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    Radha Krishna Stotra: आज पूजा के समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे सभी दुख और संताप

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 15 Nov 2023 07:00 AM (IST)

    Radha Krishna Stotra शास्त्रों में निहित है कि बुधवार के दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में सुख समृद्धि और शांति का आगमन होता है। अगर आप भी श्रीजी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो आज पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    Radha Krishna Stotra: आज पूजा के समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे सभी दुख और संताप

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Radha Krishna Stotra: सनातन धर्म में बुधवार के दिन जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में निहित है कि बुधवार के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। अतः साधक श्रद्धा भाव से भगवान श्रीकृष्ण और श्रीजी की पूजा और अर्चना करते हैं। अगर आप भी श्रीजी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संताप दूर हो जाते हैं।

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    राधा कृष्ण स्तोत्र

    वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।

    सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥

    राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।

    राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥

    राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।

    राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥

    राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।

    राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥

    ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।

    तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥

    निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।

    नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥

    यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।

    योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥

    बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।

    वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥

    योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।

    गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।

    इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥

    हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।

    पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥

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    राधा कवचम्

    कैलासवासिन्! भगवन् भक्तानुग्रहकारक!।

    राधिकाकवचं पुण्यं कथयस्व मम प्रभो ॥

    यद्यस्ति करुणा नाथ! त्राहि मां दुःखतो भयात्।

    त्वमेव शरणं नाथ! शूलपाणे! पिनाकधृक् ॥

    शृणुष्व गिरिजे तुभ्यं कवचं पूर्वसूचितम्।

    सर्वरक्षाकरं पुण्यं सर्वहत्याहरं परम् ॥

    हरिभक्तिप्रदं साक्षात् भुक्तिमुक्तिप्रसाधनम्।

    त्रैलोक्याकर्षणं देवि हरिसान्निद्ध्यकारकम् ॥

    सर्वत्र जयदं देवि, सर्वशत्रुभयापहं।

    सर्वेषाञ्चैव भूतानां मनोवृत्तिहरं परम् ॥

    चतुर्धा मुक्तिजनकं सदानन्दकरं परम्।

    राजसूयाश्वमेधानां यज्ञानां फलदायकम् ॥

    इदं कवचमज्ञात्वा राधामन्त्रञ्च यो जपेत्।

    स नाप्नोति फलं तस्य विघ्नास्तस्य पदे पदे ॥

    ऋषिरस्य महादेवोऽनुष्टुप् च्छन्दश्च कीर्तितम्।

    राधास्य देवता प्रोक्ता रां बीजं कीलकं स्मृतम् ॥

    धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।

    श्रीराधा मे शिरः पातु ललाटं राधिका तथा ॥

    श्रीमती नेत्रयुगलं कर्णौ गोपेन्द्रनन्दिनी ।

    हरिप्रिया नासिकाञ्च भ्रूयुगं शशिशोभना ॥

    ऒष्ठं पातु कृपादेवी अधरं गोपिका तदा।

    वृषभानुसुता दन्तांश्चिबुकं गोपनन्दिनी ॥

    चन्द्रावली पातु गण्डं जिह्वां कृष्णप्रिया तथा

    कण्ठं पातु हरिप्राणा हृदयं विजया तथा ॥

    बाहू द्वौ चन्द्रवदना उदरं सुबलस्वसा।

    कोटियोगान्विता पातु पादौ सौभद्रिका तथा ॥

    जङ्खे चन्द्रमुखी पातु गुल्फौ गोपालवल्लभा।

    नखान् विधुमुखी देवी गोपी पादतलं तथा ॥

    शुभप्रदा पातु पृष्ठं कक्षौ श्रीकान्तवल्लभा।

    जानुदेशं जया पातु हरिणी पातु सर्वतः ॥

    वाक्यं वाणी सदा पातु धनागारं धनेश्वरी।

    पूर्वां दिशं कृष्णरता कृष्णप्राणा च पश्चिमाम् ॥

    उत्तरां हरिता पातु दक्षिणां वृषभानुजा।

    चन्द्रावली नैशमेव दिवा क्ष्वेडितमेखला ॥

    सौभाग्यदा मध्यदिने सायाह्ने कामरूपिणी ।

    रौद्री प्रातः पातु मां हि गोपिनी रजनीक्षये ॥

    हेतुदा संगवे पातु केतुमालाऽभिवार्धके।

    शेषाऽपराह्नसमये शमिता सर्वसन्धिषु ॥

    योगिनी भोगसमये रतौ रतिप्रदा सदा।

    कामेशी कौतुके नित्यं योगे रत्नावली मम ॥

    सर्वदा सर्वकार्येषु राधिका कृष्णमानसा।

    इत्येतत्कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ॥

    सर्वरक्षाकरं नाम महारक्षाकरं परम्।

    प्रातर्मद्ध्याह्नसमये सायाह्ने प्रपठेद्यदि ॥

    सर्वार्थसिद्धिस्तस्य स्याद्यद्यन्मनसि वर्तते।

    राजद्वारे सभायां च संग्रामे शत्रुसङ्कटे ॥

    प्राणार्थनाशसमये यः पठेत्प्रयतो नरः।

    तस्य सिद्धिर्भवेत् देवि न भयं विद्यते क्वचित् ॥

    आराधिता राधिका च येन नित्यं न संशयः।

    गंगास्नानाद्धरेर्नामश्रवणाद्यत्फलं लभेत् ॥

    तत्फलं तस्य भवति यः पठेत्प्रयतः शुचिः।

    हरिद्रारोचना चन्द्रमण्डलं हरिचन्दनम् ॥

    कृत्वा लिखित्वा भूर्जे च धारयेन्मस्तके भुजे।

    कण्ठे वा देवदेवेशि स हरिर्नात्र संशयः ॥

    कवचस्य प्रसादेन ब्रह्मा सृष्टिं स्थितिं हरिः।

    संहारं चाहं नियतं करोमि कुरुते तथा ॥

    वैष्णवाय विशुद्धाय विरागगुणशालिने

    दद्याकवचमव्यग्रमन्यथा नाशमाप्नुयात् ॥

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