Garuda Purana: क्यों छोटे बच्चों का नहीं किया जाता है दाह संस्कार? जानिए कारण
अंतिम संस्कार को सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। यह व्यक्ति का आखिरी और सबसे अहम संस्कार होता है। गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद शरीर को जलाने (Cremation) का विधान है। मगर शिशु और सन्यासी को दफनाने की परंपरा है जिसको लेकर लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? तो आइए जानते हैं -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में जीवन के हर एक चक्र का अपना- अपना स्थान है। 16 संस्कारों में से एक अंतिम संस्कार को माना जाता है, यह व्यक्ति का आखिरी और सबसे अहम संस्कार है। गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद शरीर को जलाने (Cremation) का विधान है, लेकिन शिशु व सन्यासी को दफनाने की परंपरा है, जिसको लेकर लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? तो आइए इसे विस्तार से जानते हैं -
यह भी पढ़ें: Chandra Gochar 2024: 07 जून को चंद्र देव मिथुन राशि में करेंगे गोचर, इन 03 राशियों को मिलेगा सर्वाधिक लाभ
शिशुओं को क्यों दफनाया जाता है ?
गरुण पुराण के अनुसार, गर्भ में पल रहे शिशु या फिर 2 साल से कम उम्र के बच्चे की मृत्यु होती है, तो उसे जलाने की अनुमति नहीं है। ऐसा माना जाता कि छोटी उम्र में मृत्यु होने पर आत्मा को शरीर से लगाव नहीं रहता है, नाही उसे शरीर से कोई लाभ होता है। इस वजह से आत्मा उस शरीर को तुरंत छोड़ देती है। यही कारण है कि नवजात शिशु को जलाने की जगह दफनाया जाता है। या फिर किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।
साधु-संतों को क्यों नहीं जलाया जाता?
गरुण पुराण के अनुसार, साधु-संतों को भी नहीं जलाया जाता है, क्योंकि संत पुरुषों की आत्मा शरीर में रहते हुए भी सांसारिक सुखों का त्याग कर देती है। साथ ही मोह-माया से दूर रहती है। इसके अलावा तप और पूजा-पाठ करके अपनी इंद्रियों पर विजय भी प्राप्त कर लेती है। इसी वजह से उनके शरीर को दफनाने की परंपरा है।
यह भी पढ़ें: Guruwar Ke Niyam: गुरुवार के दिन क्यों नहीं किया जाता साबुन का उपयोग? जानिए इससे जुड़े नियम
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।