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    Chhath Puja 2023: जानें, क्यों मनाई जाती है छठ पूजा और क्या है इसका धार्मिक महत्व?

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 15 Nov 2023 06:09 PM (IST)

    सनातन शास्त्रों की मानें तो द्वापर युग में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ट रोग से पीड़ित थें। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सूर्य उपासना की सलाह दी। कालांतर में साम्ब ने सूर्य देव की उपासना की। सूर्य देव की उपासना करने से साम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी। इसके पश्चात साम्ब ने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था।

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    Chhath Puja 2023: जानें, क्यों मनाई जाती है छठ पूजा और क्या है इसका धार्मिक महत्व?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chhath Puja 2023: सनातन धर्म में त्रेता युग से छठ पूजा मनाई जाती है। शास्त्रों में निहित है कि सर्वप्रथम माता सीता ने छठ पूजा की थी। उस समय से हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक छठ पूजा मनाई जाती है। इस वर्ष 17 नवंबर से लेकर 20 नवंबर तक छठ पूजा है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं करती हैं। साथ ही विशेष कार्य में सिद्धि पाने हेतु पुरुष भी छठ पूजा में सूर्य देव की उपासना करते हैं। इस दौरान पुरुष नदी या सरोवर में खड़े होकर सूर्य देव की उपासना करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि छठ पूजा क्यों मनाई जाती है और कब से मनाई जाती है ? आइए, छठ पूजा की कथा जानते हैं-

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    व्रत कथा

    सनातन शास्त्रों की मानें तो द्वापर युग में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ट रोग से पीड़ित थें। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें सूर्य उपासना की सलाह दी। कालांतर में साम्ब ने सूर्य देव की उपासना की। सूर्य देव की उपासना करने से साम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिली थी। इसके पश्चात, साम्ब ने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। इनमें सबसे प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर है, जो ओडिशा में है। इसके अलावा, एक मंदिर बिहार के औरंगाबाद में है। इस मंदिर को देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है।

    ऐसा कहा जाता है कि चिरकाल में जब देवताओं और असुरों के मध्य युद्ध हुआ, तो इस युद्ध में देवताओं को हार का सामना करना पड़ा। उस समय देव माता अदिति ने इसी स्थान पर (देवार्क सूर्य मंदिर) पर संतान प्राप्ति हेतु छठी मैया की कठिन तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मैया ने अदिति को तेजस्वी पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। कालांतर में छठी मैया के आशीर्वाद से आदित्य भगवान का अवतार हुआ। आदित्य भगवान ने देवताओं का प्रतिनिधित्व कर देवताओं को असुरों पर विजयश्री दिलाई थी। कालांतर से पुत्र प्राप्ति हेतु छठ पूजा की जाती है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से सुख और सौभाग्य में अपार वृद्धि होती है।

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    डिस्क्लेमर- ''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।