Parashurama Jayanti 2025: परशुराम जयंती पर करें इस चालीसा का पाठ, सभी भयों से मिलेगी मुक्ति
परशुराम जयंती का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन भगवान परशुराम जी की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन उनकी उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह 29 अप्रैल को मनाई जाएगी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन (Parashurama Jayanti 2025 Date) परशुराम चालीसा का पाठ परम कल्याकारी माना जाता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में परशुराम जयंती का खास महत्व है। इसी दिन अक्षय तृतीया भी मनाई जाती है। परशुराम जयंती भगवान परशुराम की जयंती का प्रतीक है। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, परशुराम जयंती वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। इस साल यह 29 अप्रैल को मनाई जाएगी, जो साधक इस दिन परशुराम जी की कृपा पाने की कामना कर रहे हैं, उन्हें इस दिन उनकी विशेष पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले सुबह भोर में स्नान करें।
इसके बाद एक घी का दीपक जलाएं। फिर, रोली, चंदन, अक्षत और ऋतु फल-मिठाई अर्पित करें। फिर परशुराम चालीसा का पाठ करें। अंत में आरती करें। ऐसा करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति होगी।
॥परशुराम चालीसा॥ (Parshuram Chalisa Lyrics in Hindi)
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरण सरोज छवि,निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा,गहि आशिष त्रिपुरारि॥
बुद्धिहीन जन जानिये,अवगुणों का भण्डार।
बरणों परशुराम सुयश,निज मति के अनुसार॥
॥ चौपाई ॥
जय प्रभु परशुराम सुख सागर।
जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर॥
भृगुकुल मुकुट विकट रणधीरा।
क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा॥
जमदग्नी सुत रेणुका जाया।
तेज प्रताप सकल जग छाया॥
मास बैसाख सित पच्छ उदारा।
तृतीया पुनर्वसु मनुहारा॥
प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा।
तिथि प्रदोष व्यापि सुखधामा॥
तब ऋषि कुटीर रूदन शिशु कीन्हा।
रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा॥
निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े।
मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े॥
तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा।
जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा॥
धरा राम शिशु पावन नामा।
नाम जपत जग लह विश्रामा॥
भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर।
कांधे मुंज जनेऊ मनहर॥
मंजु मेखला कटि मृगछाला।
रूद्र माला बर वक्ष विशाला॥
पीत बसन सुन्दर तनु सोहें।
कंध तुणीर धनुष मन मोहें॥
वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता।
क्रोध रूप तुम जग विख्याता॥
दायें हाथ श्रीपरशु उठावा।
वेद-संहिता बायें सुहावा॥
विद्यावान गुण ज्ञान अपारा।
शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा॥
भुवन चारिदस अरु नवखंडा।
चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा॥
एक बार गणपति के संगा।
जूझे भृगुकुल कमल पतंगा॥
दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा।
एक दंत गणपति भयो नामा॥
कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला।
सहस्त्रबाहु दुर्जन विकराला॥
सुरगऊ लखि जमदग्नी पांहीं।
रखिहहुं निज घर ठानि मन मांहीं॥
मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई।
भयो पराजित जगत हंसाई॥
तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी।
रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी॥
ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना।
तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा॥
लगत शक्ति जमदग्नी निपाता।
मनहुं क्षत्रिकुल बाम विधाता॥
पितु-बध मातु-रूदन सुनि भारा।
भा अति क्रोध मन शोक अपारा॥
कर गहि तीक्षण परशु कराला।
दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला॥
क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा।
पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा॥
इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी।
छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी॥
जुग त्रेता कर चरित सुहाई।
शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई॥
गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना।
तब समूल नाश ताहि ठाना॥
कर जोरि तब राम रघुराई।
बिनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई॥
भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता।
भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता॥
शास्त्र विद्या देह सुयश कमावा।
गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा॥
चारों युग तव महिमा गाई।
सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई॥
दे कश्यप सों संपदा भाई।
तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई॥
अब लौं लीन समाधि नाथा।
सकल लोक नावइ नित माथा॥
चारों वर्ण एक सम जाना।
समदर्शी प्रभु तुम भगवाना॥
ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी।
देव दनुज नर भूप भिखारी॥
जो यह पढ़ै श्री परशु चालीसा।
तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा॥
पृर्णेन्दु निसि बासर स्वामी।
बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी॥
॥ दोहा ॥
परशुराम को चारू चरित,मेटत सकल अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु,सदा सुयश सम्मान॥
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