Sankashti Chaturthi 2025: संकष्टी चतुर्थी पर इस विधि से करें भगवान गणेश की पूजा, जानें महत्व और मंत्र
कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2025) भगवान गणेश को समर्पित है जो हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और गणेश जी की पूजा करने से सुख समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। वहीं इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्घ्य भी जरूर देना चाहिए।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी का सनातन धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। यह दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित है। यह हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। कहा जाता है कि यह व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों को सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
वहीं, जब आज यह पर्व (Sankashti Chaturthi 2025) मनाया जा रहा है, तो आइए इसकी पूजा विधि, महत्व और प्रिय भोग के बारे में जानते हैं।
भगवान गणेश के प्रिय भोग - मोदक और लड्डू।
संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व (Sankashti Chaturthi 2025 Significance)
संकष्टी चतुर्थी का शाब्दिक अर्थ है 'संकटों को हरने वाली चतुर्थी'। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है। यह व्रत संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य लाभ और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से चंद्र देवी की भी कृपा मिलती है।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि (Sankashti Chaturthi 2025 Puja Vidhi)
- सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।
- इसके बाद पूजा घर को गंगाजल से शुद्ध करें और एक वेदी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
- पूजा शुरू करने से पहले हाथ में जल और चावल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- भगवान गणेश का अभिषेक करें।
- घी का दीपक प्रज्वलित करें।
- भगवान गणेश को लाल फूल, दूर्वा, रोली और चंदन आदि चीजें चढ़ाएं।
- उन्हें मोदक, लड्डू, फल और अन्य मिठाई का भोग लगाएं।
- भगवान गणेश के मंत्रों का जप करें।
- संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
- अंत में भगवान गणेश की आरती करें।
- शाम के समय चंद्रमा दर्शन करें और उन्हें अर्घ्य दें।
- अंत में पूजा के लिए माफी मांगे।
भगवान गणेश पूजा मंत्र (Sankashti Chaturthi 2025 Puja Mantra)
- ॐ गं गणपतये नमः
- ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥
- वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
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