Kalashtami 2025: काल भैरव देव की पूजा के समय करें इन मंत्रों का जप, दूर हो जाएंगे सभी संकट
ज्योतिषियों की मानें तो कालाष्टमी पर शिववास योग समेत कई मंगलकारी योग (Kalashtami 2025 Yoga) बन रहे हैं। शिववास योग का संयोग संध्याकाल से है। इन योग में देवों के देव महादेव की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में काल भैरव देव की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही पूजा के बाद आर्थिक स्थिति के अनुसार दान करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, रविवार 20 अप्रैल को वैशाख माह की कालाष्टमी है। यह पर्व हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर काल भैरव देव की पूजा की जाती है। साथ ही कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक अष्टमी तिथि पर काल भैरव देव की कठिन साधना करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर काल भैरव देव साधक को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
धार्मिक मत है कि काल भैरव देव के शरण-चरण में रहने वाले साधकों को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी। साथ ही सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके लिए साधक श्रद्धा भाव से काल भैरव देव की पूजा करते हैं। अगर आप भी काल भैरव देव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो कालाष्टमी के दिन भक्ति भाव से भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
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शिव मंत्र
1. ॐ नमो भैरवाय स्वाहा।
2. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय भयं हन।
3. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय शत्रु नाशं कुरु।
4. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय तंत्र बाधाम नाशय नाशय।
5. ॐ भं भैरवाय आप्द्दुदारानाय कुमारं रक्ष रक्ष।
6. सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।।
7. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
8. नमामिशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपं।।
9. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
10. ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
काल भैरव स्तुति
यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटाशेखरं चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमं करालं
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
रं रं रं रक्तवर्णं कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं
घं घं घं घोषघोषं घ घ घ घ घटितं घर्घरं घोरनादम्।।
कं कं कं कालपाशं धृकधृकधृकितं ज्वालितं कामदेहं
तं तं तं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
लं लं लं लं वदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घजिह्वाकरालं
धुं धुं धुं धूम्रवर्णं स्फुटविकटमुखं भास्करं भीमरूपम्।।
रुं रुं रुं रुण्डमालं रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालं
नं नं नं नग्नभूषं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
वं वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मपारं परं तं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करं भीमरूपम्।।
चं चं चं चं चलित्वा चलचलचलितं चालितं भूमिचक्रं
मं मं मं मायिरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
शं शं शं शङ्खहस्तं शशिकरधवलं मोक्षसंपूर्णतेजं
मं मं मं मं महान्तं कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम्।।
यं यं यं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रधानं
अं अं अं अन्तरिक्षं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं करालं
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्दीप्यमानम्।।
हौं हौं हौंकारनादं प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं
बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमखं देवदेवं प्रसन्नं
पं पं पं पद्मनाभं हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रम्।।
ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं सततभयहरं पूर्वदेवस्वरूपं
रौं रौं रौं रौद्ररूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
हं हं हं हंसयानं हपितकलहकं मुक्तयोगाट्टहासं
धं धं धं नेत्ररूपं शिरमुकुटजटाबन्धबन्धाग्रहस्तम्।।
टं टं टं टङ्कारनादं त्रिदशलटलटं कामवर्गापहारं
भृं भृं भृं भूतनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।
इत्येवं कामयुक्तं प्रपठति नियतं भैरवस्याष्टकं यो
निर्विघ्नं दुःखनाशं सुरभयहरणं डाकिनीशाकिनीनाम्।।
नश्येद्धिव्याघ्रसर्पौ हुतवहसलिले राज्यशंसस्य शून्यं
सर्वा नश्यन्ति दूरं विपद इति भृशं चिन्तनात्सर्वसिद्धिम् ।।
भैरवस्याष्टकमिदं षण्मासं यः पठेन्नरः।।
स याति परमं स्थानं यत्र देवो महेश्वरः ।।
शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन, वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
दो भुज चार चतुर्भुज, दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
श्वेताम्बर पीताम्बर, बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक, भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
कर के मध्य कमंडल, चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी, जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित, ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
त्रिगुणस्वामी जी की आरति, जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानंद स्वाम, सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा...
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