य-भूषायै, त्रि-पथायै नमो नमः।।

    नमस्त्रि-शुक्ल-संस्थायै, क्षमा-वत्यै नमो नमः।

    त्रि-हुताशन-संस्थायै, तेजो-वत्यै नमो नमः।।

    नन्दायै लिंग-धारिण्यै, सुधा-धारात्मने नमः।

    नमस्ते विश्व-मुख्यायै, रेवत्यै ते नमो नमः।।

    बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु, लोक-धात्र्यै नमोऽस्तु ते।

    नमस्ते विश्व-मित्रायै, नन्दिन्यै ते नमो नमः।।

    पृथ्व्यै शिवामृतायै च, सु-वृषायै नमो नमः।

    परापर-शताढ्यै, तारायै ते नमो नमः।।

    पाश-जाल-निकृन्तिन्यै, अभिन्नायै नमोऽस्तु ते।

    शान्तायै च वरिष्ठायै, वरदायै नमो नमः।।

    उग्रायै सुख-जग्ध्यै च, सञ्जीविन्यै नमोऽस्तु ते।

    ब्रह्मिष्ठायै-ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः।।

    प्रणतार्ति-प्रभञजिन्यै, जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।

    सर्वापत्-प्रति-पक्षायै, मंगलायै नमो नमः।।

    शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे।

    सर्वस्यार्ति-हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते।।

    निर्लेपायै दुर्ग-हन्त्र्यै, सक्षायै ते नमो नमः।

    परापर-परायै च, गंगे निर्वाण-दायिनि।।

    गंगे ममाऽग्रतो भूया, गंगे मे तिष्ठ पृष्ठतः।

    गंगे मे पार्श्वयोरेधि, गंगे त्वय्यस्तु मे स्थितिः।।

    आदौ त्वमन्ते मध्ये च, सर्व त्वं गांगते शिवे!

    त्वमेव मूल-प्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।।

    गंगे त्वं परमात्मा च, शिवस्तुभ्यं नमः शिवे।।

    फल-श्रुति

    य इदं पठते स्तोत्रं, श्रृणुयाच्छ्रद्धयाऽपि यः।

    दशधा मुच्यते पापैः, काय-वाक्-चित्त-सम्भवैः।।

    रोगस्थो रोगतो मुच्येद्, विपद्भ्यश्च विपद्-युतः।

    मुच्यते बन्धनाद् बद्धो, भीतो भीतेः प्रमुच्यते।।

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