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    Chaitra Amavasya 2025: चैत्र अमावस्या पर तर्पण करते समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगा छुटकारा

    सनातन धर्म में चैत्र अमावस्या (Chaitra Amavasya 2025 Mantra) का विशेष महत्व है। शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या कहते हैं। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद देवों के देव महादेव की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। शनि अमावस्या पर सूर्य ग्रहण भी लगने वाला है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 25 Mar 2025 09:00 PM (IST)
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    Chaitra Amavasya 2025: चैत्र अमावस्या पर क्या करें और क्या न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 29 मार्च को चैत्र अमावस्या है। चैत्र अमावस्या को भूतड़ी अमावस्या भी कहा जाता है। अमावस्या तिथि पर गंगा स्नान कर देवों के देव महादेव की पूजा करने का विधान है। साथ ही दान और पुण्य कर्म भी किया जाता है।

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    गुरुड़ पुराण में निहित है कि चैत्र अमावस्या पर गंगा स्नान कर महादेव जी की पूजा करने से जाने-अनजाने में किये गए पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक पर मां गंगा की कृपा बरसती है। साधक श्रद्धा भाव से अमावस्या तिथि पर देवों के देव महादेव की पूजा करते हैं।

    अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण एवं पिंडदान भी किया जाता है। अगर आप भी पितरों को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो चैत्र अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण अवश्य करें। साथ ही तर्पण के समय इन स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    गंगा स्तोत्र

    ॐ नमः शिवायै गंगायै, शिवदायै नमो नमः।

    नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै, ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते।।

    नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, शांकर्यै ते नमो नमः।

    सर्व-देव-स्वरुपिण्यै, नमो भेषज-मूर्त्तये।।

    सर्वस्य सर्व-व्याधीनां, भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।

    स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते।।

    संसार-विष-नाशिन्यै, जीवानायै नमोऽस्तु ते।

    ताप-त्रितय-संहन्त्र्यै, प्राणश्यै ते नमो नमः।।

    शन्ति-सन्तान-कारिण्यै, नमस्ते शुद्ध-मूर्त्तये।

    सर्व-संशुद्धि-कारिण्यै, नमः पापारि-मूर्त्तये।।

    भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिन्यै, भद्रदायै नमो नमः।

    भोगोपभोग-दायिन्यै, भोग-वत्यै नमोऽस्तु ते।।

    मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु, स्वर्गदायै नमो नमः।

    नमस्त्रैलोक्य-भूषायै, त्रि-पथायै नमो नमः।।

    नमस्त्रि-शुक्ल-संस्थायै, क्षमा-वत्यै नमो नमः।

    त्रि-हुताशन-संस्थायै, तेजो-वत्यै नमो नमः।।

    नन्दायै लिंग-धारिण्यै, सुधा-धारात्मने नमः।

    नमस्ते विश्व-मुख्यायै, रेवत्यै ते नमो नमः।।

    बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु, लोक-धात्र्यै नमोऽस्तु ते।

    नमस्ते विश्व-मित्रायै, नन्दिन्यै ते नमो नमः।।

    पृथ्व्यै शिवामृतायै च, सु-वृषायै नमो नमः।

    परापर-शताढ्यै, तारायै ते नमो नमः।।

    पाश-जाल-निकृन्तिन्यै, अभिन्नायै नमोऽस्तु ते।

    शान्तायै च वरिष्ठायै, वरदायै नमो नमः।।

    उग्रायै सुख-जग्ध्यै च, सञ्जीविन्यै नमोऽस्तु ते।

    ब्रह्मिष्ठायै-ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः।।

    प्रणतार्ति-प्रभञजिन्यै, जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।

    सर्वापत्-प्रति-पक्षायै, मंगलायै नमो नमः।।

    शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे।

    सर्वस्यार्ति-हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते।।

    निर्लेपायै दुर्ग-हन्त्र्यै, सक्षायै ते नमो नमः।

    परापर-परायै च, गंगे निर्वाण-दायिनि।।

    गंगे ममाऽग्रतो भूया, गंगे मे तिष्ठ पृष्ठतः।

    गंगे मे पार्श्वयोरेधि, गंगे त्वय्यस्तु मे स्थितिः।।

    आदौ त्वमन्ते मध्ये च, सर्व त्वं गांगते शिवे!

