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    Masik Kalashtami 2025: वैशाख कालाष्टमी पर इस विधि से करें पूजा, पाएं जीवन की समस्याओं से मुक्ति

    हर महीन में मासिक कालाष्टमी का व्रत किया जाता है। ऐसे में वैशाख माह की कालाष्टमी रविवार 20 अप्रैल को मनाई जाएगी। माना जाता है कि कालभैरव देव की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। ऐसे में चलिए जानते हैं वैशाख माह की मासिक कालाष्टमी के लिए कालभैरव की पूजा विधि और मंत्र।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Fri, 18 Apr 2025 11:52 AM (IST)
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    Masik Kalashtami 2025 कालाष्टमी पर कालभैरव की पूजा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मासिक कालाष्टमी (Masik Kalashtami 2025) पर मुख्य रूप से कालभैरव की पूजा की जाती है, जो भगवान शिव के उग्र रूप हैं। इस दिन पर खासतौर से तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले लोग उपासना करते हैं, क्योंकि कालभैरव जी को  तंत्र-मंत्र का देवता माना गाय है। 

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    ऐसे में आप अप्रैल में आने वाली मासिक कालाष्टमी पर इस विधि से कालभैरव देव की पूजा कर सकते हैं, जिससे आपको जीवन की कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।

    मिलते हैं ये लाभ (Masik Kalashtami Importance)

    धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन व्रत करने और कालभैरव भगवान की पूजा-अर्चना करने से साधक को सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिल जाती है। इसी के साथ साधक के सभी विशेष कार्य भी सिद्धि हो सकते हैं। कालभैरव जी को तंत्र-मत्र का देवता के रूप में पूजा जाता है।

    इतना ही नहीं काल भैरव की आराधना करने वाले जातक को सांसारिक दुखों से भी मुक्ति मिल जाती है। मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन निशिता मुहूर्त में काल भैरव जी की पूजा करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु के साथ-साथ शनि और राहु की बाधा से मुक्ति मिल सकती है।

    मासिक कालाष्टमी की पूजा विधि (Masik Kalashtami Puja vidhi)

    • मासिक कालाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त हो जाएं।
    • पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहने।
    • सूर्य देव को अर्घ्य दें और शुभ मुहूर्त में कालभैरव जी की पूजा करें।
    • पूजा में शिव चालीसा और शिव जी के मंत्रों का जप करें।
    • निशिता मुहूर्त में दोबारा पूजा-अर्चना करें और कालभैरव देव के मंत्रों का जप करें। 

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    काल भैरव देव के मंत्र

    1. ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।

    2. ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।

    3. ॐ ह्रीं बटुक! शापम विमोचय विमोचय ह्रीं कलीं।

    4. र्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम् ।

    द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये ।।

    5. ॐ नमो भैरवाय स्वाहा।

    6. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।