Kab Hai Nirjala Ekadashi 2025: इस विधि से करें निर्जला एकादशी व्रत, अभी नोट करें शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार 13 मई से ज्येष्ठ महीने की शुरुआत हुई है। इस महीने में निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को विधिपूर्वक करने से साधक को सभी पापों से छुटकारा मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं निर्जला एकादशी व्रत के बारे में सबकुछ।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म मेंनिर्जला एकादशी तिथि को महत्वपूर्ण माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को विधिपूर्वक करने से साधक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकदशी तिथि पर निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) व्रत किया जाता है।
इस व्रत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इस व्रत के दौरान अन्न और जल का त्याग किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से साधक को सभी पापों से छुटकारा मिलता है। साथ ही सभी एकादशियों का पुण्य फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि कब और कैसे करें निर्जला एकादशी का व्रत।
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निर्जला एकादशी 2025 और डेट शुभ मुहूर्त (Nirjala Ekadashi 2025 Date and Shubh Muhurat)
वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 06 जून को देर रात 02 बजकर 15 मिनट पर होगी। वहीं, 07 जून को सुबह 04 बजकर 47 मिनट पर तिथि खत्म होगी। ऐसे में 06 जून को निर्जला एकादशी (Kab Hai Nirjala Ekadashi 2025) व्रत किया जाएगा।
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निर्जला एकादशी व्रत विधि (Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi)
- निर्जला एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- इसके बाद पूजा की शुरुआत करें।
- देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें।
- व्रत का संकल्प लें।
- व्रत के दिन दौरान अन्न और जल का त्याग करें।
- व्रत के समय भगवान विष्णु के नाम का ध्यान करें।
- दिन में भजन-कीर्तन करें।
- रात में पूजा करने के बाद फलाहार करें।
- अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर स्नान करने के बाद पूजा करें।
- भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को सात्विक भोजन का भोग लगाएं।।
- भोग में तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें।
- इसके बाद व्रत का पारण करें।
- गरीब लोगों में अन्न और धन समेत आदि चीजों का दान करें।
भगवान विष्णु के मंत्र
1. ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||
2. शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
3. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
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