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    Vat Savitri Vrat 2025: अमावस्या और पूर्णिमा आखिर क्यों दो बार मनाते हैं वट सावित्री व्रत?

    वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat 2025) का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। यह उपवास पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। इस बार वट सावित्री व्रत 26 मई (Kab Hai Vat Savitri Vrat 2025 ) को रखा जाएगा तो आइए इससे जुड़ी कुछ मान्यताएं जानते हैं।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 17 May 2025 10:43 AM (IST)
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    Vat Savitri Vrat 2025:वट सावित्री व्रत से जुड़ी मान्यताएं।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वट सावित्री व्रत का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। यह विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इस व्रत को लेकर दिलचस्प बात यह है कि यह व्रत ज्येष्ठ महीने में दो बार आता है एक अमावस्या और दूसरा पूर्णिमा तिथि पर, तो आइए इसके पीछे की वजह जानते हैं।

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    वट सावित्री व्रत 2025 डेट और टाइम (Vat Savitri Vrat 2025 Date And Time)

    वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि की समाप्ति अगले दिन यानी 26 मई को सुबह 08 बजकर 31 मिनट पर होगी। ऐसे में पंचांग गणना के आधार पर इस बार वट सावित्री व्रत 26 मई (Kab Hai Vat Savitri Vrat 2025 ) को रखा जाएगा।

    अमावस्या और पूर्णिमा पर वट सावित्री व्रत रखने की वजह

    वट सावित्री व्रत को दो बार (Amavasya and Purnima Dates) मनाने की खास वजह ये है कि भारत में अमावस्यांत और पूर्णिमानता ये दो मुख्य कैलेंडर मान्य हैं, जिसमें से दोनों ही कैलेंडर की तिथि में थोड़ा अंतर होता है। पूर्णिमानता कैलेंडर को देखते हुए वट सावित्री का व्रत जेष्ठ माह की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। वहीं, अमावस्यांत कैलेंडर के अनुसार, यह पावन व्रत पूर्णिमा को रखा जाता है। हालांकि इस व्रत को लेकर मान्यताएं (Hindu Festivals Beliefs) क्षेत्र के हिसाब से भी हैं।

    ऐसे में अगर आप इस कठिन व्रत का पालन करने की सोच रहे हैं, तो अपने किसी जानकार पुरोहित या फिर किसी बड़े की सलाह जरूर लें।

    वट सावित्री व्रत पूजन मंत्र (Pujan Mantra)

    • ॐ पार्वतीपतये नमः
    • ॐ उमामहेश्वराय नमः
    • अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।
    • ॐ भूर्भुवः स्वः तत्स॑वितुर्वरे॑(तत्सवितुर्वरेण्यं) । भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। धियो॒ यो नः प्रचोदयात् ॥
    • वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः । यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।

      तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।