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    Bhishma Pitamah: भीष्‍म पितामह ने सूर्य दक्षिणायन रहने पर क्यों नहीं त्यागा था शरीर, जानें कारण

    सूर्य उत्तरायण मकर संक्रांति के दिन होता है। इस दिन को हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। कहा जाता है कि यह वही शुभ समय है जब भीष्‍म पिताम‍ह ने अपने प्राण त्यागे थे तो आइए जानते हैं कि 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर भीष्‍म पिताम‍ह क्यों लेटे रहे थे।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 14 Dec 2024 07:11 PM (IST)
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    Bhishma Pitamah: क्यों बाणों की शैय्या पर कष्ट सहते रहे भीष्म?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक भीष्‍म पिताम‍ह थे, जिनके ज्ञान, बल और बुद्धि की चर्चा पूरे धरती लोक पर थी। इतने कर्मकांडी होने के बावजूद उन्हें (Bhishma Pitamah) अपने आखिरी वक्‍त में भारी पीड़ा का सामना करना पड़ा था। हालांकि इसके पीछे का कारण बेहद ही महत्वपूर्ण है, तो चलिए इसका कारण जानते हैं, जिसकी वजह से उन्‍हें इतनी यातनाएं सहनी पड़ी थी।

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    क्यों बाणों की शैय्या पर कष्ट सहते रहे भीष्म?

    ऐसा कहा है कि जिन लोगों की मृत्यु दक्षिणायन में होती है, उन्हें मरने के बाद नर्क लोक में जाना पड़ता है और उनकी आत्मा भटकती रहती है। इसी कारण भीष्‍म पितामह ने जब तक सूर्य दक्षिणायन में था, तब तक अपने प्राणों को रोके रखा और 58 दिनों तक भारी कष्टों का सामना किया था। इसके पश्चात उन्होंने सूर्य उत्तरायण होते ही अपनी मां गंगा की गोद में प्राण त्याग दिए थे।

    यह भी है एक वजह

    भीष्म पितामह की मृत्यु को लेकर यह भी कहा जाता है कि वो हस्तिनापुर को सुरक्षित हाथों में देखना चाहते थे, जिस कारण उन्होंने तब तक अपने प्राणों को नहीं त्यागा था जब तक हस्तिनापुर का भविष्य सुरक्षित नहीं हो गया। इसके साथ ही उन्होंने बाणों की शैय्या पर कष्ट सहते हुए पांडवों को धर्म और नीति का ज्ञान दिया, जिससे सत्य के मार्ग पर चलते हुए वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर सकें।

    सूर्य उत्तरायण में मृत्यु होने से क्या होता है?

    भगवत गीता में बताया गया है कि सूर्य के उत्तरायण होने पर यानी शुक्ल पक्ष में किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो वह व्यक्ति जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। साथ ही उसे कभी भी मृत्यु लोक में लौट कर नहीं आना पड़ता है। यही नहीं व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

    आपको बता दें, यह शुभ अवधि मकर संक्रांति पर होती है। इसी कारण मकर संक्रांति के पर्व को बहुत ही शुभ माना जाता है और इसी दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।

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    अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।