कृष्ण जी ने हथियार न उठाकर भी युद्ध में निभाई थी अहम भूमिका, पांडवों को जिताने के लिए किए थे ये छल
भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध (Mahabharat story) में प्रत्यक्ष रूप से भाग न लेकर अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी। युद्ध में पांडवों की जीत में भगवान कृष्ण की कई लीलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। भगवान श्रीकृष्ण की रणनीतिक बुद्धिमानी और युद्ध कौशल ने पांडवों को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत युद्ध के मैदान में ही भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता के उपदेश दिए गए थे। इससे अर्जुन मोह से बाहर निकालकर अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक हुआ और युद्ध के लिए प्रेरित हुआ। इसी के साथ भगवान श्रीकृष्ण द्वारा और भी कई ऐसे उपाय बताए गए, जिससे पांडवों को जीत हासिल करने में मदद मिली। चलिए जानते हैं इस बारे में।
दुर्योधन से की चालाकी
गांधारी को भगवान शिव से यह आशीर्वाद मिला था कि वह जिस भी व्यक्ति पर अपनी दिव्य दृष्टि डालेगी उसका शरीर वज्र के समान हो जाएगा। गांधारी ने अपने इस वरदान का उपयोग दुर्योधन के शरीर को वज्र का बनाने के लिए किया।
लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर दुर्योधन अपनी माता के सामने निर्वस्त्र न जाकर निचले हिस्से को ढक लिया, जिससे उसका बाकी हिस्सा तो वज्र का बन गया, लेकिन निचला हिस्सा वैसा ही रहा। अंत में भीम के साथ युद्ध के दौरान दुर्योधन ने उसके निचले हिस्से पर ही प्रहार करके उसे पराजित किया।
भीष्म पितामह पर इस तरह पाई जीत
पितामह भीष्म के रहते पांडवों का युद्ध जीत पाला बहुत कठिन था, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के रथ पर शिखंडी को बैठाया। क्योंकि पूर्व जन्म में शिखंडी अंबा नामक एक स्त्री था, इसलिए भीष्म ने उसे स्त्री मानते हुए उस पर हथियार नहीं चलाया। इसका लाभ उठाकर अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाणों की बौछार कर दी और उन्हें बाण शय्या पर लेटा दिया।
यह भी पढ़ें - Samudra Manthan: आखिर क्यों हुआ था समुद्र मंथन, निकले थे ये 14 रत्न, पढ़ें कथा
(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
द्रोणाचार्य से बोला ये झूठ
द्रोणाचार्य भी एक बलशाली योद्धा थे, जिनके रहते युद्ध जीतना असंभव था। उन पर विजय पाने के लिए के भगवान श्रीकृष्ण ने एक और चाल चली। युद्ध में भीम ने अश्वत्थामा नामक एक हाथी को मार डाला और जोर-जोर से कहने लगा कि अश्वत्थामा मारा गया।
इसपर द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर ने इस बात की पुष्टि की। तब युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य से कहा कि अश्वत्थामा मारा गया। इसपर द्रोणाचार्य को लगा कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया है और वह दुखी होकर विलाप करने लगे। इस मौके का फायदा उठाते हुए धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का वध कर दिया।
(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
अर्जुन ने इस तरह पूरी की प्रतिज्ञा
युद्ध के दौरान अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली कि वह सूर्यास्त तक जयद्रथ का वध कर देगा, वरना आत्मदाह कर लेगा। यह जानने के बाद कौरवों ने जयद्रथ को छिपा दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्य ग्रहण जैसी स्थिति पैदा कर दी थी। इससे जयद्रथ को लगा कि अब युद्ध समाप्त हो चुका है और वह बाहर निकल आया। उसी समय ग्रहण हट गया और अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
यह भी पढ़ें - Vrindavan Temples: बांके बिहारी के दर्शन के साथ वृंदावन के इन मंदिरों के दर्शन से पूरी होगी यात्रा
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।