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    Nirjala Ekadashi 2025: क्यों निर्जला एकादशी को कहा जाता है भीमसेनी एकादशी? जानिए असल वजह

    Updated: Sat, 26 Apr 2025 12:58 PM (IST)

    ज्येष्ठ महीने में आने वाली निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) को बहुत फलदायी माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल यह एकादशी 6 जून 2025 को मनाई जाएगी। इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है तो आइए इसकी वजह जानते हैं।

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    Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। निर्जला एकादशी जैसा कि इसके नाम से पता चल रहा है इस दिन, बिना जल के व्रत रखने का विधान है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और सभी एकादशी में इसका विशेष महत्व है। इस एकादशी (Nirjala Ekadashi 2025) को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं? आइए यहां जानते हैं।

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    भीमसेनी एकादशी नाम कैसे पड़ा? (Why is Nirjala Ekadashi called Bhimseni?)

    निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। दरअसल, एक बार महर्षि व्यास से भीम ने पूछा कि ''युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सहित सभी एकादशी व्रत का पालन करते हैं, लेकिन वह अपनी उदर अग्नि के चलते यह व्रत नहीं कर पाते हैं तो, वो ऐसा क्या करें, जिससे उन्हें 24 एकादशी का फल मिल जाए?'' तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का निर्जला व्रत रखने की सलाह दी।

    उन्होंने बताया कि ''इस एक एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी एकादशी के व्रत का फल मिलता है। हालांकि इस व्रत में जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है, इसलिए यह कठिन तपस्या के समान है।''

    भीम ने महर्षि व्यास के कहे अनुसार, निर्जला एकादशी का कठोर व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उन्हें सभी एकादशी का पुण्य प्राप्त हुआ। तभी से इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से जाना जाने लगा। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अन्य एकादशी का व्रत रखने में असमर्थ होते हैं।

    निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व (Nirjala Ekadashi 2025 Significance)

    निर्जला एकादशी का व्रत बहुत शुभ माना जाता है। इस व्रत को रखने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत के प्रभाव से दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है।

    निर्जला एकादशी व्रत नियम (Nirjala Ekadashi 2025 Fast Rules)

    निर्जला एकादशी सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन द्वादशी के सूर्योदय तक चलता है। इसमें निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उनके मंत्रों का जाप किया जाता है। वहीं, अगले दिन स्नान के बाद जरूरतमंदों को दान दिया जाता है और फिर व्रत का पारण किया जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत बहुत कठिन है, लेकिन इसका फल अपार है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।