    त्वमेव मूल-प्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।।

    गंगे त्वं परमात्मा च, शिवस्तुभ्यं नमः शिवे।।

    फल-श्रुति

    य इदं पठते स्तोत्रं, श्रृणुयाच्छ्रद्धयाऽपि यः।

    दशधा मुच्यते पापैः, काय-वाक्-चित्त-सम्भवैः।।

    रोगस्थो रोगतो मुच्येद्, विपद्भ्यश्च विपद्-युतः।

    मुच्यते बन्धनाद् बद्धो, भीतो भीतेः प्रमुच्यते।।

    श्रीगङ्गाष्टकम्

    भगवति तव तीरे नीरमात्राशनोऽहं

    विगतविषयतृष्णः कृष्णमाराधयामि।

    सकलकलुषभङ्गे स्वर्गसोपानसङ्गे

    तरलतरतरङ्गे देवि गङ्गे प्रसीद॥

    भगवति भवलीलामौलिमाले तवाम्भः

    कणमणुपरिमाणं प्राणिनो ये स्पृशन्ति।

    अमरनगरनारीचामरग्राहिणीनां

    विगतकलिकलङ्कातङ्कमङ्के लुठन्ति॥

    ब्रह्माण्डं खण्डयन्ती हरशिरसि जटावल्लिमुल्लासयन्ती

    स्वर्लोकादापतन्ती कनकगिरिगुहागण्डशैलात्स्खलन्ती।

    क्षोणीपृष्ठे लुठन्ती दुरितचयचमूनिर्भरं भर्त्सयन्ती

    पाथोधिं पुरयन्ती सुरनगरसरित्पावनी नः पुनातु॥3॥

    मज्जन्मातङ्गकुम्भच्युतमदमदिरामोदमत्तालिजालं

    स्नानैः सिद्धाङ्गनानां कुचयुगविगलत्कुङ्कुमासङ्गपिङ्गम्।

    सायंप्रातर्मुनीनां कुशकुसुमचयैश्छन्नतीरस्थनीरं

    पायान्नो गाङ्गमम्भः करिकलभकराक्रान्तरंहस्तरङ्गम्॥4॥

    आदावादिपितामहस्य नियमव्यापारपात्रे जलं

    पश्चात्पन्नगशायिनो भगवतः पादोदकं पावनम्।

    भूयः शम्भुजटाविभूषणमणिर्जह्नोर्महर्षेरियं

    कन्या कल्मषनाशिनी भगवती भागीरथी दृश्यते॥

    शैलेन्द्रादवतारिणी निजजले मज्जज्जनोत्तारिणी

    पारावारविहारिणी भवभयश्रेणीसमुत्सारिणी।

    शेषाहेरनुकारिणी हरशिरोवल्लीदलाकारिणी

    काशीप्रान्तविहारिणी विजयते गङ्गा मनोहारिणी॥

    कुतो वीचिर्वीचिस्तव यदि गता लोचनपथं

    त्वमापीता पीताम्बरपुरनिवासं वितरसि।

    त्वदुत्सङ्गे गङ्गे पतति यदि कायस्तनुभृतां

    तदा मातः शातक्रतवपदलाभोऽप्यतिलघुः॥

    गङ्गे त्रैलोक्यसारे सकलसुरवधूधौतविस्तीर्णतोये

    पूर्णब्रह्मस्वरूपे हरिचरणरजोहारिणि स्वर्गमार्गे।

    प्रायश्चित्तं यदि स्यात्तव जलकणिका ब्रह्महत्यादिपापे

    कस्त्वां स्तोतुं समर्थस्त्रिजगदघहरे देवि गङ्गे प्रसीद॥

    मातर्जाह्नवि शम्भुसङ्गवलिते मौलौ निधायाञ्जलिं

    त्वत्तीरे वपुषोऽवसानसमये नारायणाङ्घ्रिद्वयम्।

    सानन्दं स्मरतो भविष्यति मम प्राणप्रयाणोत्सवे

    भूयाद्भक्तिरविच्युताहरिहराद्वैतात्मिका शाश्वती॥

    गङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत्प्रयतो नरः।

    सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति॥

    पितृ कवच

    कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।

    तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥

    तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।

    तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥

    प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।

    यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥

    उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।

    यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥

    ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।

    अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।

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