Parashurama Jayanti 2025: पहली बार सहस्त्रबाहु फिर 20 बार क्षत्रियों का विनाश किया, क्यों था परशुराम को इतना क्रोध?
सहस्त्रबाहु एक शक्तिशाली राजा था जिसने अपने अहंकार के चलते ऋषि जमदग्नि का घोर अपमान किया था और उनकी कामधेनु को उनसे छीन ले गया था। इसी के परिणामस्वरूप भगवान परशुराम (Parashurama Ji Katha) ने उसका वध किया और पृथ्वी को क्षत्रियों के अत्याचार से मुक्त कराने का संकल्प लिया तो आइए यहां इस कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। परशुराम जयंती भगवान परशुराम के जन्म का प्रतीक है। इन्हें भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है, जिसका हिंदू परंपरा में बहुत धार्मिक महत्व है। यह हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ती है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह (Parashurama Jayanti 2025) 29 अप्रैल को मनाई जाएगी। बता दें कि परशुराम जी का जन्म जमदग्नि ऋषि और रेणुका देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनके पिता जमदग्नि एक ऋषि थे और भृगु महर्षि के वंशज थे।
वे अपने पिता के प्रति अपनी गहन भक्ति और धर्म के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे, तो आइए यहां इस आर्टिकल में जानते हैं कि आखिर उन्होंने 21 बार धरती को क्षत्रियों से विहीन क्यों किया था?
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सीता स्वयंवर के दौरान जब शिव धनुष टूटने पर परशुराम जनकपुर पहुंचते हैं। वह भगवान राम से कहते हैं- ''सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥ यानी जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह मेरे लिए सहस्त्रबाहु के जैसा शत्रु है''।
आगे की चौपाई में वह यह भी कहते हैं- ''भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥ सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥'' यानी अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया और बहुत बार उसे ब्राह्मणों को दे डाला। हे राजकुमार! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटनेवाले मेरे इस फरसे को देख!
क्यों परशुराम जी ने 21 बार धरती को क्षत्रियों से विहीन कर दिया था?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सहस्त्रबाहु जिन्हें अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है। वह हैहय वंश के राजा कृतवीर्य का पुत्र था। उसने भगवान दत्तात्रेय की घोर तपस्या करके एक हजार भुजाओं का वरदान प्राप्त किया था, जिसके कारण वह सहस्त्रबाहु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सहस्त्रबाहु एक शक्तिशाली और पराक्रमी राजा था, लेकिन बीतते समय के साथ उसे अपने बल का घमंड हो गया था।
सहस्त्रबाहु के मन में आ गया था लालच
एक बार सहस्त्रबाहु अपनी पूरी सेना के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम में गया। ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु गाय की सहायता से सहस्त्रबाहु और उसकी विशाल सेना का स्वागत किया। कामधेनु की अद्भुत शक्ति को देखकर सहस्त्रबाहु के मन में लालच आ गया। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को छीनने का प्रयास किया, लेकिन जब ऋषि ने इंकार कर दिया तो उसने उनका अपमान किया और कामधेनु को बलपूर्वक अपने साथ ले गया।
जब परशुराम, जी लौटे तो उन्हें इस घटना की जानकारी हुई। अपने पिता के अपमान से वे बहुत क्रोधित हुए और तभी उन्होंने प्रतिज्ञा (Kshatriya Destruction) ली कि वह इस दुष्ट राजा और उसके वंश का नाश कर देंगे।
परशुराम जी ने ली प्रतिज्ञा
परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु का पीछा किया और उसका वध कर दिया। हालांकि, सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने प्रतिशोध लेने के लिए ऋषि जमदग्नि को मार दिया। पिता की हत्या से परशुराम का क्रोध और बढ़ गया, जिस वजह से उन्होंने क्षत्रिय वंश के अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त कराने का संकल्प लिया और 21 बार धरती को क्षत्रियों से विहीन कर दिया।
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