Chhath Puja 2023: जानें, लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा से जुड़ी रोचक और प्रमुख बातें
छठ पूजा के दूसरे दिन खरना मनाया जाता है। इस दिन व्रती दिनभर उपवास रखती हैं। संध्याकाल में गंगाजल युक्त पानी से स्नान करती हैं। इसके बाद छठी मैया की पूजा करती हैं। छठी मैया को प्रसाद में खीर रोटी और केला अर्पित किया जाता है। व्रती के स्वजन गेंहू धोकर सुखाकर आटा तैयार करती हैं। इसी आटे से रोटी बनाई जाती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chhath Puja 2023: चार दिवसीय छठ पूजा के तीसरे दिन आज डूबते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाएगा। लोक आस्था का महापर्व छठ बिहार का प्रमुख त्योहार है। इसके अलावा, देश-दुनिया के कई हिस्सों में भी धूमधाम से छठ पूजा मनाई जाती है। शास्त्रों की मानें तो वैदिक काल से छठ पूजा मनाई जाती है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है। आइए, छठ पूजा के बारे में सबकुछ जानते हैं-
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक छठ पूजा मनाई जाती है। छठ पूजा के पहले दिन नहाय खाय मनाया जाता है। इस दिन व्रती स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की पूजा करती हैं। इसके पश्चात, भोजन ग्रहण करती हैं।
शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में माता सीता ने पहली बार छठ पूजा की थी। माता सीता का जन्म मिथिला में हुआ था। अतः मिथिला समेत पूरे बिहार में धूमधाम से छठ पूजा मनाई जाती है।
शास्त्रों में एक अन्य कथा का भी वर्णन है। इस कथा के अनुसार, संतान प्राप्ति हेतु माता अदिति ने देवार्क सूर्य मंदिर पर छठी मैया की तपस्या और पूजा की थी। इस तपस्या के पुण्य प्रताप से आदित्य भगवान का अवतार हुआ। कालांतर में आदित्य भगवान ने असुरों का परास्त किया था।
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नहाय खाय के दिन से ही छठ घाट बनाया जाता है। इसके लिए व्रती के स्वजन समीप के नदी और सरोवर में छठ पूजा हेतु घाट बनाते हैं। घाटों की साफ-सफाई अच्छे तरीके से की जाती है।
छठ पूजा के दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन व्रती दिनभर उपवास रखती हैं। संध्याकाल में स्नान-ध्यान कर छठी मैया की पूजा करती हैं। छठी मैया को प्रसाद में खीर, रोटी और केला अर्पित किया जाता है। व्रती के स्वजन गेंहू धोकर, सुखाकर आटा तैयार करती हैं। इसी आटे से रोटी बनाई जाती है।
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छठ पूजा के दौरान दोनों प्रहर के समय सूप और डगरा में फल, फूल और पकवान रख अर्घ्य दिया जाता है। टोकरी, सूप (सुपली), डगरा बांस से तैयार किया जाता है।
सुबह के समय उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इसके लिए स्वजन और स्थानीय लोगों द्वारा उचित प्रकाश की व्यवस्था की जाती है। कई जगहों पर बिजली की व्यवस्था होती है। बिजली के अभाव में जनरेटर से लाइट की व्यवस्था की जाती है।
व्रती और साधकों को कोई परेशानी न हो। इसके लिए छठ घाट पर टेंट और पंडाल लगाया जाता है। कई जगहों पर बैठने के लिए कुर्सियां भी रखी जाती हैं।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को संध्या अर्घ्य दिया जाता है। इसके अगले दिन उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। चार दिवसीय छठ पूजा का समापन उगते सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद होता है। इसके पश्चात, व्रती पारण करती हैं।
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