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    Masik Kalashtami 2025: कालाष्टमी पर करें काल भैरव की आरती, संकट के साथ-साथ डर भी होगा दूर

    Updated: Tue, 21 Jan 2025 09:02 AM (IST)

    मासिक कालाष्टमी के दिन विधिवत रूप से काल भैरव देव की पूजा करने से साधक को रोग और डर के साथ-साथ दुश्मनों से भी मुक्ति मिल सकती है। साथ ही इस तिथि पर मासिक कृष्ण जन्माष्टमी (Masik Krishna Janmashtami 2025) का भी पर्व मनाया जाता है। ऐसे में इस दिन पर पूजा के दौरान इस आरती का पाठ कर जीवन में अच्छे परिणाम देख सकते हैं।

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    Kaal Bhairav Aarti कालाष्टमी पर जरूर करें काल भैरव की पूजा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कालाष्टमी (Masik Kalashtami 2024) मनाई जाती है। ऐसे में यह इस प्रकार इस बार माघ माह की मासिक कालाष्टमी 21 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी। ज्यादातर तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले लोग इस दिन  भगवान शिव के उग्र स्वरूप यानी काल भैरव की पूजा करते हैं।

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    काल भैरव जी की आरती

    जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा। जय काली और गौर देवी कृत सेवा।।

    प्रभु जय भैरव देवा।।

    तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिंधु तारक। भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।

    जय भैरव देवा.

    वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी। महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी।।

    जय भैरव देवा।।

    तुम बिन देवा, सेवा सफल नहीं होवे। चौमुख दीपक दर्शन से सब दुःख खोवे ॥

    जय भैरव देवा।।

    तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी। कृपा कीजिये भैरवजी, करिए नहीं देरी।।

    जय भैरव देवा।।

    पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू दमकावत। बटुकनाथ बन बालक जल मन हरषावत।

    जय भैरव देवा।।

    काल भैरव जी की आरती जो कोई जन गावे। कहे धरनी धर मानुष मनवांछित फल पावे।।

    जय भैरव देवा।।

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    भगवान श्रीकृष्ण की आरती

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    गले में बैजंती माला,

    बजावै मुरली मधुर बाला ।

    श्रवण में कुण्डल झलकाला,

    नंद के आनंद नंदलाला ।

    गगन सम अंग कांति काली,

    राधिका चमक रही आली ।

    लतन में ठाढ़े बनमाली

    भ्रमर सी अलक,

    कस्तूरी तिलक,

    चंद्र सी झलक,

    ललित छवि श्यामा प्यारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

    देवता दरसन को तरसैं ।

    गगन सों सुमन रासि बरसै ।

    बजे मुरचंग,

    मधुर मिरदंग,

    ग्वालिन संग,

    अतुल रति गोप कुमारी की,

    श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    जहां ते प्रकट भई गंगा,

    सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

    स्मरन ते होत मोह भंगा

    बसी शिव सीस,

    जटा के बीच,

    हरै अघ कीच,

    चरन छवि श्री बनवारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

    बज रही वृंदावन बेनू ।

    चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

    हंसत मृदु मंद,

    चांदनी चंद,

    कटत भव फंद,

    टेर सुन दीन दुखारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

    आरती कुंजबिहारी की,

    श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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