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    Ravan Kuldevi: कौन-थी दशानन रावण की कुलदेवी, जिनकी मेघनाथ ने की थी पूजा

    Updated: Tue, 01 Jul 2025 01:55 PM (IST)

    दशानन रावण एक शक्तिशाली योद्धा होने के साथ-साथ प्रकांड विद्वान भी था। इसी के साथ रावण का पुत्र मेघनाथ भी बहुत पराक्रमी था जिसे इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता था। क्योंकि उसने देवराज इंद्र को हराया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण की कुलदेवी कौन-थी चलिए जानते हैं इस बारे में।

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    Ravan Kuldevi मेघनाथ इस देवी की करता था पूजा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। माता सीता का हरण करने के कारण भगवान श्री राम और रावण के बीच एक भीषण युद्ध हुआ। अंत में रावण को हार का सामना करना पड़ा और प्रभु श्रीराम के हाथों उसकी मृत्यु हो गई। युद्ध से पहले रावण के पुत्र मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी की पूजा की थी। मेघनाद ने अपनी कुलदेवी की गहन साधना के कारण ही कई तरह की सिद्धियां प्राप्त की थीं। चलिए जानते हैं इस विषय में।

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    यज्ञ में सफल नहीं हुआ मेघनाथ

    युद्ध के दौरान जब रावण पक्ष के कई योद्धा मारे गए, तो इससे रावण के मन में हार का डर पैदा हो गया। तब उसने अपने पुत्र मेघनाथ को युद्ध के लिए भेजा। मेघनाथ ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण जी से युद्ध किया। इसी दौरान जब मेघनाथ को लगा कि वह सामने वाला पक्ष उसपर भारी पड़ रहा है, तो उसने अपनी कुलदेवी निकुंबला देवी के निमित्त तंत्र यज्ञ किया।

    विभीषण जानता था कि अगर वह अपने यज्ञ में सफल हुआ, तो उसे हरा पाना असंभव होगा। तब विभीषण ने हनुमान जी को यह सलाह दी कि वह मेघनाथ के यज्ञ को भंग कर दें। हनुमान जी ने मेघनाथ के यज्ञ में बाधा उत्पन्न की, जिससे उसे यह यज्ञ बीच में ही छोड़ना पड़ा था।

    कौन-थी देवी निकुंबला

    निकुंबला देवी को नारसिंही देवी और देवी प्रत्यंगिरा देवी के रूप में जाना जाता है, जिसे प्राक्ट्य की कथा बहुत ही रोचक है। शिव पुराण व मार्कंडेय पुराण में वर्णित कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया, तो इसके बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने शरभ अवतार लिया। यह अवतार सिंह और शरभ पक्षी का मिश्रण था। 

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    हुआ भयंकर युद्ध

    शरभ अवतार और नरसिंह अवतार के बीच भंयकर युद्ध हुआ, लेकिन इसका कोई परिणाम निकलता हुआ नजर नहीं आ रहा था। इस युद्ध से पूरी सृष्टि पर प्रलय का संकट खड़ा हो गय। इस युद्ध को रोकने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर आदिशक्ति महामाया का आवाहन किया, क्योंकि वही इस युद्ध को रोक सकती थीं। 

    इस तरह प्रकट हुईं देवी प्रत्यंगिरा

    महामाया ने प्रत्यंगिरा अवतार धारण किया, जिसमें सिंह और मानव के रूप का समावेश था। मां प्रत्यंगिरा एक जोरदार हुंकार मारी, जिसे सुनकर दोनों ही अवतार शांत हो गए और अपने रूप में वापस आ गए। इस प्रकार यह युद्ध समाप्त हुआ।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।