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    Laxmi Ji Ki Aarti: इस आरती के बिना अधूरी है मां लक्ष्मी की पूजा, मनचाही मुराद होगी पूरी

    Updated: Thu, 26 Jun 2025 07:03 PM (IST)

    धार्मिक मत है कि मां लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। साथ ही धन-संपत्ति में समय के साथ बढ़ोतरी होती है। साथ ही शुक्रवार के दिन आर्थिक स्थिति के अनुसार सफेद चीजों का दान करें

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    Laxmi Ji: मां लक्ष्मी को ऐसे करें प्रसन्न

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार 27 जून को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। इस शुभ अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी की भक्ति भाव से पूजा की जाएगी। साथ ही वैभव लक्ष्मी व्रत किया जाएगा। इस व्रत को करने से साधक पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है। साथ ही आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है।

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    ज्योतिष भी धन की परेशानी से निजात पाने के लिए मां लक्ष्मी की पूजा करने की सलाह देते हैं। इसके लिए साधक शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की भक्ति भाव से पूजा करते हैं। अगर आप भी देवी मां लक्ष्मी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन विधिवत लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। वहीं, पूजा का समापन इस आरती से करें।

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    लक्ष्मी चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    मातु लक्ष्मी करि कृपा,करो हृदय में वास।
    मनोकामना सिद्ध करि,परुवहु मेरी आस॥

    ॥ सोरठा ॥

    यही मोर अरदास,हाथ जोड़ विनती करुं।
    सब विधि करौ सुवास,जय जननि जगदम्बिका।

    ॥ चौपाई ॥

    सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥
    तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
    जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
    तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
    जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
    विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
    केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
    कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
    ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता।संकट हरो हमारी माता॥
    क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
    चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
    जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
    स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
    तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
    अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
    तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
    मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥
    तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भाँति मनलाई॥
    और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
    ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
    त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥
    जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
    ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
    पुत्रहीन अरु सम्पति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
    विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
    पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
    सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
    बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
    प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
    बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
    करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥
    जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
    तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
    मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
    भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
    बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
    नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
    रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
    केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥

    ॥ दोहा ॥

    त्राहि त्राहि दुःख हारिणी,हरो वेगि सब त्रास।
    जयति जयति जय लक्ष्मी,करो शत्रु को नाश॥
    रामदास धरि ध्यान नित,विनय करत कर जोर।
    मातु लक्ष्मी दास पर,करहु दया की कोर॥


    मां लक्ष्मी की आरती

    ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
    तुम को निश दिन सेवत, हर विष्णु विधाता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

    उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता
    सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

    दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता
    जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

    तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता
    कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

    जिस घर तुम रहती सब सद्‍गुण आता
    सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

    तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
    खान पान का वैभव, सब तुमसे आता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

    शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता
    रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

    महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता
    उर आनंद समाता, पाप उतर जाता
    ॐ जय लक्ष्मी माता।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।