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    Gita Updesh: अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है? श्रीकृष्ण ने गीता में क्या समाधान दिया

    Updated: Tue, 30 Dec 2025 12:22 PM (IST)

    अच्छे लोगों के साथ बुरा होना असल में उनके पुराने बोझ को हल्का करने और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने की एक प्रक्रिया होती है। इसलिए, अपनी अच्छाई कभी ...और पढ़ें

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    गीता के उपदेश (Image Source: AI-Generated)

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    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। 'अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है?', यह एक ऐसा सवाल है जो हम सबके मन में कभी न कभी जरूर आता है। जब हम किसी नेक इंसान को मुसीबत में देखते हैं, तो हमारा भरोसा डगमगाने लगता है। हमें लगता है कि शायद दुनिया में इंसाफ नहीं है।

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    लेकिन श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इस उलझन को बहुत ही खूबसूरती से सुलझाया है। उन्होंने बताया है कि जिसे हम 'बुरा' समझ रहे हैं, उसके पीछे असल में क्या वजह होती है।

    यहां भगवद्गीता के अनुसार इस सवाल के 5 सबसे सरल जवाब दिए गए हैं-

    1. कर्मों का पुराना हिसाब (प्रारब्ध)

    गीता के अनुसार, इंसान का जीवन केवल एक जन्म का नहीं है। हो सकता है कि आज कोई व्यक्ति बहुत अच्छा हो, लेकिन उसके जीवन में आने वाली मुश्किलें उसके पिछले जन्मों के कर्मों का फल हों। जैसे बैंक से लिया हुआ कर्ज चुकाना ही पड़ता है, वैसे ही पुराने कर्मों का हिसाब भी भुगतना पड़ता है। कृष्ण कहते हैं कि जब बुरे कर्मों का फल खत्म हो जाएगा, तभी असली सुख शुरू होगा।

    2. सोने की तरह तपना (शुद्धिकरण)

    सोना (Gold) तभी चमकता है जब उसे आग में तपाया जाता है। इसी तरह, कभी-कभी अच्छे लोगों के जीवन में मुश्किलें इसलिए आती हैं ताकि वे और भी मजबूत और निखर सकें। ये चुनौतियां इंसान को अहंकार से दूर रखती हैं और उसे दूसरों के दुख समझने के काबिल बनाती हैं।

    Gita ke anusar

    (Image Source: AI-Generated)

    3. किसी बड़ी मुसीबत से बचाव

    अक्सर हमें लगता है कि हमारे साथ कुछ बुरा हुआ है, लेकिन हम यह नहीं जानते कि ईश्वर ने उस छोटी सी तकलीफ के जरिए हमें किसी बहुत बड़े हादसे या मुसीबत से बचा लिया है। भगवान हमारे भविष्य को देख रहे होते हैं, जबकि हम केवल वर्तमान को।

    4. यह संसार अस्थायी है

    कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सुख और दुख तो मौसम की तरह हैं, जो आते-जाते रहेंगे। अच्छे लोगों के साथ बुरा होना यह याद दिलाने का एक तरीका है कि यह दुनिया स्थायी नहीं है। असली शांति तो केवल ईश्वर की भक्ति और सही कर्म करने में है।

    5. धैर्य की परीक्षा

    अच्छाई की असली पहचान तभी होती है, जब वक्त खराब होता है। सुख में तो हर कोई अच्छा होता है, लेकिन जो दुख और मुश्किलों की घड़ी में भी अपना धर्म और अपनी अच्छाई न छोड़े, वही वास्तव में महान है। भगवान ऐसी परीक्षा लेकर इंसान को आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर ले जाते हैं।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।