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    Chaitra Navratri के दूसरे दिन पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ, खुशियों से भर जाएगा जीवन

    धार्मिक मत है कि चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2025) के दूसरे दिन शिववास योग और रवि योग समेत कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा एवं भक्ति करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सुखों का आगमन होता है। मंदिरों में मां दुर्गा और उनके रूपों की भक्ति भाव से पूजा की जाती है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 30 Mar 2025 11:00 PM (IST)
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    Chaitra Navratri 2025: मां ब्रह्मचारिणी को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, सोमवार 31 मार्च को चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2025) का दूसरा दिन है। चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त नवरात्र का व्रत रखा जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा एवं साधना करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।

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    सनातन शास्त्रों में निहित है कि मां ब्रह्मचारिणी की महिमा अपरंपार है। अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं। उनकी कृपा से साधक को पृथ्वी लोक पर सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अगर आप भी मां ब्रह्मचारिणी की कृपा पाना चाहते हैं, तो नवरात्र के दूसरे दिन जगत जननी मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप की विधिवत पूजा करें। साथ ही पूजा के समय मां ब्रह्मचारिणी का चालीसा का पाठ करें।

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    मां ब्रह्मचारिणी चालीसा

    दोहा

    कोटि कोटि नमन मात पिता को, जिसने दिया ये शरीर।

    बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने, दिया हरि भजन में सीर।।

    श्री माँ ब्रह्माणी की स्तुति

    चन्द्र तपे सूरज तपे, और  तपे आकाश ।

    इन सब से बढकर तपे,माताऒ का सुप्रकाश ।।

    मेरा अपना कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा ।

    तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥

    पद्म कमण्डल अक्ष, कर ब्रह्मचारिणी रूप ।

    हंस वाहिनी कृपा करो, पडू नहीं भव कूप ॥

    जय जय श्री ब्रह्माणी, सत्य पुंज आधार ।

    चरण कमल धरि ध्यान में, प्रणबहुँ माँ बारम्बार ॥

    चौपाई

    जय जय जग मात ब्रह्माणी, भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी।

    वीणा पुस्तक कर में सोहे, शारदा सब जग सोहे ।।

    हँस वाहिनी जय जग माता, भक्त जनन की हो सुख दाता।

    ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई, मात लोक की करो सहाई।।

    क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही, देवों ने जय बोली तब ही।

    चतुर्दश रतनों में मानी, अद॒भुत माया वेद बखानी।।

    चार वेद षट शास्त्र कि गाथा, शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता।

    आदि शक्ति अवतार भवानी, भक्त जनों की मां कल्याणी।।

    जब−जब पाप बढे अति भारी, माता शस्त्र कर में धारी।

    पाप विनाशिनी तू जगदम्बा, धर्म हेतु ना करी विलम्बा।।

    नमो: नमो: ब्रह्मी सुखकारी, ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी।

    तेरी लीला अजब निराली, सहाय करो माँ पल्लू वाली।।

    दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी, अमंगल में मंगल करणी।

    अन्न पूरणा हो अन्न की दाता, सब जग पालन करती माता।।

    सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा, तो कृपा से टरता भव कूपा।

    चंद्र बिंब आनन सुखकारी, अक्ष माल युत हंस सवारी।।

    पवन पुत्र की करी सहाई, लंक जार अनल सित लाई।

    कोप किया दश कन्ध पे भारी, कुटुम्ब संहारा सेना भारी।।

    तु ही मात विधी हरि हर देवा, सुर नर मुनी सब करते सेवा।

    देव दानव का हुआ सम्वादा, मारे पापी मेटी बाधा।।

    श्री नारायण अंग समाई, मोहनी रूप धरा तू माई।।

    देव दैत्यों की पंक्ति बनाई, देवों को मां सुधा पिलाई।।

    चतुराई कर के महा माई, असुरों को तू दिया मिटाई।

    नौ खण्ङ मांही नेजा फरके, भागे दुष्ट अधम जन डर के।।

    तेरह सौ पेंसठ की साला, आस्विन मास पख उजियाला।

    रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला, हंस आरूढ कर लेकर भाला।।

    नगर कोट से किया पयाना, पल्लू कोट भया अस्थाना।

    चौसठ योगिनी बावन बीरा, संग में ले आई रणधीरा।।

    बैठ भवन में न्याय चुकाणी, द्वारपाल सादुल अगवाणी।

    सांझ सवेरे बजे नगारा, उठता भक्तों का जयकारा।।

    मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी, सुन्दर छवि होंठो की लाली ।

    पास में बैठी मां वीणा वाली, उतरी मढ़ बैठी महाकाली ।।

    लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके, मन हर्षाता दर्शन करके।

    दूर दूर से आते रेला, चैत आसोज में लगता मेला।।

    कोई संग में, कोई अकेला, जयकारो का देता हेला।

    कंचन कलश शोभा दे भारी, दिव्य पताका चमके न्यारी।।

    सीस झुका जन श्रद्धा देते, आशीष से झोली भर लेते।

    तीन लोकों की करता भरता, नाम लिए सब कारज सरता ।।

    मुझ बालक पे कृपा कीज्यो, भुल चूक सब माफी दीज्यो।

    मन्द मति जय दास तुम्हारा, दो मां अपनी भक्ती अपारा ।।

    जब लगि जिऊ दया फल पाऊं, तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊं।

    श्री ब्रह्माणी चालीसा जो कोई गावे, सब सुख भोग परम सुख पावे ।।

    दोहा

    राग द्वेष में लिप्त मन, मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।

    भव से पार करो मातेश्वरी, अपना अनुगत जान ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।