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    February Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत पर करें इस कथा का पाठ, शुरू हो जाएंगे अच्छे दिन

    प्रदोष व्रत का दिन बेहद शुभ माना गया है। इस दिन भक्त भगवान शिव के साथ पार्वती माता की पूजा करते हैं। कहते हैं कि इस दिन का उपवास रखने से सभी दुखों का अंत होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार यह व्रत ( Pradosh Vrat 2025) 9 फरवरी यानी आज के दिन रखा जा रहा है तो आइए इसे दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sun, 09 Feb 2025 10:00 AM (IST)
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    February Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत कथा का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने आता है। इस दिन लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं। प्रदोष व्रत पर शाम के समय पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत आध्यात्मिक विकास, समृद्धि और जीवन की सभी बाधाओं का नाश करता है। यह व्रत हिंदू धर्म में सबसे शुभ और शक्तिशाली अनुष्ठानों में से एक माना जाता है, जिसे लोग पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाते हैं। वहीं, जो साधक इस कठिन व्रत (February Pradosh Vrat 2025) का पालन कर रहे हैं, उन्हें इसकी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए, क्योंकि यह पूजा का अहम हिस्सा है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

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    प्रदोष व्रत कथा ( Magh Pradosh Vrat Kath)

    एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी वास करती थी। उसके पति का निधन हो गया था, जिस वजह से वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिलें जो अकेले थे, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी।

    वह विचार करने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के बाद वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

    तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।

    दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह भी शिव भक्ति में लीन रहने लगी।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।