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    Jyeshtha Amavasya 2025: भगवान शिव की पूजा के समय कर लें इस स्तोत्र का पाठ, हर परेशानी हो जाएगी दूर

    ज्येष्ठ अमावस्या (Jyeshtha Amavasya 2025 Yoga) तिथि पर पितरों का तर्पण करने से तीन पीढ़ी के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही पितरों की कृपा साधक पर बरसती है। इस शुभ अवसर पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 18 May 2025 09:30 PM (IST)
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    Jyeshtha Amavasya 2025: भगवान शिव को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का खास महत्व है। अमावस्या  के दिन गंगा स्नान किया जाता है। साथ ही देवों के देव महादेव की पूजा की जाती है। इसके अलावा, अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण भी किया जाता है। धार्मिक मत है कि अमावस्या तिथि पर भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त संकटों से मुक्ति मिलती है।

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    इस शुभ अवसर पर साधक गंगाजल से देवों के देव महादेव का अभिषेक करते हैं। भगवान शिव जलाभिषेक से जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी कृपा से साधक को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। अगर आप भी जीवन में व्याप संकटों से निजात पाना चाहते हैं, तो ज्येष्ठ अमावस्या के दिन भक्ति भाव से भगवान शिव की पूजा के समय करें। साथ ही महादेव का अभिषेक करते समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र

    विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।

    कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।

    गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भक्तप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।

    ज्योतिर्मयाय गुणनामसुकृत्यकाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    चर्मांबराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।

    मंजीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय ।

    आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीविलासभवनाय महेश्वराय पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय ।

    शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।

    नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    रामप्रियाय राघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।

    पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।

    मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    वसिष्ठेनकृतं स्तोत्रं सर्व दारिद्‌र्यनाशनम् ।

    सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ॥

    शिव रक्षा स्तोत्र

    चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।

    अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्॥

    गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।

    शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः॥

    गंगाधरः शिरः पातु भालं अर्धेन्दुशेखरः।

    नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषण॥

    घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः।

    जिह्वां वागीश्वरः पातु कंधरां शितिकंधरः॥

    श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः।

    भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्॥

    हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः।

    नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः॥

    सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः।

    उरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः॥

    जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।

    चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः॥

    एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।

    स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्॥

    ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।

    दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्॥

    अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः।

    भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्॥

    इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत्।

    प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत॥

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