Devi Pratyangira की एक चिंघाड़ से समाप्त हुआ भीषण युद्ध, जानिए क्यों लेना पड़ा था यह उग्र अवतार
हिंदू पौराणिक ग्रंथों में ऐसी कई कथाओं का जिक्र मिलता है जो व्यक्ति को अचंभित कर सकती हैं। आज हम आपको आदिशक्ति द्वारा लिए गए एक ऐसे स्वरूप के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद ही आपने सुना हो। इस अवतार की कथा भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार से ही जुड़ी हुई है। चलिए जानते हैं वह अद्भुत कथा।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आज हम आपको मां प्रत्यंगिरा के उद्भव की कथा बताने जा रहे हैं, जो आदिशक्ति का ही एक स्वरूप हैं। इन देवी को विष्णु, रुद्र और दुर्गा देवी के एकीकृत रूप माना जाता है। आदिशक्ति का यह उग्र स्वरूप में देवी का शरीर तो एक स्त्री का है, लेकिन सिर सिंह का है। प्रत्यंगिरा देवी को दक्षिण भारत में अथर्वण भद्रकाली के नाम से भी जाना जाता है।
शिव जी ने क्यों लिया शरभ अवतार
शिव पुराण व मार्कंडेय पुराण में कथा मिलती है कि, जब भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार ने हिरण्यकश्यप का वध किया, तो इसके बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। कई देवताओं की कोशिशों के बाद भी जब नरसिंह भगवान शांत नहीं हुए, तो भगवान शिव ने शरभ अवतार लिया। शिव जी का यह सिंह और शरभ पक्षी का मिश्रण था। इस अवतार में शिव जी के दो गरुड़ पंख, शेर के पंजे, सिंह मुख, जटाएं तथा चंद्रमा धारण किया हुआ था।
शरभ व गंडभेरुंड के बीच हुआ युद्ध
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शरभ अवतार ने नरसिंह भगवान को पंजो में जकड़ लिया। इससे नरसिंह भगवान का क्रोध और ज्यादा बढ़ गया। तब भगवान नरसिंह अवतार ने गंडभेरुंड अवतार धारण किया, जो और भी अधिक भयानक तथा विशाल था। इसके बाद शरभ व गंडभेरुंड अवतार के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया, जो 18 दिनों तक चला।
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(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
इस तरह प्रकट हुईं देवी प्रत्यंगिरा
दो सर्वश्रेष्ठ देवता के युद्ध से समस्त लोक भयभीत था और किसी में उन्हें रोकने की क्षमता नहीं थी। जब युद्ध का अंत नहीं दिख रहा था, तब महामाया ने प्रत्यंगिरा अवतार धारण किया, जिसमें गंडभेरुंड अवतार और शरभ अवतार दोनों का समावेश था। मां प्रत्यंगिरा एक जोरदार चिंघाड़ मारी, जिसे सुनकर शरभ और गंडभेरुंड दोनों ने भय से युद्ध को रोक दिया। भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही अपने अवतार में वापस आ गए और इस प्रकार यह युद्ध समाप्त हुआ।

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